क्या राष्ट्रपति को किसी बिल पर SC की राय लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है?

1 day ago

Last Updated:April 15, 2025, 09:58 IST

Supreme Court News: तमिलनाडु मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कई सवाल उठने लगे हैं. सबसे बड़ा प्रश्‍न यह है कि क्‍या राष्‍ट्रपति को किसी भी विधेयक पर सुप्रीम कोर्ट की राय लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है? इ...और पढ़ें

क्या राष्ट्रपति को किसी बिल पर SC की राय लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद राष्‍ट्रपति के अधिकार को लेकर सवाल उठने लगे हैं.

हाइलाइट्स

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संविधान से जुड़ा बड़ा सवाल उठासंविधान के अनुच्‍छेद 143 के प्रावधान पर भी छिड़ गई है बहसकार्यपालिका, न्‍यायपालिका और विधायिका की शक्तियों की बात

नई दिल्‍ली. सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु से जुड़े एक मामले में अहम फैसला दिया है. राष्‍ट्रपति के अधिकार से जुड़ा होने की वजह से यह निर्णय और भी महत्‍वपूर्ण हो गया है. साथ ही संविधान के अनुच्‍छेद 143 के तहत दिए गए प्रावधान पर भी चर्चा छिड़ गई है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राष्‍ट्रपति संवैधानिक मामले से जुड़े विधेयकों को मशवरे के लिए शीर्ष अदालत भेजे. अब सवाल यह है कि क्‍या राष्‍ट्रपति को हर विधेयक पर सुप्रीम कोर्ट की राय लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है? साथ ही एक गंभीर सवाल ए‍क और उठता है कि क्‍या शीर्ष अदालत अनुच्‍छेद 143 के तहत किसी भी विधेयक की संवैधानिकता पर राय के लिए राष्‍ट्रपति को फोर्स कर सकती है.

संविधान के अनुच्छेद 201 में राज्यपालों द्वारा उनके लिए आरक्षित विधेयक पर राष्ट्रपति की स्वीकृति रोकने के लिए कोई समय सीमा या कारण नहीं बताया गया है. लेकिन, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने राष्ट्रपति से वह करने को कहा जो संविधान द्वारा अनिवार्य नहीं है- विधेयक पर स्वीकृति रोकने या उसे राज्य विधानमंडल को वापस भेजने के लिए विस्तृत कारण बताना. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘हमारा यह भी मानना ​​है कि असंवैधानिक लगने वाले विधेयक का ज्‍यूडिशियल माइंड के साथ असेसमेंट होना चाहिए. राष्ट्रपति को न केवल रोका गया है, बल्कि संवैधानिक रूप से उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे किसी विधेयक की वैधता के सवाल को इस कोर्ट (सुप्रीम कोर्ट) के पास भेजे, ताकि उसकी संवैधानिकता का पता लगाया जा सके और उसके अनुसार राष्ट्रपति को अनुच्छेद 201 के तहत संबं‍धित विधेयक के मामले में कार्रवाई करने में सक्षम बनाया जा सके.’ सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने सबको चौंकाया है. इसने लोगों को चौंका दिया है क्योंकि संवैधानिक मुकदमेबाजी में ‘अग्रिम निर्णय’ की कोई अवधारणा नहीं है, जैसा कि जीएसटी और आयकर कानूनों के तहत उपलब्ध है। अदालत ने कहा, “हमारा यह सुविचारित मत है कि संवैधानिक अदालतों को किसी विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी संवैधानिक वैधता के बारे में सुझाव देने या राय देने से रोका नहीं गया है।” अदालत ने खुद को ऐसी प्रक्रिया में शामिल कर लिया जो शायद ही उसके अधिकार क्षेत्र में आती हो।

अनुच्‍छेद 143 क्‍या कहता है?
अब सवाल उठता है कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के जिस अनुच्‍छेद 143 का हवाला दिया है, उसमें क्‍या प्रावधान हैं? दरअसल, अनुच्छेद 143 में विधेयक या संवैधानिकता के प्रश्न का कोई उल्लेख नहीं है. इसमें कहा गया है, ‘यदि किसी भी समय राष्ट्रपति को ऐसा लगता है कि कानून या फैक्‍ट का कोई सवाल उठा है या ऐसा होने की संभावना है, जो इस तरह की प्रकृति और ऐसे सार्वजनिक महत्व का है कि इसपर सुप्रीम कोर्ट की राय लेना चाहिए तो उसे टॉप कोर्ट के पास भेजा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट इसपर विचार करेगा और जो उचित होगा, राष्‍ट्रपति को राय देगा.’ अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जहां विधेयक के कानून बनने पर लोकतंत्र के लिए खतरा होगा, राष्ट्रपति का निर्णय इस आधार पर होना चाहिए कि यह कॉन्‍सटीट्यूशनल कोर्ट ही है, जिन्हें संविधान और कानूनों की व्याख्या करने का अंतिम अधिकार दिया गया है.’

क्‍या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, ‘यह अपेक्षा की जाती है कि यूनियन एग्‍जीक्‍यूटिव को किसी विधेयक की वैधता निर्धारित करने में कोर्ट की भूमिका नहीं निभानी चाहिए और व्यवहार में उसे अनुच्छेद 143 के अंतर्गत ऐसे प्रश्न को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भेजना चाहिए. हमें यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि किसी विधेयक में विशुद्ध रूप से कानूनी मुद्दों पर विचार करते समय कार्यपालिका के हाथ बंधे होते हैं और केवल कॉन्‍स्‍टीट्यूशनल कोर्ट को ही विधेयक की संवैधानिकता के संबंध में स्‍टडी करने और सिफारिशें देने का विशेषाधिकार है.’ बता दें कि अनुच्छेद 143 के अंतर्गत शीर्ष अदालत की राय सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है.

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

April 15, 2025, 09:58 IST

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