आखिर क्या वजह थी कि महाभारत में जब महर्षि व्यास को नियोग के लिए राजमहल में बुलाया गया तो पांडवों और कौरवों की दोनों दादियां अंबिका और अंबालिका उनसे बुरी तरह डर गईं. आखिर व्यास किस तरह उनके पास पहुंचे, जिसे देखते ही वो बुरी तरह डर गईं. व्यास से तो सुंदर होकर आने के लिए कहा गया, तब भी उन्होंने कोमल रानियों में भय पैदा कर दिया.
महाभारत काल में नियोग परंपरा कॉमन थी. जब कोई पुरुष बच्चा पैदा नहीं कर पाता था या उसकी मृत्यु हो जाती थी तो उसकी पत्नी नियोग से बच्चा पैदा करने के लिए दूसरे पुरुष की मदद ले सकती थी. जब पांडवों और कौरवों की दादियों को अपने जीवन में संतान प्राप्ति के लिए नियोग करना पड़ा तो शायद उन्हें लगा था कि ये काम भीष्म के जरिए कराया जाएगा. लेकिन भीष्म ने साफ इनकार कर दिया.
सबसे पहले भीष्म से नियोग के लिए कहा गया
महाभारत के आदिपर्व में इस बारे में विस्तार से लिखा गया है. हुआ ये कि जब राजा शांतनु और उनकी पत्नी रानी सत्यवती से पैदा हुए दोनों पुत्रों चित्रांगद और विचित्रवीर्य की असमय ही मृत्यु हो गई तो एक बड़ा सवाल ये था कि बगैर किसी संतान के अब राजपाट को कौन आगे बढ़ाएगा. कौन इस राजवंश को चलाएगा. ऐसे में राजमाता सत्यवती ने पहली मदद भीष्म से ही मांगी. अंबिका और अंबालिका की शादी विचित्रवीर्य से हुई थी.
अंबिका और अंबालिका को भी लगा भीष्म से ही नियोग होगा
सत्यवती ने पहले अपनी दोनों वधुओं अंबिका और अंबालिका से यही कहा कि वो नियोग के लिए तैयार रहें. इसके लिए वह भीष्म को मना लेंगी. अंबिका और अंबालिका को इसमें कोई दिक्कत नहीं थी.
तब सत्यवती और भीष्म में क्या बात हुई
सत्यवती ने भीष्म से कहा, राजा शांतनु की वंश का रक्षा का भार अब तुम पर है. धर्म और लोकचार भी यही कहता है. अब मेरे आदेश से दोनों भाइयों की पत्नियों के गर्म से संतान पैदा करो. भीष्म बोले, मैं सबकुछ कर सकता हूं लेकिन ये काम नहीं क्योंकि मैने ब्रह्मचर्य की प्रतीज्ञा की है, उससे पीछे नहीं हट सकता.
अंबिका और अंबालिका ऋषि व्यास को देखते ही बुरी तरह डर गईं. वो सोच भी नहीं सकती थीं कि उन्हें ऋषि के पास जाना होगा. (image generated by News18 AI)
उन्होंने फिर सत्यवती से कहा, माता, आप विचित्रवीर्य की पत्नियों से संतान के लिए धन देकर किसी गुणवान ब्राह्मण को नियुक्त करें. सत्यवती लज्जा से हंसी और एक रहस्य बताया कि कन्यावस्था में ऋषि पाराशर से उन्हें एक पुत्र हुआ था, जो अब महर्षि व्यास हैं. मैं उन्हें ही इसके लिए बुलाती हूं. और फिर यही हुआ.
व्यास का रूप कैसा था कि देखते ही दोनों रानियां डर गईं
जब व्यास ऋषि आए तो उन्हें देखते ही दोनों कोमल रानियां बुरी तरह डर गईं. उन्होंने ऐसा शख्स नहीं देखा था, क्योंकि वो तो बचपन से महलों में बहुत नाजोअदा में पली बढ़ीं. फिर जब विचित्रवीर्य से विवाह हुआ तो वो भी सुंदर युवक था. व्यास तो ऐसे थे कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था. वो दोनों सहम गईं थीं कि उन्हें व्यास के पास जाना होगा.
उनका ये भयंकर रूप कैसा था
ऋषि व्यास लंबे समय तक तपस्या में लीन थे. सीधे वहीं से उठकर चले आए थे. लंबी दाढ़ी धूल मिट्टी से सनी हुई थी यही हाल शरीर का था, जिस पर तप पर बैठे होने के कारण धूल और नमी की परतें जमकर मोटी हो गईं थीं. सिर की लंबी जटाएं लटक रही थीं. नाखून बढ़े हुए थे. आंखें लाल – लाल. ये रूप बहुत भयंकर था. दोनों राज वधूएं तो दे्खते ही गश खा गईं.
ऋषि व्यास का रूप भयंकर था. उसी वजह से दोनों रानियां जब उनके पास नियोग के लिए गईं तो वो इसके लिए तैयार नहीं थीं. (image generated by News18 AI)
अंबिका के आंख बंद करने का मतलब क्या था
वह इतने भयंकर दीख रहे व्यास से कैसे नियोग करें, ये सोचना ही उनके लिए बहुत मुश्किल था. लेकिन राज आदेश था कि उन्हें ऐसा करना ही था, तो उन्होंने किया. सबसे पहले वह नियोग करने अंबिका के पास गए. जैसे वह गए अंबिका ने उनके तेजस्वी और भयानक रूप से डरकर आंखें बंद कर लीं.
बेशक उसने सीधे तौर पर इनकार नहीं किया और ये भी नहीं कहा, “मैं नियोग नहीं करना चाहती”.लेकिन उसके आंखें बंद कर लेने की प्रतिक्रिया स्पष्ट था कि वह अनिच्छुक थीं. आदिपर्व के अध्याय 99-102 में व्यास ने फिर खुद ही सत्यवती से कहा, “अंबिका भय से आंखें मूंदे रही, इसलिए उसका पुत्र अंधा होगा.” ऐसा ही हुआ भी. धृतराष्ट्र अंधे पैदा हुए.
पहली बार जब ऋषि व्यास के जाते ही अंबि्का ने आंखें बंद कर लीं तो राजमाता सत्यवती ने व्यास से कुछ सुंदर होकर आने के लिए कहा लेकिन रानी अंबालिका इसके बाद भी डर से पीली पड़ गई. (image generated by News18 AI)
तब व्यास से सुंदर होकर आने के लिए कहा गया
तब सत्यवती ने व्यास को अंबालिका के पास “सुंदर रूप धारण करके जाने” को कहा. “त्वमप्यलंकृतो भूत्वा अंबालिकां प्रसादय.” (महाभारत, आदिपर्व 101.31) यानि “तुम सजधज कर अलंकृत होकर अंबालिका के पास जाओ.” व्यास ने इस बार अपना रूप थोड़ा सुधारा, लेकिन फिर भी अंबालिका भय से कांप उठी और पीली पड़ गई. तब पांडु का जन्म हुआ. जाहिर सी बात है कि व्यास ने पूरी तरह “साफ-सुथरा” रूप नहीं धारण किया. बस केवल थोड़ा सा शृंगार किया, लेकिन उनका तेज और उग्र स्वभाव बना रहा, जिससे अंबालिका भी नहीं संभल पाई.
कहा जा सकता है कि नियोग एक धार्मिक प्रथा थी, लेकिन अंबिका-अंबालिका ने इसे मजबूरी में स्वीकार किया, न कि खुशी-खुशी. उनका डर व्यास के रूप और तेज से था, न कि स्वयं नियोग प्रथा से.