भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष और तनाव के बीच तुर्की की जो भूमिका रही है, उसके बाद इस देश के साथ भारत के संबंध बहुत बिगड़ गए हैं. कुछ महीने पहले ही ब्रिक्स में शामिल होने को लेकर तुर्की ने मीठी मीठी बातें करके फुसलाना शुरू किया था लेकिन जब उसने देखा कि इसका कोई असर भारत पर नहीं पड़ रहा तो वो वापस अपनी असलियत में आ चुका है. ना केवल उसने पाकिस्तान के सपोर्ट में राग कश्मीर अलापना शुरू किया है बल्कि उसे ड्रोन की सप्लाई की. जिनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ हुआ. इन सबसे लगता है कि उसका ब्रिक्स में शामिल होने का मामला बिगड़ गया है. वैसे ये उसके लिए किसी तगड़े झटके की ही तरह है.
दरअसल तुर्की ने कुछ महीने पहले ब्रिक्स की पूर्ण सदस्यता के लिए औपचारिक रूप से आवेदन किया है. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने कई बार ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जता चुके हैं. अब तक वह ब्रिक्स में पार्टनर कंट्री है. लेकिन अब लगता है कि उसे ब्रिक्स की सदस्यता शायद ही मिले.
सवाल – ब्रिक्स क्या है और इसके सदस्य देश कौन से हैं. इसमें भारत की भूमिका क्यों अहम रहती है?
– ब्रिक्स एक अंतरराष्ट्रीय समूह है, जिसमें दुनिया की पांच प्रमुख उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं, ये हैं – ब्राजील, चीन, रूस, भारत और साउथ अफ्रीका.
ये पांच देश मिलकर आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक मुद्दों पर आपसी सहयोग और समन्वय के लिए एक मंच के रूप में काम करते हैं. इसकी स्थापना 2009 में हुई थी. भारत इसके संस्थापक देशों में है लिहाजा उसकी भूमिका इसमें हमेशा से अहम रही है.
सवाल – क्या ये सही है कि ब्रिक्स में भारत की भूमिका और अहम होती जा रही है?
– भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई बड़ी अर्थव्यवस्था भी. लिहाजा ब्रिक्स के भीतर इसकी आर्थिक हैसियत महत्वपूर्ण है. भारत की भौगोलिक स्थिति एशिया के केंद्र में है. यह इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में भी अहम भूमिका निभाता है. इससे ब्रिक्स को एशिया और पश्चिमी देशों के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलती है.
BRICS में चीन का वर्चस्व कम करने और संतुलित दृष्टिकोण रखने के लिए भारत की आवाज़ अहम होती है. कई मुद्दों पर भारत और चीन के दृष्टिकोण अलग होते हैं, जैसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर भारत ने आपत्ति जताई थी.
सवाल – क्या ब्रिक्स में कुछ और देश शामिल किए गए हैं. तुर्की इसके लिए कोशिश कर रहा था, उसकी क्या पोजिशन है?
– ब्रिक्स के मौजूदा सदस्य हैं – ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, ईरान, मिस्र, इथियोपिया और यूएई. तुर्की अभी इसका सदस्य नहीं है. वह केवल पार्टनर कंट्री है. ब्रिक्स में किसी भी नए सदस्य को शामिल करने के लिए सभी मौजूदा सदस्य देशों की सर्वसम्मति आवश्यक है.
सवाल – क्या भारत तुर्की की सदस्यता पर रोक लगा सकता है?
– ब्रिक्स में विस्तार सर्वसम्मति के आधार पर होता है. यानी अगर कोई भी सदस्य देश विरोध करता है, तो नया देश शामिल नहीं हो सकता.
सवाल – क्या भारत ने तुर्की को ब्रिक्स की सदस्यता देने का विरोध किया है?
– जर्मन अखबार ‘बिल्ड’ की रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत ने तुर्की की ब्रिक्स सदस्यता का विरोध किया, खासकर पाकिस्तान के साथ तुर्की की करीबी के चलते.
हालांकि, तुर्की के पूर्व राजनयिक और विशेषज्ञ सिनान उलगेन ने इस दावे को खारिज किया है. उन्होंने कहा कि भारत ने तुर्की की सदस्यता को नकारा नहीं.इस पर कोई वोटिंग भी नहीं हुई. तुर्की के राष्ट्रपति कार्यालय ने भी पुष्टि की कि कजान शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स विस्तार पर कोई चर्चा नहीं हुई थी और भारत द्वारा तुर्की की सदस्यता को अवरुद्ध करने की खबरें निराधार हैं. वैसे कुछ रिपोर्ट्स ये कहती हैं कि भारत ही नहीं बल्कि ब्रिक्स के अन्य सदस्य भी तेजी से विस्तार के पक्ष में नहीं हैं.
