Global South strikes back on Trump Tariff: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में टैरिफ को हथियार बनाकर दोस्त-दुश्मन सभी मुल्कों के कान मरोड़ने में लगे हैं. उनकी सोच है कि ऐसा करने से तमाम मुल्क उनके आगे झुक जाएंगे और वे सब मांगे मान लेंगे, जो वे चाहते हैं. लेकिन क्या वाकई ऐसा है. क्या भारत, ब्राजील, चीन, रूस जैसे देश उनकी टैरिफ की धमकियों के आगे झुक जाएंगे. जियो-पॉलिटिकल एक्सपर्टों की मानें तो यह सच नहीं है. ट्रंप पूरी तरह मुगालते में हैं. वे जितना ग्लोबल साउथ के देशों को दबाने की सोच रहे हैं, वे उतने की एकजुट हो रहे हैं और अब मिलकर अमेरिका को बड़ी चोट पहुंचाने की योजना बना रहे हैं.
ग्लोबल साउथ करेगा पलटवार
रूसी मीडिया स्पुतनिक के मुताबिक, अमेरिकी टैरिफ ब्रिक्स को एक पूर्ण बहुध्रुवीय गठबंधन में बदल रहे हैं. ब्राज़ील के लूला ने हाल ही में अमेरिकी दबाव का ब्रिक्स द्वारा संयुक्त रूप से जवाब देने की योजना की घोषणा की है. दूसरे शब्दों में कहें तो यह ग्लोबल साउथ का अमेरिका को पलटवार है.
अमेरिका के लिए यह बुरी खबर क्यों?
रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 10 प्रभावशाली देशों की सदस्यता वाले संगठन ब्रिक्स की अध्यक्षता इस वक्त ब्राजील के पास है. ट्रंप ने भारत की तरह ब्राजील पर भी 50 प्रतिशत टैरिफ लगा रखा है. ऐसे में अमेरिका को जवाब देने के लिए ब्राजील के राष्ट्रपति लूला लंबी रणनीति पर काम करते नजर आ रहे हैं. ट्रंप की सख्ती से ब्रिक्स की एकता और आत्मविश्वास का भाव मजबूत होता जा रहा है. विश्लेषक एंजेलो गिउलिआनो का कहना है कि ग्लोबल साउथ एकतरफ़ा दबाव का सक्रिय रूप से विरोध करने और बहुध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है.
यूएस को कैसे झटका दे सकता है?
अमेरिका को झटका देने के लिए ब्रिक्स के शस्त्रागार में कई हथियार मौजूद हैं. इनमें पहला है डॉलर को बायपास कर स्थानीय मुद्राओं में ज़्यादा से ज्यादा व्यापार करना. ऐसा हुआ तो दुनिया से अमेरिका का दबदबा सिमटते देर नहीं लगेगी. दूसरा उपाय है, न्यू डेवलपमेंट बैंक और उसकी ऋण देने की क्षमता को बढ़ावा देना.
तीसरा और अहम हथियार है, अमेरिकी प्रभुत्व वाले स्विफ्ट सिस्टम को दरकिनार कर उसका प्रभावी विकल्प पेश करना. इस स्विफ्ट सिस्टम के जरिए अमेरिका किसी भी देश को डॉलर की आपूर्ति रोककर उसकी बांह मरोड़ सकता था. चौथा तरीका है. WTO में अमेरिकी टैरिफ़ को चुनौती देना. कुल मिलाकर ब्रिक्स देश साथ मिलकर डॉलर के वैश्विक सिंहासन को काफ़ी हद तक हिला सकते हैं. जिससे दुनिया में अमेरिका की शक्ति भी काफी कम हो जाएगी.
ट्रंप का अहंकार बोल रहा या मूर्खता?
एक्सपर्ट डॉ. राज कुमार शर्मा कहते हैं कि पहली बार अमेरिका ने सभी ब्रिक्स देशों को एक साथ सीधे निशाना बनाया है. लेकिन उनका दांव बैक फायर कर गया है. इस दबाव ने ब्रिक्स को पश्चिम के खिलाफ और मज़बूती से एकजुट होने के लिए प्रेरित किया है. ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका और भारत जैसे देशों के साथ अमेरिका के दोस्ताना संबंध है. इसके बावजूद उन पर भारी भरकर टैरिफ थोंपने से पता चलता है कि ब्रिक्स के उदय से अमेरिका कितना घबराया हुआ है. वाशिंगटन इस समूह को एक वास्तविक खतरे के रूप में देखता है.
अमेरिका ने जो बोया, वही काटा
एक्सपर्टों के मुताबिक, ब्रिक्स देश हमेशा से वैश्विक वित्त मामलों में विकल्प बनने और प्रमुख संस्थानों में सुधार चाहते रहे हैं लेकिन अब अमेरिका ने जिस तरह टैरिफ को बम बनाकर ब्रिक्स देशों के खिलाफ व्यापार युद्ध छेड़ दिया है, उससे ब्रिक्स ने भी इस एजेंडे को और तेज़ कर दिया है, जिससे इसे नई गति मिली है. एक तरह से कहें तो अमेरिका ने जो बोया, वही अब उसे काटने को मिल रहा है.
बड़े नेताओं का बढ़ने वाले हैं दौरे
एससीओ समिट में भाग लेने के लिए पीएम मोदी चीन जाने वाले हैं. वहीं भारत-रूस शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए रूसी राष्ट्रपति पुतिन इस साल के आखिर में भारत आने वाले हैं. ऐसे में ब्रिक्स के मजबूत होने का रास्ता गति पकड़ने वाला है, जो अमेरिका का दबदबा दुनिया में हमेशा के लिए घटा सकता है.