कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी ने एक बार फिर केंद्र सरकार के ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने सोमवार को द हिंदू में प्रकाशित लेख में ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट को ‘योजनाबद्ध गलत साहसिक कदम’ करार दिया. उन्होंने कहा कि यह प्रोजेक्ट आदिवासी अधिकारों को कुचलता है और महत्वपूर्ण संवैधानिक, कानूनी और पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को दरकिनार करता है. उन्होंने इसे ऐसी पर्यावरणीय और आदिवासी आपदा बताया है, जिसमें निकोबारी लोग अपने पुश्तैनी गांवों से ‘स्थायी रूप से विस्थापित’ हो जाएंगे. ये लोग 2004 की सुनामी के बाद अपने गांवों में वापस लौटने का सपना देखते रहे हैं, हालांकि अब उस सपने पर पानी फिर सकता है.
सोनिया गांधी ने अपने इस लेख में ‘विशाल पैमाने पर पेड़ों की कटाई” का भी आरोप लगाया गया है, जिसमें 8.5 लाख से 58 लाख पेड़ों के नुकसान की आशंका जताई गई है. उन्होंने सरकार के मुआवजा वनीकरण (कंपंसेटरी एफोरेस्टेशन) के दृष्टिकोण की भी आलोचना की और इसे पुराने वर्षा वनों की जटिलता और पर्यावरणीय मूल्य को प्रतिस्थापित करने में पूरी तरह अपर्याप्त बताया.
क्या है यह ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट?
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट बंगाल की खाड़ी में अंडमान और निकोबार समूह के सबसे दक्षिणी द्वीप, ग्रेट निकोबार के लिए प्रस्तावित एक बड़ा बुनियादी ढांचा और विकास योजना है. यह एक अरबों डॉलर की रणनीतिक और बुनियादी ढांचा योजना है, जिसमें ग्रेट निकोबार द्वीप पर एक बंदरगाह, हवाई अड्डा, बिजली और टाउनशिप सुविधाएं बनाने का लक्ष्य है, जो भारत की समुद्री सुरक्षा और व्यापार को बढ़ावा देगा. इस प्रोजेक्ट को 2022 में पर्यावरण और वन मंजूरी (कुछ शर्तों के साथ) मिल चुकी है. प्रोजेक्ट की कुल लागत लगभग 81,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है.
नीति आयोग के नेतृत्व में और अंडमान- निकोबार द्वीप समन्वित विकास निगम (ANIIDCO) के माध्यम से लागू इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य ग्रेट निकोबार को रणनीतिक, आर्थिक और पर्यटन महत्व का केंद्र बनाना है.
इसके तहत अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT) बनाए जाने की योजना है. गलाथिया खाड़ी में एक गहरे समुद्र का बंदरगाह, जिसकी क्षमता लगभग 16 मिलियन टीईयू होगी. एक TEU 20 फुट लंबा कंटेनर के बराबर होती है. ऐसे में इस बंदरगाह की क्षमता सालाना 1.60 करोड़ कंटेनरों को संभालने की होगी. यह दुनिया के सबसे व्यस्त शिपिंग मार्ग, मलक्का जलडमरूमध्य के पास ग्रेट निकोबार की स्थिति का लाभ उठाएगा.
इसके अलावा ग्रीनफील्ड अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट प्रोजेक्ट पर भी काम चल रहा है. यह लोगों की आवाजाही और रक्षा दोनों जरूरतों को पूरा करेगा. 2050 तक इसकी यात्री क्षमता लगभग 4,000 प्रति घंटा होने की उम्मीद है. वहीं लगभग 3 से 4 लाख लोगों के लिए एक प्लान्ड शहर बनाने की योजान है, जिसमें घरों, बाजार और दफ्तरों की भी व्यवस्था होगी. 450 मेगावाट का गैस और सौर-आधारित पावर प्लांट बनाने के साथ ही सड़कें, पानी की आपूर्ति और सहायक बुनियादी ढांचा बनाने की योजना है.
क्यों अहम है यह प्रोजेक्ट?
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट न केवल बुनियादी ढांचे और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक महत्व के लिए भी अहम है.
ग्रेट निकोबार सिक्स डिग्री चैनल के करीब है, जो मलक्का जलडमरूमध्य के पास एक महत्वपूर्ण मार्ग है, जहां से ग्लोबल ट्रेड का 30-40% और चीन की अधिकांश ऊर्जा आयात गुजरता है. एक ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह और हवाई अड्डे के विकास से भारत इस व्यस्त और महत्वपूर्ण चोकपॉइंट के समुद्री यातायात की निगरानी और सुरक्षा कर सकता है. यह भारत को हिंद महासागर में चीन की मौजूदगी, विशेष रूप से बीजिंग की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति का मुकाबला करने की क्षमता देता है. यह हिंद महासागर में चीनी बंदरगाहों और सुविधाओं का नेटवर्क है.
