जब दुनिया के सबसे धनी शख्स हैदराबाद निजाम का दिल एक किन्नर पर आया, बनाया रानी

7 hours ago

मीर उस्मान अली खान हैदराबाद रियासत के सातवें और अंतिम निज़ाम थे. वह दुनिया के सबसे अमीर लोगों में थे. उनकी हैमिल्टन की एक घड़ी हीरों से जड़ी हुई थी. पोते के लिए हीरों से भरा एक खिलौना बनवाया. टाइम मैगजीन ने उनकी तस्वीर पर देते हुए उन्हें “दुनिया का सबसे अमीर आदमी” बताया.

उन्हें सनकी और अविश्वासी इंसान कहा जाता था. वह अपने परिवार, दोस्तों और यहां तक कि अपने बेटों पर भी भरोसा नहीं करते थे. उन्हें लगता था कि हर कोई केवल उनकी दौलत के पीछे भाग रहा है. वह ऐसे लोगों की तलाश करते थे जिन पर वह बिना किसी शर्त के भरोसा कर सकें.

यहीं से इस कहानी की नायिका और किन्नर मुबारक बेगम इंट्री होती है. मुबारक बेगम किन्नर थीं, जो हैदराबाद के गोलकोंडा इलाके में रहती थीं. किन्नर समुदाय परंपरागत रूप से आशीर्वाद देने, नाचने-गाने और मांगने का काम करता था.

माना जाता है कि निज़ाम की पहली मुलाकात मुबारक बेगम से तब हुई जब वह अपने समुदाय के साथ महल में किसी खुशी के मौके पर आशीर्वाद देने आई थीं. निज़ाम उनकी सादगी, बेबाक बातचीत और मीठी जुबान से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें अपने महल में ही रहने का न्योता दे दिया. धीरे-धीरे, मुबारक बेगम निज़ाम के सबसे करीबी और भरोसेमंद साथी बन गईं.

मुबारक बेगम किन्नर थीं

निज़ाम को लगता था कि मुबारक बेगम उनसे बिना शर्त प्यार करती हैं. वह उनकी दौलत के लिए नहीं, बल्कि उनके इंसानी रूप के लिए उनसे जुड़ी हैं. चूंकि मुबारक बेगम का कोई सीधा वारिस नहीं था, इसलिए निज़ाम को लगता था कि वह उनकी संपत्ति पर कब्जा करने की कोशिश नहीं करेंगी. निज़ाम को ये भी विश्वास था कि मुबारक बेगम और उनका समुदाय उनकी हर कीमत पर रक्षा करेगा.

निजाम के एकांत और उदासी को दूर करती थीं

मुबारक बेगम अपने हंसमुख स्वभाव, नृत्य और गीतों से निज़ाम के एकांत और उदासी को दूर करती थीं. वह उनकी देखभाल भी बखूबी करती थीं. उस जमाने में यह मान्यता थी कि किन्नरों का आशीर्वाद बहुत फलदायी होता है. निज़ाम का मानना था कि मुबारक बेगम का साथ और आशीर्वाद उनके और उनके राज्य के लिए शुभ है.

यह स्पष्ट है कि निज़ाम ने मुबारक बेगम को अपना जीवनसाथी माना. उन्हें महल में एक रानी की तरह दर्जा दिया. लेकिन क्या उन्होंने कानूनी या धार्मिक रूप से शादी की थी?

ज्यादातर इतिहासकार मानते हैं कि यह एक प्रतीकात्मक और भावनात्मक रिश्ता था, न कि कोई औपचारिक शादी. निज़ाम, जो खुद एक धार्मिक मुसलमान थे, शायद ही किसी ऐसे धार्मिक अनंष्ठान में शामिल होते जो इस्लामिक कानून (शरीयत) के अनुकूल न हो. इस्लामिक नियमों के तहत ऐसी शादी की कोई व्यवस्था नहीं है.

निजाम को मुबारक बेगम से प्यार हो गया

हालांकि ये तो पक्का है निजाम को मुबारक बेगम से प्यार हो गया था. हो सकता है उन्होंने अपने प्यार और सम्मान को दिखाने के लिए कोई निजी, गैर-धार्मिक समारोह आयोजित किया हो. उन्होंने मुबारक बेगम को ‘बेगम साहिबा’ की उपाधि दी, जो शाही परिवार की महिलाओं में तब वह रानी को ही दिया करते थे. उन्हें महल में रहने, निजी स्टाफ रखने और एक राजकुमारी की तरह जीवन जीने की सभी सुविधाएं दी गईं.

