कौन हैं पंडालम राजवंश के लोग जो खुद को चोल बताते हैं, क्या करते हैं ये

7 hours ago

Last Updated:July 28, 2025, 13:23 IST

तमिलनाडु में महान चोल सम्राट राजेंद्र प्रथम की 1000 वीं जयंती मनाई जा रही है. केरल का पंडालम राजवंश उनका वशंज होने का दावा करता है. जानते हैं इसके बारे में

कौन हैं पंडालम राजवंश के लोग जो खुद को चोल बताते हैं, क्या करते हैं ये

हाइलाइट्स

राजेंद्र चोल प्रथम की 1000वीं जयंती मनाई गईपंडालम राजवंश खुद को चोल वंशज बताता हैपंडालम राजवंश सबरीमाला मंदिर के संरक्षक हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 27 जुलाई को तमिलनाडु के अरियालुर में गंगईकोंड चोलपुरम मंदिर में सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की 1000वीं जयंती मनाई. चोल साम्राज्य भारत के महान वंशों में एक था, जिसने अपनी सरहदें कई पूर्वी एशियाई देशों तक फैलाईं. आज भी वहां उनका असर देखा जा सकता है. ये महान साम्राज्य ने करीब 4 सदियों तक शासन किया. लेकिन क्या आपको मालूम है कि दक्षिण भारत का कौन सा राजवंश खुद को चोल वंश से जोड़कर बताता है. खुद को चोलों के वंशज करने वाले ये लोग आजकल किस हालत में हैं और क्या करते हैं.

चोल साम्राज्य ने लगभग चार शताब्दियों तक 9वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी (लगभग 850 ईस्वी से 1279 ईस्वी) तक दक्षिण भारत में शासन किया. उनकी सबसे प्रमुख अवधि मध्यकालीन चोल काल (985-1200 ईस्वी) थी, जब राजराज चोल प्रथम और राजेंद्र चोल जैसे शासकों ने साम्राज्य का विस्तार किया.

कौन है पंडालम राजवंश

केरल में एक पंडालम राजवंश है, जो ये दावा करते हैं कि वो चोलों से सीधा ताल्लुक रखने वाले उनके वंशज है. कौन हैं पंडालम राजवंश. अब ये क्या कर रहा है. पंडालम राजवंश केरल के पठानमथिट्टा जिले में रह रहा एक ऐतिहासिक शाही परिवार है, जो अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है. ये वही राज परिवार है, जो विशेष रूप से सबरीमाला के श्री अय्यप्पा मंदिर से जुड़ा हुआ है.

पंडालम राजवंश का दावा है कि उनकी उत्पत्ति प्राचीन तमिल चोल राजवंश से हुई है, जो दक्षिण भारत के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली राजवंशों में एक था. पंडालम राजवंश की स्थापना केरल के पठानमथिट्टा जिले में मध्यकाल में हुई थी. यह परिवार परंपरागत रूप से पांड्य राजवंश से संबंधित माना जाता है, जो तमिलनाडु के दक्षिणी हिस्से में शासन करता था.

कैसे उनका कनेक्शन चोलों से

पंडालम राजवंश के चोल कनेक्शन का आधार मुख्य रूप से मौखिक परंपराओं और कुछ ऐतिहासिक संदर्भों पर टिका है. पंडालम के शाही परिवार का दावा है कि वे चोल वंश की एक शाखा हैं, जो दक्षिण भारत के सूर्यवंशी क्षत्रियों से उत्पन्न हुई है. संगम साहित्य में चोलों को सूर्यवंशी कहा गया है और पंडालम राजवंश भी इस सूर्यवंशी परंपरा का दावा करता है. हालांकि इस दावे के ऐतिहासिक साक्ष्य सीमित हैं.

ऐसा माना जाता है कि चोल राजवंश के कुछ सदस्य या उनके सहयोगी परिवार तमिलनाडु से केरल की ओर प्रवास कर गए. ये माना जाता है कि ऐसा पांड्य या चेर राजवंशों के साथ वैवाहिक या राजनीतिक संबंधों के माध्यम से हुआ.

चोल भारत के ऐसे महान प्रतापी राजा थे, जिन्होंने अपना साम्राज्य दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों तक फैलाया. (news18)

कब से कब तक था चोल साम्राज्य

चोल राजवंश दक्षिण भारत के तमिलनाडु में कावेरी नदी के उपजाऊ क्षेत्र में केंद्रित था. इस राजवंश ने 9वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत, श्रीलंका, मालदीव और दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों पर शासन किया. चोलों ने अपनी नौसैनिक शक्ति और व्यापारिक नेटवर्क के माध्यम से एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया.

कई चोल परिवार केरल चले आए थे

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि चोल साम्राज्य के पतन के बाद 13वीं शताब्दी में कई चोल परिवारों ने पड़ोसी क्षेत्रों जैसे केरल और पांड्य क्षेत्रों में शरण ली. पंडालम राजवंश के पूर्वज शायद इन्हीं प्रवासी परिवारों में एक थे. यह भी संभव है कि पंडालम के शाही परिवार ने चोलों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए हों, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने चोल वंश की पहचान को अपनाया.

पांडियाम राजपरिवार के लोग खुद को चोल वंश से जुड़ा बताते हैं. पांडियम का असर अब भी केरल में है. इस राजपरिवार के लोग धार्मिक और सामाजिक तौर पर सक्रिय रहते हैं. (news18)

पंडालम सबरीमाला मंदिर के संरक्षक हैं

आज के समय में पंडालम राजवंश का शाही परिवार अब ज्यादा सक्रिय नहीं है. भारत में स्वतंत्रता के बाद राजशाही समाप्त हो गई. हालांकि यह परिवार अब भी सांस्कृतिक और धार्मिक तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. पंडालम राजवंश के सदस्य सबरीमाला मंदिर के संरक्षक और प्रबंधक के रूप में कार्य करते हैं. वे मंदिर के वार्षिक उत्सवों, जैसे मकर संक्रांति और मंडल पूजा, में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

मंदिर के कामों के साथ सामाजिक तौर पर भी सक्रिय

पंडालम राजवंश के सदस्य सबरीमाला मंदिर की परंपराओं को बनाए रखने में सक्रिय हैं. वे मंदिर के अनुष्ठानों, जैसे तिरुवभरणम (पवित्र आभूषणों का जुलूस), में भाग लेते हैं. यह जुलूस पंडालम महल से शुरू होता है और सबरीमाला तक जाता है, जो इस परिवार के धार्मिक महत्व को दिखाता है. पंडालम राजवंश के सदस्य आजकल सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों के माध्यम से अपने क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं. इसके अलावा वो शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में भी सक्रिय हैं. कुछ परिवार के सदस्य गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और धर्मार्थ ट्रस्टों के साथ जुड़े हैं.

पंडालम राजवंश अब शासक वर्ग नहीं है, फिर भी उनके पास कुछ पारंपरिक संपत्तियां और भूमि हैं, जिनका प्रबंधन वे करते हैं. इसके अलावा परिवार के कुछ सदस्य व्यवसाय और अन्य पेशेवर क्षेत्रों में सक्रिय हैं. कुछ ने शिक्षा, होटल और कृषि जैसे क्षेत्रों में निवेश किया है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी बनी हुई है.

संजय श्रीवास्तवडिप्टी एडीटर

लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...और पढ़ें

लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...

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Location :

Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh

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