HC रोक कैसे लगा सकता है? CJI क्‍यों हुए नाराज? ममता को मिली 'सुप्रीम' राहत

6 hours ago

Last Updated:July 28, 2025, 16:55 IST

Supreme Court News: सीजेआई बीआर गवई की बेंच ने कलकत्‍ता हाईकोर्ट के फैलसे को रद्द कर दिया. तीन सदस्‍यीय बेंच ने कोलकाता हाईकोर्ट के 17 जून के उस फैसले पर हैरानी जताई जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार को नई ओबीसी सूची क...और पढ़ें

HC रोक कैसे लगा सकता है? CJI क्‍यों हुए नाराज? ममता को मिली 'सुप्रीम' राहतसीजेआई गवई ने कड़ा फैसला सुनाया. (File Photo)

हाइलाइट्स

सीजेआई बीआर गवई की बेंच ने कलकत्‍ता हाईकोर्ट के फैलसे को रद्द कर दिया.तीन सदस्‍यीय बेंच ने कोलकाता हाईकोर्ट के 17 जून के उस फैसले पर हैरानी जताईपश्चिम बंगाल सरकार को नई ओबीसी सूची को लागू करने पर रोका गया था.

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें राज्य की नई ओबीसी सूची को लागू करने पर रोका गया था. बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले को “आश्चर्यजनक” और “प्रथम दृष्टया गलत” करार दिया. सीजेआई गवई ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “यह आश्चर्यजनक है! हाईकोर्ट इस तरह रोक कैसे लगा सकता है? आरक्षण कार्यकारी कार्यों का हिस्सा है. इंदिरा साहनी मामले (1992) से यह स्थापित कानून है कि कार्यकारी निर्देशों के जरिए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान की जा सकती है.”

‘नौ जजों की पीठ ने स्पष्ट किया…’
तीन जजों की बेंच में सीजेआई गवई के अलावा जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया भी मौजूद थे. पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्‍ता हाईकोर्ट के 17 जून 2025 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें 10 जून की ओबीसी वर्गीकरण अधिसूचना को बिना विधायी समर्थन के “अनुचित जल्दबाजी” वाला बताकर स्थगित कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के तर्क पर असहमति जताते हुए कहा कि इंदिरा साहनी मामले में नौ जजों की पीठ ने स्पष्ट किया था कि कार्यकारी निर्देशों से ही पिछड़े वर्गों की पहचान और आरक्षण संभव है. सीजेआई ने सवाल उठाया, “हाईकोर्ट का तर्क समझ से परे है कि केवल विधायिका ही ओबीसी सूची को मंजूरी दे सकती है.”

कपिल सिब्‍बल का तर्क
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने राज्य का पक्ष रखते हुए कहा कि हाईकोर्ट का आदेश कई नियुक्तियों और प्रमोशन को प्रभावित कर रहा है और इसके खिलाफ अवमानना याचिकाएं भी दायर हो चुकी हैं. पीठ ने शुरू में मामले को हाईकोर्ट में नए बेंच के समक्ष शीघ्र सुनवाई के लिए भेजने का सुझाव दिया, लेकिन प्रतिवादी वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में ही तर्क देने का विकल्प चुना. उन्होंने दावा किया कि नई सूची बिना पर्याप्त डेटा और प्रक्रिया के बनाई गई. सीजेआई गवई ने कहा कि आयोग ने कुछ पद्धति का पालन किया होगा, जिसकी वैधता की जांच हाईकोर्ट अंतिम रूप से कर सकता है. फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया. यह फैसला कार्यकारी शक्तियों और आरक्षण नीति के संवैधानिक ढांचे की पुष्टि करता है.

Sandeep Gupta

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...

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