क्या एटम बम रखे-रखे हो जाते हैं फुस्स, या सदियों तक मचा सकते हैं तबाही?

4 hours ago

Nuclear Weapons: पहलगाम में आतंकी घटना के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंध पिछले कुछ सालों में अपने सबसे खराब दौर में हैं. जो मौजूदा हालात हैं उसके हिसाब से दोनों देशों के ऊपर युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ पहले ही कह चुके हैं कि दुनिया को यह नहीं भूलना चाहिए कि दोनों ही देशों के पास परमाणु हथियार हैं. तो क्या हम एक बार फिर परमाणु युद्ध के कगार पर खड़े हैं? पाकिस्तान एनपीटी (परमाणु प्रसार संधि) का सदस्य नहीं है. उसने ‘नो फर्स्ट यूज’ नीति भी घोषित नहीं की है. यानी परमाणु हमले का खतरा बढ़ता जा रहा है. 

इन हालात में एटम बम एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि ये विनाशकारी हथियार कितने समय तक ‘जिंदा’ रह सकते हैं? क्या इनकी भी कोई एक्सपायरी डेट होती है. जैसे हमारे फ्रिज में रखे खाने की? चलिए इस सवाल की गहराई में उतरते हैं.

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क्या एटम बम की होती है एक्सपायरी
दरअसल एटम बम उस तरह से एक्सपायर नहीं होते जैसे कि कोई खाद्य पदार्थ सड़ जाता है. इनका जीवनकाल थोड़ा अलग होता है, जो कई कारकों पर निर्भर करता है. प्लूटोनियम या यूरेनियम जैसे रेडियोधर्मी तत्व एटम बम का दिल होते हैं. इनकी खासियत यह है कि ये बहुत धीरे-धीरे विघटित होते हैं. प्लूटोनियम-239 की हाफ-लाइफ लगभग 24,100 साल होती है. जबकि यूरेनियम-235 की तो और भी लंबी, लगभग 700 मिलियन साल. इसका मतलब है कि इन तत्वों को अपनी आधी शक्ति खोने में हजारों-लाखों साल लग जाएंगे. तो, इस लिहाज से तो ये सदियों तक काम कर सकते हैं.

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समय के साथ खराब हो जाते हैं इसके पुर्जे
लेकिन एक एटम बम सिर्फ रेडियोधर्मी तत्वों का ढेर नहीं होता. इसमें कई जटिल मैकेनिकल और इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियां भी होती हैं. ये पुर्जे समय के साथ खराब हो सकते हैं. सोचिए, 50-100 साल पुरानी कोई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस आज ठीक से काम करेगी क्या? शायद नहीं. उसी तरह, बम के डेटोनेटर, विस्फोटक और अन्य कम्पोनेंट्स अपनी विश्वसनीयता खो सकते हैं. हीलियम के क्षरण से नष्ट होने से पहले परमाणु हथियार लगभग 30-50 साल तक चलते हैं. आमतौर पर उच्च विकिरण वाले वातावरण में परमाणु हथियार लगभग एक दशक तक चलते हैं. फिर वे नष्ट हो जाते हैं या निष्क्रिय हो जाते हैं. 

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50-60 साल होता है एटम बम का जीवन
परमाणु बमों द्वारा उत्पादित अधिकांश रेडियोएक्टिव आइसोटोप्स (समस्थानिकों) का जीवन लगभग 50-60 साल होता है. कुछ आधुनिक परमाणु हथियारों में ट्रिटियम नामक एक और रेडियोधर्मी गैस का इस्तेमाल होता है, जो विस्फोट की क्षमता को बढ़ाने में मदद करती है. लेकिन, ट्रिटियम की लाइफ सिर्फ 24 साल होती है. इसका मतलब है कि हर 24 साल में इसकी पूरी मात्रा हीलियम में बदल जाती है, जो किसी काम की नहीं होती. इसलिए, जिन बमों में ट्रिटियम होता है, उन्हें समय-समय पर ‘रिफिल’ करने की आवश्यकता होती है. वरना उनकी क्षमता कम हो जाएगी.

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क्या ये हमेशा के लिए सुरक्षित हैं?
भले ही रेडियोधर्मी तत्व बहुत लंबे समय तक टिक सकते हैं. लेकिन बम के अन्य नाजुक हिस्से, खासकर विस्फोटक और इलेक्ट्रॉनिक घटक, समय के साथ निष्क्रिय हो सकते हैं. इनकी वजह से अनचाहा विस्फोट या ‘फिज़ल’ (धमाका तो होगा, लेकिन पूरी क्षमता से नहीं) होने का खतरा बढ़ जाता है. यही कारण है कि परमाणु हथियार रखने वाले देश अपने शस्त्रागार का नियमित रूप से निरीक्षण और रखरखाव करते हैं. पुराने कम्पोनेंट को बदला जाता है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि हथियार सुरक्षित और प्रभावी बने रहें. यह एक बहुत ही जटिल और खर्चीला काम है.

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रखरखाव पर निर्भर है उनकी जिंदगी
क्या आप जानते हैं कि कुछ वैज्ञानिक यह स्टडी कर रहे हैं कि पुराने परमाणु हथियारों के प्लूटोनियम पर समय का क्या प्रभाव पड़ता है? यह समझना महत्वपूर्ण है ताकि भविष्य में इन हथियारों को सुरक्षित ढंग से निष्क्रिय किया जा सके. वास्तव में एटम बम सैकड़ों या हजारों सालों तक काम कर सकते हैं. लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनके महत्वपूर्ण गैर-रेडियोधर्मी कम्पोनेंट्स का रखरखाव कैसे किया जाता है. यह एक ऐसी दौड़ है जहां समय और तकनीक दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. 

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भारत-पाक के पास कितने बम
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के पास लगभग 164 परमाणु हथियार हैं. उसके पास भूमि-आधारित, समुद्र-आधारित और हवाई-प्रक्षेपण परमाणु क्षमताएं हैं. भारत ने ‘नो फर्स्ट यूज’ पॉलिसी घोषित की थी. जिसका अर्थ है कि भारत ने युद्ध में पहले परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करने की कसम खायी है. स्वीडन के थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के पास 170 परमाणु वॉरहेड हैं. जबकि भारत के पास 172 हैं.

एटम बम खत्म कर देता है जीवन
हम सब जानते हैं कि परमाणु बम इतना खतरनाक होता है कि अगर कहीं गिरा दिया जाए तो दशकों तक जीवन का नामो-निशान नहीं रहेगा. जैसा कि जापान में देखने को मिला था. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने छह अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा और नौ अगस्त 1945 को जापान के ही नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था. इन हमलों में दोनों शहरों लगभग डेढ़ लाख लोग जान से हाथ धो बैठे थे. ऐसे में कोई नहीं चाहता कि दोबारा दुनिया के किसी भी कोने में ऐसा कुछ हो, जो मानवता का विनाश करे.

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