कौन सी है वो अचूक मिसाइल जिसका नौसेना ने पाक से तनाव के बीच किया परीक्षण

5 hours ago

किसी भी नौसेना के युद्धपोत के लिए सबसे बड़ा खतरा होता है दुश्मन की ‘Sea Skimming Anti-Ship मिसाइलें’ — जो समंदर की सतह से बेहद कम ऊंचाई पर उड़ती हुई, रडार से बचकर अपने लक्ष्य की ओर तेज़ी से बढ़ती हैं. इन मिसाइलों को समय रहते ट्रैक करना और मार गिराना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. ऐसे मुश्किल हालात में भारत और इज़राइल की साझेदारी से विकसित की गई आधुनिक ‘Medium Range Surface-to-Air Missile’ जिसे ‘Barak 8’ भी कहते हैं एक अहम भूमिका निभाती है.

22 अप्रैल 2024 को पहलगाम में आतंकी हमले के बाद, भारतीय नौसेना ने अपने अत्याधुनिक युद्धपोत ‘INS सूरत’ से इस मिसाइल का अरब सागर में सफल परीक्षण किया. ‘Barak 8 को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि यह तेज़ गति से आने वाली और रडार से छुपने वाली ‘Sea Skimming’ मिसाइलों को भी समय रहते पहचान कर उन्हें नष्ट कर सके. ‘Barak 8 – Medium Range (MR-SAM)’ वर्ज़न का संयुक्त विकास भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और इज़राइल की इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्री (IAI) ने मिलकर किया है. IAI इस मिसाइल को ‘Barak 1’ मिसाइल सिस्टम का अपग्रेडेड वर्ज़न मानता है, जो तकनीक और क्षमता दोनों में कहीं आगे है.

‘MR-SAM यानी Barak 8’ में लंबी दूरी तक मार करने की ताकत है. यह सिस्टम समंदर के बीच या ज़मीन से उड़ने वाले सभी तरह के हवाई खतरों — जैसे सबसोनिक और सुपरसोनिक मिसाइलें, फाइटर जेट, समुद्री गश्ती विमान, हेलीकॉप्टर और ‘Sea Skimming मिसाइलें’ को इंटरसेप्ट करने में सक्षम है.

‘आसमानी ढाल: एयर डिफेंस की कहानी’

सबसे पहले एंटी-एयरक्राफ्ट हथियारों (हवाई हमले से बचाने वाले हथियारों) का इस्तेमाल 1870-71 के फ्रांस-प्रशिया युद्ध में हुआ था. ये युद्ध फ्रांस के लिए बहुत नुकसानदेह रहा था. इस दौरान नेपोलियन तृतीय सत्ता से हटे, फ्रांस में तीसरा गणराज्य बना, और प्रशिया के राजा के तहत जर्मनी एकजुट हुआ. पेरिस की घेराबंदी के दौरान, फ्रांसीसी सेना ने सामान पहुँचाने के लिए गुब्बारों का इस्तेमाल किया। इसे रोकने के लिए जर्मन कंपनी क्रुप ने 20 मिमी की तोप बनाई थी.1914 से पहले, जर्मनी को छोड़कर बाकी देशों ने एंटी-एयरक्राफ्ट सिस्टम पर ध्यान नहीं दिया था. लेकिन 1914 के बाद, सभी सेनाओं ने छोटे तोपों पर आधारित बड़ी संख्या में एंटी-एयरक्राफ्ट तोपें तैनात कीं.

1930 के दशक तक, जर्मनी एंटी-एयरक्राफ्ट सिस्टम के विकास में सबसे आगे था. 88 मिमी फ्लैक गन युद्ध की सबसे प्रसिद्ध तोप बन गई, जो न सिर्फ हवाई हमलों के खिलाफ, बल्कि टैंकों के खिलाफ भी बहुत असरदार थी. कई देशों ने नई तरह की सरफेस-टू-एयर मिसाइलों (SAMs) के आधार पर मजबूत और जटिल नेटवर्क बनाना शुरू किया.

उत्तर वियतनाम पहला ऐसा देश था जिसने यह तकनीक अपनाई, खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ अपने लंबे युद्ध में. यहीं पर इस प्रकार के नेटवर्क की प्रभावशीलता का पहला अनुभव हुआ था. पहली सोवियत SA-2 सरफेस-टू-एयर मिसाइलें अप्रैल 1965 में देखी गईं. साल के अंत तक, 56 जगहों की पहचान की गई थी। उत्तर वियतनाम द्वारा SAMs तैनात करने के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका को अपनी रणनीतियों और विमानों में बदलाव करना पड़ा.

Barak का जन्म: आसमान में अब कोई खतरा नहीं!
1973 के अरब-इजराइल युद्ध, 1982 फॉकलैंड युद्ध और इरान-इराक खाड़ी युद्ध (1979-1989) के बाद से मिसाइलों और विमानों के खिलाफ पॉइंट डिफेंस एक बड़ी चिंता बन गई. 1973 के युद्ध में, एक मिस्र की तेज़ नाव ने सोवियत Styx एंटी-शिप मिसाइलों से एक इजरायली नेवी डिस्ट्रॉयर को डुबो दिया. यह एंटी-शिप मिसाइल का असली युद्ध में पहला इस्तेमाल था. इस जहाज में किसी भी प्रकार का पॉइंट डिफेंस सिस्टम नहीं था.

