Gen Z Nepal Protests: नेपाल में Gen Z का संग्राम लेकिन क्या आपको याद है इन दो देशों का विरोध-प्रदर्शन?

5 hours ago

Nepal Gen Z Protest: नेपाल में सोशल मीडिया बैन करने का क्या ऐलान हुआ, जनरेशन जी, जिसे Gen Z भी कहा जाता है, सोमवार को सड़कों पर उतर आई. जमकर विरोध-प्रदर्शन हुआ, झड़पें हुईं. 19 लोग मारे गए और 250 से ज्यादा लोग घायल हैं. भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और सोशल मीडिया ऐप्स पर सरकारी बैन के खिलाफ नेपाल के युवाओं का यह प्रदर्शन पूरी दुनिया ने देखा. 

भारत के साथ रोटी-बेटी का रिश्ता रखने वाले नेपाल ने यूं तो कई विद्रोह अतीत में देखे हैं. इनमें युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है. पिछले साल यहां राजशाही की वापसी की मांग को देखते हुए प्रदर्शन किया गया था, जबकि इसी देश में डेढ़ दशक पहले राजशाही को उखाड़ फेंकने को लेकर विरोध हुआ था.

16 साल में 13 बार बदली सरकार

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जब देश में लंबे वक्त तक राजनीतिक अस्थिरता रही तो पहले की शासन व्यवस्था की मांग उठी. पिछले 16 साल में 13 बार सरकार बदल चुकी है. लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि युवाओं का प्रदर्शन सिर्फ नेपाल में ही हो रहा है, तो ऐसा नहीं है. ऐसे ही प्रदर्शन बांग्लादेश और श्रीलंका में भी हो चुके हैं, जिसके बाद इन देशों में सत्ता परिवर्तन हुआ था. 

साल थे 2022 और 2024. 2022 में श्रीलंका और दो साल बाद 2024 में जेन जी ने बांग्लादेश में बदलाव की हुंकार भरी थी. जेन जी वो लोग हैं, जो साल 1997 से लेकर 2012 के बीच में पैदा हुए हैं. ये वो पीढ़ी है, जो सोशल मीडिया, स्मार्टफोन और इंटरनेट के साए में बड़ी हुई है.

बांग्लादेश और श्रीलंका के विरोध-प्रदर्शनों में यही पीढ़ी सड़कों पर थी. इन दोनों ही देशों में सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हुए थे. तीनों मामलों में प्रदर्शन गैर-राजनीतिक तौर पर शुरू हुए. प्रदर्शनकारी स्थापित दलों के संघर्ष में शामिल होने से बचने की कोशिश करते ही नजर आए.

श्रीलंका में भी हुआ था प्रदर्शन

श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में जब तेल और खाने-पीने की चीजों की कमी होने लगी तो मिलेनियल्स और जेन जी की अगुआई वाले प्रदर्शन बढ़ गए. धरना-प्रदर्शनों से आगाज तो हुआ लेकिन बाद में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया. नतीजतन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा.

बाद में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति के घर और प्रधानमंत्री दफ्तर पर हमला बोल दिया, जिससे इस आंदोलन ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा. इसका नतीजा ये हुआ कि अधिकारियों के साथ मांगों पर बातचीत करने के लिए अनौपचारिक परिषदें तक गठित हुईं.

कई रिपोर्टों में प्रदर्शनकारियों के बीच राजनीतिक ताकतों की मौजूदगी का संकेत दिया गया, जिनके अपने-अपने स्वार्थ थे. 2024 में नई सरकार के सत्ता पर काबिज होने के बाद से, नीति और शासन में कई अहम बदलाव हुए हैं.

बांग्लादेश में प्रधानमंत्री को भागना पड़ा था

बांग्लादेश में तो स्टूडेंट्स ने तत्कालीन सरकार की नौकरी-कोटा नीति के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू किया था. उनका आरोप था कि आरक्षण में योग्यता की बजाय राजनीतिक वफादारों को ज्यादा तवज्जो दी गई है.

जैसे-जैसे प्रदर्शन आगे बढ़ा, सुरक्षा बलों ने ताकत का इस्तेमाल किया. प्रदर्शनकारियों ने इसके बाद पीएम आवास घेर लिया. इस वजह से शेख हसीना को 5 अगस्त, 2024 को देश छोड़कर भागना पड़ा, जिससे उनका 16 साल का राज समाप्त हो गया.

इसके बाद, छात्र नेताओं ने भविष्य के चुनाव लड़ने के लिए नेशनल सिटिजन पार्टी का गठन किया और नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. मुहम्मद यूनुस की देखरेख वाली अंतरिम सरकार में शामिल हो गए.

एक नियुक्त राष्ट्रीय सहमति आयोग ने संवैधानिक और सिविल सेवा सुधारों का मसौदा तैयार करना शुरू कर दिया, जिसका मकसद पारदर्शिता बढ़ाना और भाई-भतीजावाद पर अंकुश लगाना था.

नेपाल की तरह, बांग्लादेश का आंदोलन डिजिटल रूप से कुशल युवा कार्यकर्ताओं ने संचालित किया था, जिन्होंने पारंपरिक पार्टी ढांचों को दरकिनार करके वायरल वीडियो और एन्क्रिप्टेड चैट के माध्यम से विरोध प्रदर्शन आयोजित किए.

दोनों देशों में फिलहाल क्या हो रहा है?

श्रीलंका की तरह, बांग्लादेश के छात्रों ने निरंतर शिविरों और जन-आंदोलन के माध्यम से सरकार को गिराने में सफलता हासिल की. श्रीलंका में जहां अब एक निर्वाचित सरकार है, वहीं बांग्लादेश में सत्ता का हस्तांतरण एक अंतरिम सरकार को हुआ है, जहां जल्द ही चुनाव होने की संभावना नहीं है.

बांग्लादेश में छात्र नेताओं ने अपने आंदोलन को तेजी से एक औपचारिक राजनीतिक दल में बदल दिया. काठमांडू में, जेन जी अभी भी जमीनी स्तर पर अपनी प्रामाणिकता बनाए रखने के लिए नेतृत्वविहीन गठबंधन और क्रमिक नीतिगत मांगों को प्राथमिकता दे रहे हैं.

नेपाल की जेन जी ने मौजूदा पार्टियों से जुड़ने से साफ इनकार कर दिया है. यह रुख मजबूती और कमजोरी दोनों प्रदान करता है. दो पड़ोसी देशों में हुए बदलाव इशारा करते हैं कि ये प्रदर्शनकारी भी दलगत राजनीति में अंततः शामिल होंगे.

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