Last Updated:July 24, 2025, 05:01 IST
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) तेजी से अग्नि-5 मिसाइल पर काम कर रहा है. यह एक बंकर बस्टर बम होगा. 7,500 किलोग्राम वजन वाला ये मिसाइल जमीन के नीचे 80 से 100 मीटर तक हमला करने में सक्षम होगा. अमेरिका के ईर...और पढ़ें

हाइलाइट्स
DRDO तेजी से अग्नि-5 मिसाइल पर काम कर रहा है.यह 7,500 किलोग्राम वजन वाला एक बंकर बस्टर बम होगा.मिसाइल जमीन के नीचे 80 से 100 मीटर तक हमला करने में सक्षम होगा.नई दिल्ली: भारत की रक्षा शक्ति को नई ऊंचाइयों पर ले जाते हुए DRDO यानी रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन अग्नि-5 पर काम कर रहा है. इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) का एक उन्नत ‘बंकर बस्टर’ संस्करण विकसित किया जा रहा है. यह मिसाइल 7,500 किलोग्राम के विशाल पारंपरिक वॉरहेड के साथ 80-100 मीटर गहरी प्रबलित कंक्रीट संरचनाओं को भेदने में सक्षम होगी. यह मिसाइल अमेरिका द्वारा ईरान की फोर्डो, नतांज़ और इस्फहान न्यूक्लियर साइट्स पर GBU-57 मैसिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर (MOP) के उपयोग से प्रेरित है. जहां अमेरिका B-2 स्टील्थ बॉम्बर्स पर निर्भर है, भारत मिसाइल-आधारित डिलीवरी सिस्टम पर ध्यान फोकस कर रहा है, जो लागत-प्रभावी, तेज और लचीला है.
2,500 KM तक हमला कर पाएगी अग्नि-5 मिसाइल
अग्नि-5 का मूल संस्करण 5,000 किमी से अधिक की रेंज के साथ परमाणु हथियार ले जाता है, लेकिन नया संस्करण 2,500 किमी रेंज के साथ पारंपरिक बंकर बस्टर वॉरहेड ले जाएगा. यह मिसाइल हाइपरसोनिक गति (मैक 8-20) से लैस होगी, जो बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम को चकमा देने में सक्षम है. DRDO दो संस्करण विकसित कर रहा है: एक एयरबर्स्ट वॉरहेड के साथ सतह पर बड़े क्षेत्रों को नष्ट करने के लिए, और दूसरा गहरे बंकरों, मिसाइल साइलो और कमांड सेंटर को निशाना बनाने के लिए. यह मिसाइल भारत की सामरिक रणनीति को मजबूत करेगा. खासकर पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के खिलाफ, जिनके पास गहरे भूमिगत ठिकाने हैं.
किराना हिल्स को तहस-नहस कर पाएगा भारत!
भारत का यह कदम क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों का जवाब है. पाकिस्तान के किराना हिल्स और चीन के होतान जैसे क्षेत्रों में बने गहरे बंकर और न्यूक्लियर साइट्स को नष्ट करने की क्षमता भारत की रक्षा नीति को नया आयाम देगी. ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस और SCALP मिसाइलों का उपयोग दिखाता है कि भारत सटीक हमलों में माहिर है, लेकिन अग्नि-5 का बंकर बस्टर संस्करण इसे और घातक बनाएगा.
GBU-57 का कम लागत वाला विकल्प
हालांकि, इससे जुड़ी कई चुनौतियां भी हैं. 7,500 किलो वॉरहेड के कारण रेंज में कमी और सटीकता (CEP<5 मीटर) सुनिश्चित करना तकनीकी रूप से जटिल है. अमेरिका का GBU-57 भारत में 13,600 किलो, है और जमीन के नीचे 60 मीटर तक भेद सकता है, लेकिन भारत का मिसाइल-आधारित दृष्टिकोण हाइपरसोनिक गति और स्वदेशी तकनीक के साथ लागत-प्रभावी विकल्प है. यह न केवल भारत को अमेरिका और चीन जैसे देशों के समकक्ष लाता है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की रक्षा क्षमताओं को भी रेखांकित करता है.
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...
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