इजरायल को यह समझ में आया कि उसके नौसेना के जहाज एंटी-शिप मिसाइलों से ज्यादा सुरक्षित नहीं हैं (क्योंकि उनके पास मौजूद Gabriel मिसाइलों की रेंज दुश्मनों की मिसाइलों से कम थी), और इस समस्या को हल करने के लिए उन्होंने शोध शुरू किया। इसका नतीजा था Barak नामक इजरायल का पहला पॉइंट मिसाइल डिफेंस सिस्टम.

Barak 1
इस मिसाइल का विकास 1979 में शुरू हुआ, जिसे पहले Point Defense Missile (PDM) सिस्टम कहा जाता था और बाद में इसे AB-2 Lightning भी कहा गया. इस सिस्टम का पहला प्रदर्शन 1981 के पेरिस एयर शो में हुआ था. इसके पहले समुद्री परीक्षण 1988-89 में किए गए. इसकी कुल विकास लागत 74 मिलियन डॉलर के बराबर थी. Barak एक शिप डिफेंस सिस्टम है, जो वर्टिकल लॉन्च मिसाइल का इस्तेमाल करता है.

यह विमानों और मिसाइलों, खासकर सी स्किमिंग मिसाइलों के खिलाफ प्रभावी है. Barak मिसाइल की आपूर्ति 1994 में इजरायली नौसेना को शुरू हुई थी. यह मिसाइल 1994 में चिली नौसेना, 1996 में सिंगापुर नौसेना, और 2003 में भारतीय नौसेना में सेवा में आई. Barak मिसाइल की रेंज 10 किलोमीटर थी, इसमें 22 किलो का उच्च विस्फोटक/फ्रैगमेंटेशन वारहेड था. 2009 तक लगभग 2,184 Barak 1 यूनिट्स बनाए गए.

Barak 8
2001 में, राफेल ने घोषणा की थी कि वे एक नए Super Barak पर काम कर रहे हैं, जिसे B-8 या Barak 8 कहा गया. नई दिल्ली ने 2006 में इस प्रोजेक्ट में शामिल हुआ. भारत और इज़राइल ने जुलाई 2008 में $2.5 बिलियन का एग्रीमेंट साइन किया, जिसमें 120-150 किलोमीटर रेंज वाली Barak मिसाइल का विकास शामिल था, जिसे भारतीय वायुसेना और नौसेना द्वारा इस्तेमाल किया जाना था.

Barak-8 MR-SAM की खूबियां!
Barak 8 सिस्टम एक मीडियम रेंज का शिप-बोर्न एयर डिफेंस सिस्टम है, जिसे MR-SAM के नाम से भी जाना जाता है. इस सिस्टम में आधुनिक बैटल मैनेजमेंट, कमांड, कंट्रोल, कम्युनिकेशन और इंटेलिजेंस (BMC4I), वर्टिकल लॉन्चिंग सिस्टम, मल्टी-फंक्शनल रडार और बाराक 8 इंटरसेप्टर्स शामिल हैं. इसकी सबसे खास बात यह है कि यह मिसाइल सीधे ऊपर (वर्टिकल) लॉन्च होती है और चारों ओर 360 डिग्री में खतरे से निपट सकती है.

बेहद शांत!
इसकी लॉन्चिंग बेहद कम आवाज़ और रडार सिग्नल के साथ होती है, जिससे दुश्मन के लिए इसे पकड़ना मुश्किल होता है. इसमें हाई-एंड एक्टिव रडार सीकर लगा है, जो बेहद तेजी से दिशा बदलने वाले और रडार पर कम दिखने वाले लक्ष्यों को भी पहचान कर निशाना बना सकता है.

Barak 8 मिसाइल की मारक क्षमता लगभग 70 किलोमीटर तक है. यह एक साथ कई हवाई खतरों को ट्रैक और नष्ट कर सकती है, चाहे वह फाइटर जेट हों, सी-स्किमिंग या क्रूज़ मिसाइलें, बैलिस्टिक मिसाइलें, ड्रोन, हेलीकॉप्टर या फिर ग्लाइडिंग बम. यह सिस्टम इलेक्ट्रॉनिक जामिंग से भी प्रभावित नहीं होता, यानी दुश्मन इसे गड़बड़ नहीं कर सकता.

मिसाइल को इस तरह से बनाया गया है कि यह हर तरह के मिशन के लिए तैयार रहता है — चाहे किसी खास जगह की सुरक्षा करनी हो (पॉइंट डिफेंस), किसी बड़े क्षेत्र की रक्षा (एरिया डिफेंस), या फिर बैलिस्टिक मिसाइलों से बचाव. यह सिस्टम न केवल समुद्र में नौसेना के साथ काम करता है बल्कि ज़मीन पर भी मोबाइल या स्थायी रूप से तैनात किया जा सकता है.

Barak 8 या MR-SAM न सिर्फ तकनीकी रूप से बेहद उन्नत है, बल्कि यह भारत की आधुनिक रक्षा क्षमता का एक मजबूत प्रतीक भी है.

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