भारत द्वारा तुर्की की सदस्यता रोकने का कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में इस तरह के दावे जरूर किए गए हैं, जिन्हें तुर्की के अधिकारियों और विशेषज्ञों ने खारिज किया है.
सवाल – फिलहाल तुर्की ब्रिक्स में क्या है, उसकी पोजिशन क्या है?
– फिलहाल तुर्की ब्रिक्स में सदस्य नहीं है. उसे आवेदन के बाद भी सदस्यता नहीं मिली है. हालांकि रूस और चीन दोनों चाहते हैं कि उसे सदस्य बना दिया जाए. अभी उसका दर्जा पार्टनर कंट्री का है.
पार्टनर कंट्री का दर्जा ब्रिक्स की पूर्ण सदस्यता से अलग है. पार्टनर कंट्रीज़ वे देश होते हैं जिन्हें ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन, बैठकों या सहयोगी कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाता है, लेकिन वे संगठन के पूर्ण सदस्य नहीं होते. इन देशों को ब्रिक्स के आर्थिक, राजनीतिक या सांस्कृतिक फोरम में भागीदारी का मौका मिलता है, जिससे वे सदस्य देशों के साथ संवाद और सहयोग बढ़ा सकते हैं.पार्टनर कंट्रीज़ को ब्रिक्स के निर्णय प्रक्रिया या वोटिंग अधिकार नहीं मिलते. वे केवल संवाद, साझेदारी और सहयोग के लिए आमंत्रित होते हैं. यह दर्जा आमतौर पर उन देशों को दिया जाता है जिनकी सदस्यता पर विचार चल रहा हो या जो ब्रिक्स के साथ गहरे संबंध बनाना चाहते हैं.
सवाल – क्या भारत के साथ तुर्की के बिगड़ रहे रिश्तों के चलते उसे ब्रिक्स में सदस्यता मिलने में दिक्कत आएगी?
– बिल्कुल ऐसा हो सकता है, क्योंकि भारत ने हाल ही में पाकिस्तान के खिलाफ तनाव और तुर्की द्वारा उसे मदद करने के बाद उससे कई तरह के संबंध खत्म कर लिए हैं, जिसमें व्यापार भी है.
इस स्थिति का तुर्की की ब्रिक्स में पूर्ण सदस्यता प्राप्त करने की संभावनाओं पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है. भारत को लगता है कि तुर्की का पाकिस्तान के साथ गहरा रणनीतिक और सैन्य सहयोग भारत के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से खतरा पैदा करता है. तुर्की द्वारा पाकिस्तान को प्रदान किए गए ड्रोन और अन्य सैन्य उपकरणों का उपयोग भारत के खिलाफ सीमा पर देखा गया है, जिसने भारत की चिंताओं को और बढ़ा दिया है.
दूसरा, तुर्की का कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन और भारत की नीतियों की आलोचना भारत-तुर्की संबंधों में एक प्रमुख विवाद बिंदु रही है. भारत ये सुनिश्चित करना चाहता है कि ब्रिक्स का विस्तार केवल उन देशों को शामिल करे जो संगठन के सभी सदस्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखते हैं. तुर्की का भारत के प्रति रुख इस मानदंड को पूरा नहीं करता.
सवाल – तुर्की को सदस्यता नहीं देने के मसले पर ब्रिक्स में कौन से देश भारत के साथ लगते हैं?
– ब्रिक्स में ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश भारत के साथ खड़े हैं.
सवाल – तुर्की क्यों ब्रिक्स में आना चाहता है?
– तुर्की नाटो और यूरोपीय संघ पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहता है. तुर्की का यूरोपीय संघ में शामिल होने का लंबा प्रयास विफल रहा है. अब नाटो के साथ उसके संबंध भी तनावपूर्ण हो रहे हैं. इस स्थिति में ब्रिक्स तुर्की के लिए एक वैकल्पिक मंच प्रदान करता है, जो उसे वैश्विक दक्षिण के उभरते बाजारों के साथ आर्थिक और भू-राजनीतिक संबंधों को मजबूत करने का अवसर देता है.