DNA Analysis: हिंदुत्व को लेकर इन दिनों नेपाल भी धधक रहा है. जिसमें पहले हिंदुओं की शोभायात्रा पर पत्थरबाजी हुई और उसका आरोप मुस्लिमों पर लगा. लेकिन पत्थरबाजों को गिरफ्तार करने के बदले नेपाल की पुलिस ने हिंदुओं को ही अरेस्ट कर लिया.नेपाल के हिंदुओं पर मंडरा रहे संकट को समझिए.
12 अप्रैल को नेपाल के बीरगंज में हनुमान जयंती की शोभायात्रा में हिंदुओं पर पत्थर चले और इसका विरोध करनेवाले हिंदुओं पर ही पुलिस ने लाठीचार्ज किया. शनिवार को हिंदुओं का जुलूस जैसे ही ईदगाह के इलाके में पहुंचा तो वहां पर छतों से हिंदुओं पर पत्थर बरसाये गये. जिसके बाद वहां भगदड़ मच गई. तब खुद नेपाल पुलिस के कंट्रोल रूम ने बताया कि शोभायात्रा पर पथराव हुआ. इसके बाद हालात इतने बिगड़े कि बीरगंज में कर्फ्यू तक लगाना पड़ा.
पर इसके बाद नेपाल की पुलिस का एक्शन देखकर आप भी हैरान हो जाएंगे. बीरगंज हिंसा मामले में पत्थर चलाने वालों के बजाय 2 हिन्दुओं को गिरफ्तार किया गया है और जब हिंदुओं की गिरफ्तारी का विरोध हुआ तो उनपर लाठीचार्ज किया गया. जिसमें कुछ लोगों के घायल होने की भी खबर है. मतलब हिंदुओं पर पहले कट्टरपंथियों ने हमला किया और बाद में पुलिस ने भी डंडा चलाया.सीधे-सीधे कहें तो नेपाल के हिंदू इस समय अपने देश में ही बेचारा महसूस कर रहे हैं.
आज बीरगंज के अलग-अलग इलाकों में सड़कों पर टायर जलाकर आक्रोशित हिंदुओं ने गिरफ्तारी का विरोध किया. हिंदुओं ने जयश्रीराम और नेपाल पुलिस मुर्दाबाद के नारे लगाये. लेकिन नेपाल में अब इन नारों का कोई महत्व नहीं है. संभव है कि नेपाल पुलिस प्रदर्शनों को देखकर और ज्यादा हिंदुओं को गिरफ्तार भी कर ले.वहां प्रदर्शन कर रहे हिंदुओं का दावा है कि पुलिस ने ऐसे शख्स को भी हिरासत में लिया जो जुलूस में मौजूद श्रद्धालुओं को पानी पिला रहा था.
कहा जाता है कि नेपाल में कभी सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए. इसकी एक वजह वहां के शांतिप्रिय हिंदू हैं. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में लगातार हिंदुओं पर हमले बढ़ रहे हैं. दावा ये किया जा रहा है कि नेपाल के मधेश प्रांत में मुस्लिमों का दबदबा है और कुछ वर्षों पहले वहां एक मुस्लिम मुख्यमंत्री बनने के बाद हनुमान जयंती सहित दूसरे हिंदू त्योहारों के दौरान पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आने लगीं.
इन दिनों नेपाल में राजशाही की मांग तेजी से बढ़ रही है
- नेपाल में 240 वर्षों तक राजशाही रही, 1960 के संविधान में नेपाल को आधिकारिक रुप से हिंदू राष्ट्र घोषित किया गया और इस दौरान हिंदू धर्म और संस्कृति को उचित स्थान मिलता था. हिंदू त्योहार जैसे दशहरा, शिवरात्रि को राष्ट्रीय छुट्टी का दर्जा प्राप्त था दशहरे के समय राजा खुद जनता को दर्शन देते थे.राजा की तरफ से हिंदू मंदिरों को धन और जमीनें दी जाती थीं, जिससे मंदिरों में पूजा-पाठ, पुजारियों का वेतन और भंडारे का प्रबंध होता था. यहां तक कि नेपाल के राजा को भी भगवान विष्णु का अवतार माना जाता था. पर अब उसी देश में हनुमान जयंती पर हिंदुओं की शोभायात्रा, कट्टरपंथियों के टारगेट पर है.
पिछले कुछ समय से नेपाल थोड़ा अशांत दिख रहा है. नेपाल के लोग अपनी पुरानी पहचान और हिंदू राष्ट्र के गौरव को हासिल करने के लिए सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं. वहां की सरकार ने लोगों की मांग को दबाने की भी कोशिश की. लेकिन हिंदू राष्ट्र की मांग करने वाली चिंगारी अब जोर पकड़ती नजर आ रही है. नेपाल में एक बार फिर से राजशाही की मांग उठने की वजह उसे सिर्फ हिंदू राष्ट्र बनाना ही नहीं है..नेपाल के हालात पर नजर डालें तो इसका सीधा कनेक्शन वहां के आर्थिक पिछड़ेपन से भी है.
इस समय नेपाल की अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक वर्ष 2024 में नेपाल में विकास दर 3.1 प्रतिशत थी. नेपाल की कुल GDP का करीब एक चौथाई हिस्सा विदेशों में रहनेवाले नेपाली लोगों से मिलता है. रोज़ाना 2 हजार से अधिक नेपाली युवा अपना देश छोड़ रहे हैं और बीते एक साल में पांच लाख से अधिक युवा नेपाल छोड़कर बाहर चले गये हैं. ऐसा होने की वजह है राजनीतिक विफलता. आप सोचिये कि नेपाल को गणतांत्रिक राज्य बने 17 साल हुए हैं और इस दौरान नेपाल में 14 सरकारें बदल गई हैं. ऐसी राजनीतिक अस्थिरता और डांवाडोल आर्थिक हालात की वजह से नेपाल के लोगों को अपना भविष्य संकट में दिख रहा है. राजशाही के समय नेपाल की जनता वहां के राजा को अपना संरक्षक अपना अभिभावक मानती थी और इस समय नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह को लेकर भी नेपाल के नागरिकों के मन में ऐसी ही भावनाएं हैं.