पहलगाम आतंकी हमले के दौरान कुछ पर्यटकों ने कथित तौर पर खुद को बचाने के लिए ‘अल्लाहु अकबर’ का नारा लगाया था. क्या होता है इसका मतलब. ये कब बोला जाता है. कुछ पर्यटकों ने बताया कि उन्होंने हमलावरों को पुरुषों से कलमा पढ़ने के लिए कहते देखा , उन्होंने ‘अल्लाहु अकबर’ का नारा लगाना शुरू कर दिया.
अब जानते हैं कि ये संबोधन क्यों किया जाता है. कितना पुराना है. किन देशों में बोला जाता है. ‘अल्लाहु अकबर’ एक अरबी वाक्यांश है जिसका प्रयोग मुस्लिम समुदाय द्वारा ईश्वर में विश्वास की सामान्य घोषणा और उसके प्रति धन्यवाद प्रकट करने के लिए किया जाता है.
इसका मतलब ये भी है “अल्लाह सबसे महान है” या “ईश्वर सर्वश्रेष्ठ है.” यह इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण नारा है, जो विश्व भर में मुसलमानों द्वारा कई अलग अलग तरीके और अवसरों पर उपयोग में लाया जाता है. यह वाक्यांश धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व रखता है. इसे इस्लाम के मूल सिद्धांतों में एक माना जाता है.
अर्थ और धार्मिक महत्व
“अल्लाहु अकबर” दो शब्दों से मिलकर बना है: “अल्लाह” यानि ईश्वर और “अकबर” यानि सबसे महान. यह वाक्यांश इस्लाम में एकेश्वरवाद (तौहीद) के सिद्धांत को व्यक्त करता है, जो यह दर्शाता है कि अल्लाह सभी चीजों से श्रेष्ठ और सर्वोच्च है. यह मुसलमानों के लिए हमेशा बोला जाने वाला वाक्य है कि ईश्वर की शक्ति और महिमा हर चीज से ऊपर है.
कुरान में इसका उपयोग नहीं मिलता
इस वाक्यांश का उपयोग कुरान में नहीं मिलता, लेकिन यह हदीस (पैगंबर मुहम्मद के कथन और कार्य) और इस्लामी परंपराओं में बार-बार प्रकट होता है. यह इस्लाम में “तकबीर” के रूप में जाना जाता है, जो नमाज (सलाह), हज, और अन्य धार्मिक अवसरों पर बोला जाता है. उदाहरण के लिए, नमाज की शुरुआत में “तकबीर-ए-तहरीमा” यानि अल्लाहु अकबर कहकर नमाज शुरू करना जरूरी है. यह इस्लाम में विश्वास और समर्पण का प्रतीक है.
पैगंबर भी इसे बोलते थे
“अल्लाहु अकबर” की उत्पत्ति इस्लाम के शुरुआती दौर यानी 7वीं शताब्दी में मानी जाती है. यह वाक्यांश पैगंबर मुहम्मद के समय से ही उपयोग में था. हदीस के अनुसार, पैगंबर ने विभिन्न अवसरों पर इस शब्दों का उपयोग किया, विशेष रूप से युद्ध के समय और धार्मिक अनुष्ठानों में.
सैनिक लगाते थे ये नारा
इस्लाम के शुरुआती युद्धों जैसे कि बदर और उहद की लड़ाइयों में मुस्लिम सैनिक “अल्लाहु अकबर” का नारा लगाकर अपनी एकता और विश्वास को व्यक्त करते थे. इस तरह ये दो शब्द न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सैन्य संदर्भों में भी महत्वपूर्ण बन गये. इसकी उत्पत्ति को 1400 वर्ष से अधिक पुराना माना जा सकता है, जो इसे इस्लाम के सबसे प्राचीन और कालजयी नारों में एक बनाता है.
कहां कहां और कब होता है इसका उपयोग
– प्रत्येक नमाज में “अल्लाहु अकबर” का उपयोग कई बार होता है, विशेष रूप से रुकनों (नमाज के विभिन्न चरणों) के बीच. यह नमाज की शुरुआत और बदलाव के बीच एक संकेत है.
– मस्जिदों से नमाज के लिए बुलाए जाने वाली अज़ान में “अल्लाहु अकबर” चार बार बोला जाता है, जो मुसलमानों को नमाज के लिए बुलाता है.
– तीर्थयात्रा के दौरान विशेष रूप से तवाफ (काबा के चारों ओर चक्कर लगाना) और अन्य अनुष्ठानों में, “अल्लाहु अकबर” बार-बार दोहराया जाता है.
– ईद और उत्सव: ईद-उल-फित्र और ईद-उल-अज़हा जैसे अवसरों पर, मुस्लिम समुदाय अल्लाहु अकबप “तकबीर” का उच्चारण करके उत्सव मनाता है.
चाहे खुशी हो या मुश्किल हमेशा ‘अल्लाहु अकबर’
कई मुसलमानों के रोजाना के जीवन में चाहे खुशी हो या आश्चर्य, खुशी या कठिन परिस्थितियां, वो हमेशा ईश्वर की महिमा को याद करने के लिए इसे बुदबुदाते या कहते रहते हैं. उदाहरण के लिए, किसी सकारात्मक घटना पर “अल्लाहु अकबर” कहना आम है।
जोश के लिए भी ‘अल्लाहु अकबर’
ऐतिहासिक रूप से इन शब्दों या नारे का इस्तेमाल युद्ध में जोश लाने और एकता के लिए किया जाता था. आधुनिक समय में, कुछ समूह इसे राजनीतिक या सामाजिक आंदोलनों में उपयोग करते हैं.
कितने देशों में उपयोग
“अल्लाहु अकबर” का उपयोग विश्व के उन सभी देशों में होता है जहां मुस्लिम आबादी है. इस्लाम विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है. करीब 190 करोड़ मुसलमान 50 से अधिक देशों में फैले हुए हैं. कुछ प्रमुख देश जहां “अल्लाहु अकबर” नियमित रूप से बोला जाता है, उनमें खाड़ी के देश, अफ्रीकी देश और एशियाई देश शामिल हैं.
चरमपंथी समूह भी लगाते हैं ये नारा
हाल के दशकों में, “अल्लाहु अकबर” का उपयोग कुछ चरमपंथी समूहों द्वारा हिंसक गतिविधियों के दौरान किया गया है, जिसके कारण इसे कुछ क्षेत्रों में नकारात्मक अर्थों से जोड़ा गया है. इस्लामी विद्वानों और समुदायों ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि “अल्लाहु अकबर” का गलत उपयोग इसकी पवित्रता को कम नहीं करता.