What is the Panama Canal Dispute: अमेरिका और चीन के बीच हजारों किमी की दूरी है. दोनों दुनिया के अलग-अलग छोर पर बसे हैं. इसके बावजूद दोनों के बीच एक नहर को लेकर तलवार खिंची हुई है. मजे की बात ये है कि यह नहर दोनों में किसी देश में नहीं है बल्कि तीसरे मुल्क में है. अमेरिका ने इस नहर पर दावा ठोंकते हुए चीन से बड़ा खतरा बताया है और इससे निपटने के लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत बताई है. आखिर वो कौन सी नहर है, जिसने दोनों शक्तिशाली मुल्कों को आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया है. इस नहर में आखिर ऐसा क्या है, जिसके चलते ये देश आपस में भिड़ने तक को तैयार हैं.
दो महासागरों के बीच सेतु है नहर
यह नहर और कोई नहीं बल्कि अमेरिकी फंड और तकनीक से बनी पनामा कैनाल है. पड़ोस के पनामा देश में बनी यह नहर अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर में सीधी कनेक्टेविटी प्रदान करती है. इस नहर की वजह से दक्षिण अमेरिका का पूरा चक्कर काटे बिना कोई भी पानी का जहाज सीधे एक महासागर से दूसरे महासागर में जा सकता है. आपसी समझौते के बाद अमेरिका ने वर्ष 1999 में इस नहर का स्वामित्व पनामा को सौंप दिया था. तब से पनामा ही इस नहर का संचालन कर रहा है. इस नहर से 70 प्रतिशत से ज्यादा आवागमन अमेरिकी जहाज ही करते हैं.
अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने मंगलवार को कहा कि पनामा नहर को चीन से लगातार खतरा बना हुआ है, लेकिन अमेरिका और पनामा मिलकर इसे सुरक्षित रखेंगे. पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो के साथ बैठक के बाद एक नौसेना बेस पर हेगसेथ ने कहा कि अमेरिका चीन या किसी अन्य देश को नहर के संचालन को खतरे में डालने की अनुमति नहीं देगा.
अमेरिकी रक्षा मंत्री ने किया इशारा
उन्होंने कहा, "इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और पनामा ने हाल के हफ्तों में हमारे रक्षा और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए पिछले कई दशकों से भी ज्यादा काम किया है." हेगसेथ का इशारा नहर के दोनों छोर पर स्थित बंदरगाहों की ओर था, जिसके संचालन का कांट्रेक्टट हांगकांग कंसोर्टियम के पास है. वह इस ठेके को ब्लैकरॉक इंक समेत अन्य कंसोर्टियम को अपनी हिस्सेदारी बेचने की कोशिश में है.
हेगसेथ ने कहा, 'चीनी कंपनियां नहर क्षेत्र में महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को कंट्रोल कर रही हैं. इससे चीन को पनामा में अपनी निगरानी गतिविधियां संचालित करने की क्षमता मिलती है. जिससे पनामा और संयुक्त राज्य अमेरिका कम सुरक्षित, कम समृद्ध और कम संप्रभु हो जाते हैं. जैसा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बताया है, यह स्थिति स्वीकार्य नहीं है.'
'चीन इस नहर का संचालन नहीं करेगा'
हेगसेथ ने मंगलवार सुबह दो घंटे तक मुलिनो से मुलाकात की और फिर पनामा के उस नौसैनिक अड्डे पर चले गए जो पहले यूएस रोडमैन नेवल स्टेशन था. रास्ते में, हेगसेथ ने एक्स पर इस मुलाकात की तस्वीर पोस्ट की और लिखा कि मुलिनो से बात करना सम्मान की बात थी. उन्होंने लिखा, 'आप और आपके देश की कड़ी मेहनत एक अंतर पैदा कर रही है. सुरक्षा सहयोग में वृद्धि से हमारे दोनों देश सुरक्षित, मजबूत और अधिक समृद्ध बनेंगे.'
हेगसेथ ने मंगलवार को कहा, "मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि चीन ने इस नहर का निर्माण नहीं किया है." "चीन इस नहर का संचालन नहीं करता है और चीन इस नहर का हथियार के रूप में उपयोग नहीं करेगा. पनामा के नेतृत्व में हम दुनिया की सबसे मजबूत, सबसे प्रभावी और सबसे घातक लड़ाकू ताकत की निवारक शक्ति के माध्यम से नहर को सुरक्षित और सभी देशों के लिए उपलब्ध रखेंगे.
पनामा कैनाल को वापस ले लेना चाहिए- ट्रंप
बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि पनामा नहर का उपयोग करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका से अधिक शुल्क लिया जा रहा है और चीन का इसके संचालन पर प्रभाव है. उन्होंने यहां तक कह दिया है कि यू.एस. को कभी भी नहर को पनामा को नहीं सौंपना चाहिए था और शायद यू.एस. को इसे वापस ले लेना चाहिए. उनकी चिंता इस बात से भी बढ़ी है कि हांगकांग के कंसोर्टियम (कंपनियों के ग्रुप) नहर के दोनों छोर पर बंदरगाहों पर 25 साल का पट्टा ले रखा है.
अमेरिकी रक्षा मंत्री से पहले उसके विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी पनामा की यात्रा की थी. इस यात्रा में उन्होंने मुलिनो कर ट्रंप का मैसेज दिया था. उन्होंने कहा था कि ट्रम्प का मानना है कि नहर क्षेत्र में चीन की उपस्थिति उस संधि का उल्लंघन कर सकती है जिसके कारण संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1999 में जलमार्ग को पनामा को सौंप दिया था. उस संधि में अमेरिकी निर्मित नहर की स्थायी तटस्थता की बात कही गई है.
अमेरिकी दबाव में झुकी पनामा सरकार
इस पर मुलिनो ने उन्हें आश्वस्त किया कि नहर के संचालन में चीन का कोई प्रभाव है. उन्होंने अपनी निराशा जाहिर करते हुए कहा कि हम वास्तविक मुद्दों के बजाय गैर-जरूरी मुद्दों पर बात कर रहे हैं. यह केवल समय व्यर्थ करने वाली बात है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1900 के दशक की शुरुआत में नहर का निर्माण किया था. उस वक्त वह अपने पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच वाणिज्यिक और सैन्य जहाजों के आवागमन को सुविधाजनक बनाने के तरीकों की तलाश कर रहा था. बाद में वाशिंगटन ने 1977 में राष्ट्रपति जिमी कार्टर द्वारा हस्ताक्षरित एक संधि के तहत 31 दिसंबर, 1999 को जलमार्ग का नियंत्रण पनामा को सौंप दिया.
अब अमेरिका की ओर से बार-बार ऐतराज जताए जाने के बाद पनामा सरकार ने घोषणा की कि पट्टे का ऑडिट करवाया जा रहा है. उन्होंने संकेत दिया कि ठेका देने में कई अनियमितताएं थीं. उनकी घोषणा से पहले ही हॉन्ग कॉन्ग कंसोर्टियम अपनी हिस्सेदारी अमेरिकी कंपनियों को बेचने की बात कर चुका है. जिससे इस नहर के दोनों बंदरगाह सीधे अमेरिकी नियंत्रण में आ जाएंगे.
(एजेंसी पीटीआई)