निज़ाम के प्रेम में पड़ने की असली वजह

निज़ाम का मुबारक बेगम के “प्रेम में पड़ना” रोमांटिक फिल्मों जैसा प्रेम नहीं था, बल्कि ये बहुत भावनात्मक था. उन्हें लगता था कि उन्हें ऐसा कोई मिल गया है जो बिना किसी लालच के उन्हें प्यार करता है. मुबारक बेगम उनके लिए एक साथी, मनोरंजनकर्ता, देखभाल करने वाली और संरक्षक की भूमिका निभाती थीं. वह जब मुबारक बेगम के पास होते थे तो दिखावटी राजसी व्यक्तित्व उतारकर साधारण इंसान बन जाते थे.

तब भी बेगम उनके साथ रहती रहीं

1948 में हैदराबाद के भारत में विलय के बाद निज़ाम की शक्ति और दौलत दोनों ही कम होने लगी. उन्हें ‘प्रिवी पर्स’ (भत्ता) मिलता था, लेकिन पहले जैसी बात नहीं रही. तब भी मुबारक बेगम उनके साथ रहीं. उनकी देखभाल करती रहीं.

मुबारक बेगम का बाद का जीवन मुश्किल रहा

निज़ाम की मृत्यु 1967 में हुई. उनकी मौत के बाद मुबारक बेगम का जीवन मुश्किल हो गया. निज़ाम के परिवार वालों ने उन्हें महल छोड़ने के लिए कह दिया. कहा जाता है कि उन्होंने अपना बचा हुआ जीवन हैदराबाद में ही एक साधारण से घर में गुमनामी में बिताया. उनकी मृत्यु की सही तारीख और परिस्थितियां भी इतिहास के धुंधलके में खो गईं.

किताबें क्या कहती हैं इस प्यार पर 

निजाम के इस अनोखे प्यार को लेकर कई किताबों में काफी कुछ कहा गया है.

विजय प्रसाद की लिखी किताब “द लास्ट निज़ाम: द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ मीर उस्मान अली खान” को निज़ाम पर लिखी सबसे प्रमाणित और व्यापक जीवनियों में से एक माना जाता है. प्रसाद ने किताब में इस रिश्ते का विस्तार से जिक्र किया है. उन्होंने बताया है कि निज़ाम मुबारक बेगम पर पूरी तरह से निर्भर थे. उन्हें ‘बेगम साहिबा’ की उपाधि दी थी, जो उनकी पत्नियों के लिए आरक्षित थी. हालांकि, वह ये भी स्पष्ट करते हैं कि यह एक औपचारिक इस्लामिक विवाह नहीं था, बल्कि एक प्रतीकात्मक और भावनात्मक रिश्ता था.

सर विलियम बार्टन की किताब “द निज़ाम: हिज़ हिस्ट्री एंड रिलेशन्स विद द ब्रिटिश गवर्नमेंट” की किताब में भी मुबारक बेगम के साथ उनके संबंधों का उल्लेख है. वह एक ब्रिटिश राजनीतिक एजेंट थे, जो हैदराबाद में तैनात थे. वह निज़ाम के करीबी दायरे से अच्छी तरह वाकिफ थे. उनकी पुस्तक में निज़ाम के व्यक्तिगत जीवन के बारे में विवरण है.

लेओनार्ड मोस्ले की किताब “हैदराबाद: ए बायोग्राफी” हैदराबाद शहर और उसके शासकों के इतिहास पर एक महत्वपूर्ण स्रोत है. मोस्ले निज़ाम के जीवन और उनकी सनकों का वर्णन करती है, इसमें मुबारक बेगम के प्रति उनका लगाव का जिक्र मिलता है.

द टाइम्स ऑफ इंडिया और द हिंदू जैसे अखबारों के पुराने अंक में निज़ाम के निजी जीवन पर अक्सर रिपोर्ट्स छपती थीं. मुबारक बेगम का जिक्र अक्सर “निज़ाम की केंपेनियन ” या “करीबी सहयोगी” के रूप में किया जाता था. 1967 में निज़ाम की मृत्यु के बाद, उनकी विरासत और परिवार पर कई रिपोर्ट्स में मुबारक बेगम का उल्लेख मिलता है, जहां उन्हें निज़ाम के करीबी के तौर पर बताया गया है.

हैदराबाद स्टेट आर्काइव्स के दस्तावेजों में खर्चों के ब्योरे में मुबारक बेगम और उनके लिए दिए गए भत्ते और उपहारों का रिकॉर्ड मिल सकता है. ये एक ठोस सबूत है जो दिखाता है उन्हें राज्य की ओर से एक महत्वपूर्ण व्यक्ति का दर्जा प्राप्त था.

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