इसके साथ ही यह बनने वाला एयरपोर्ट आम लोगों की आवाजाही के साथ-साथ रक्षा उद्देश्यों को भी पूरा करेगा. इसके नौसेना और वायुसेना की तेजी से तैनाती की जा सकेगी. यह भारत के एकमात्र त्रि-सेवा कमांड, अंडमान और निकोबार कमांड में निगरानी को मजबूत करेगा, जो अंडमान सागर और बंगाल की खाड़ी जैसे प्रमुख समुद्री क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है, जहां बाहरी ताकतें सक्रिय हैं.
चीन को भी जवाब
चीन ने म्यांमार, श्रीलंका और पाकिस्तान में बंदरगाहों जैसे ग्वादर, हंबनटोटा और क्याकप्यू में भारी निवेश किया है. ग्रेट निकोबार में एक विश्वस्तरीय भारतीय बंदरगाह क्षेत्रीय और वैश्विक शिपिंग के लिए चीनी बंदरगाहों का विकल्प प्रदान करेगा, भारत को इंडो-पैसिफिक में लॉजिस्टिक्स हब के रूप में स्थापित करेगा और भू-राजनीतिक या सैन्य तनाव के दौरान भारत को लाभ देगा.
यह बंदरगाह और इसका सहायक बुनियादी ढांचा भारत की शिपिंग लेन को ट्रैक करने, निगरानी करने और नियंत्रित करने की क्षमता को बेहतर बनाएगा. यह क्वाड सुरक्षा पहल (अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ) में भारत की भूमिका को मजबूत करेगा, जो इंडो-पैसिफिक में मुक्त और खुली नेविगेशन सुनिश्चित करता है.
2004 की सुनामी ने इस क्षेत्र में भारत की कमजोरी को उजागर किया था. ग्रेट निकोबार में एक आधुनिक बंदरगाह और हवाई अड्डा मानवीय सहायता और आपदा राहत क्षमताओं को बढ़ाएगा, जिससे भारत दक्षिण-पूर्व एशिया में आपदा प्रतिक्रिया में तेजी से कार्य कर सकेगा और क्षेत्र में सुरक्षा प्रदाता के रूप में अपनी छवि को बेहतर बनाएगा.
क्यों हो रहा विवाद?
कई लोग इस प्रोजेक्ट से निकोबार द्वीपसमूह के पर्यावरण और सामाजिक ताने-बाने पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंता जता रहे हैं. सोनिया गांधी सहित कई विपक्षी नेताओं ने इस प्रोजेक्ट को वहां की जनजातियों को लेकर बड़ा संकट बताया है.
कांग्रेस नेताओं ने 8 लाख से अधिक पेड़ों की कटाई और निकोबार मेगापोड और लेदरबैक कछुए जैसे दुर्लभ प्रजातियों पर खतरे की चिंता जताई है. कांग्रेस सांसद और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा, ‘पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का दावा है कि 8.5 लाख पेड़ काटे जाएंगे, लेकिन मंत्रालय के ही कुछ आंकड़े पर आधारित अनुमानों में 32 लाख से 58 लाख पेड़ों तक कटने की बात सामने आ रही है.’
आदिवासी समुदाय पर खतरे की चिंता
यहां खास तौर से कमजोर जनजातीय समूहों शोम्पेन और निकोबारी जनजातियों पर विस्थापन और सांस्कृतिक प्रभाव की चिंता उठाई गई है. पिछले हफ्ते, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने जनजातीय मामलों के मंत्री जुअल ओराम को पत्र लिखकर प्रोजेक्ट को मंजूरी देने में वन अधिकार अधिनियम (FRA) के कथित उल्लंघन पर चिंता जताई थी. उन्होंने सरकार से कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने का आग्रह किया.
राहुल गांधी ने अपने पत्र में कहा, ‘आदिवासी समुदाय 2004 की सुनामी के दौरान विस्थापित हुए थे और अपने पुश्तैनी इलाकों में वापस नहीं लौट सके. अब उन्हें डर है कि यह प्रोजेक्ट उनकी जीवन शैली को खतरे में डालेगा और उनकी जमीन के हस्तांतरण से उनकी और हाशिए पर धकेल दिया जाएगा.’
ग्रेट निकोबार एक उच्च-जोखिम भूकंप और सुनामी क्षेत्र में है, जहां 2004 की सुनामी ने भारी तबाही मचाई थी. जयराम रमेश ने पिछले साल कहा था, ‘2004 की सुनामी के दौरान यह द्वीप लगभग 15 फीट तक डूब गया था. इतने बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा बनाने का मतलब है आपदा को न्योता देना.’
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