Last Updated:May 27, 2025, 21:19 IST
Kerala Ship sunk : केरल तट के पास लाइबेरिया का कार्गो जहाज डूबा, जिसमें खतरनाक रसायन और तेल था. इससे पर्यावरण संकट की स्थिति बनी. 1984 की भोपाल गैस त्रासदी को सबसे बड़ी मानव निर्मित आपदा माना जाता है...और पढ़ें

केरल में कार्गो शिप डूब गई. (News18)
हाइलाइट्स
केरल तट पर लाइबेरिया का कार्गो जहाज डूबा.शिप में खतरनाक रसायन और तेल था, पर्यावरण संकट की स्थिति.1984 की भोपाल गैस त्रासदी सबसे बड़ी मानव निर्मित आपदा मानी जाती है.Kerala Ship sunk : केरल तट के पास रविवार को अफ्रीकी देश लाइबेरिया का एक कार्गो जहाज डूब गया. इस घटना के बाद से पर्यावरण संकट की स्थिति पैदा हो गई है. इस शिप में खतरनाक रसायन और कैल्शियम कार्बाइड था. जहाज में 84.44 मीट्रिक टन डीजल और 367.1 मीट्रिक टन फर्नेस ऑयल भी था, जिससे समुद्री जीवन और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर खतरा है. हालांकि यह दुनिया का सबसे बड़ा मैन-मेड डिजास्टर नहीं है. साल 1984 में भोपाल में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैंसों का रिसाव दुनिया का सबसे बड़े मैन-मेड डिजास्टर माना जाता है. इसे भोपाल गैस त्रासदी के नाम से भी दुनिया जानती है. आधिकारिक आंकड़ा कहता है कि इस घटना में 3,787 लोग मारे गए थे, लेकिन गैर-आधिकारिक अनुमान मृतकों की संख्या 16,000 तक बताते हैं
यह दुनिया की सबसे भयावह मानव निर्मित आपदाओं में से एक है. 2-3 दिसंबर 1984 की रात मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यह घटना हुई. यह हादसा यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के कीटनाशक संयंत्र में मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस के रिसाव के कारण हुआ. इस त्रासदी ने न केवल हजारों लोगों की जान ली, बल्कि लाखों लोगों के जीवन को स्थायी रूप से प्रभावित किया. यह घटना औद्योगिक सुरक्षा, कॉरपोरेट जवाबदेही और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर वैश्विक बहस का केंद्र बन गई. यूनियन कार्बाइड का भोपाल संयंत्र 1969 में स्थापित किया गया था और यह कीटनाशक सेबिन का उत्पादन करता था. संयंत्र में जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेटका उपयोग होता था. यह संयंत्र भोपाल के घनी आबादी वाले क्षेत्र के निकट था, जहां गरीब और मध्यम वर्ग के लोग रहते थे. सुरक्षा मानकों की अनदेखी, पुराने उपकरण, अपर्याप्त रखरखाव और कर्मचारियों के प्रशिक्षण की कमी ने इस त्रासदी की नींव रखी. 1984 तक यह संयंत्र आर्थिक नुकसान में चल रहा था, जिसके कारण लागत में कटौती और सुरक्षा उपायों की उपेक्षा बढ़ गई थी.
उस रात क्या हुआ?
2 दिसंबर 1984 की रात, टैंक नंबर 610 में पानी के रिसाव से मिथाइल आइसोसाइनेट के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हुई, जिसके परिणामस्वरूप भारी दबाव बढ़ा और लगभग 40 टन जहरीली गैस वातावरण में फैल गई. यह गैस हवा के साथ आसपास के स्लम क्षेत्रों और बस्तियों में फैल गई. लोग नींद में थे जब गैस की घनी परत ने उन्हें घेर लिया. आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ, खांसी और उल्टियां शुरू हुईं. हजारों लोग सड़कों पर भागने लगे, लेकिन गैस का प्रभाव इतना तीव्र था कि कई लोग बेहोश हो गए या तुरंत मृत्यु का शिकार हो गए. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस हादसे में तत्काल 3,787 लोग मारे गए, लेकिन गैर-आधिकारिक अनुमान मृतकों की संख्या 16,000 तक बताते हैं. लगभग 5,58,125 लोग प्रभावित हुए, जिनमें से हजारों को स्थायी स्वास्थ्य समस्याएं जैसे अंधापन, फेफड़ों की बीमारियां, कैंसर और प्रजनन समस्याएं हुईं. गर्भवती महिलाओं के गर्भपात और नवजात शिशुओं में जन्मजात विकृतियां भी देखी गईं.
बाद में फैली कैंसर जैसी बीमारी
भोपाल गैस त्रासदी का प्रभाव केवल तत्कालीन क्षति तक सीमित नहीं रहा. दशकों तक प्रभावित क्षेत्र में मिट्टी और भूजल दूषित रहा, जिससे कैंसर, किडनी की बीमारियां और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ीं. यूनियन कार्बाइड ने 1989 में $470 मिलियन के मुआवजे का समझौता किया, जो पीड़ितों की संख्या और नुकसान की तुलना में नगण्य था. प्रति पीड़ित मुआवजा औसतन 25,000 रुपये से भी कम था, जो उनकी चिकित्सा और जीवनयापन की जरूरतों के लिए अपर्याप्त था.
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...
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