जीवन का परम सत्य

5 days ago

जीवन क्षणभंगुर है, इसकी नश्वरता को देखना ही परम सत्य है. पीछे मुड़कर देखिए – अब तक आपने जो कुछ भी किया, वह अब एक स्वप्न जैसा लगता है. भविष्य में आप किसी सर्वोच्च पद पर पहुंच जाएं और अथाह धन-संपत्ति प्राप्त कर लें, तो क्या? कभी आप दुःखी हुए या आपको बहुत क्रोध आया, तो क्या? सब बीत ही गया न! यह वर्तमान क्षण, चाहे सुखद हो या दुखद, यह भी बीत जाने वाला है.

कभी-कभी जीवन में चुटकी भर दुःख आ जाता है. आप जानते हैं, क्यों? ताकि आपको अपने सुख का अनुभव हो सके. यदि आपके जीवन में कभी दुखद क्षण न आते, तो सुख का अनुभव भी नहीं हो पाता. जीवन ठहराव में डूबकर पत्थर-सा जड़ हो जाता इसलिए आपको जीवंत बनाए रखने के लिए, प्रकृति समय-समय पर आपको एक हल्की-सी चुभन देती है. यही जीवन को रोचक बनाती है. इसे स्वीकार करें.

ईश्वर भी यही करते हैं,कभी-कभी आपको हल्का-सा झटका देते हैं, ताकि आप जीवन की नींद से जाग जाएं. और हाँ, उस क्षण आप रो भी पड़ते हैं. लेकिन पीछे मुड़कर देखें, क्या हर कठिनाई में आपको बाहर निकालने वाला हाथ नहीं मिला? जब भी कोई समस्या आई, मदद का कोई-न-कोई माध्यम मिला ही है. अनेक लोग ऐसे हैं जो नदी में डूब रहे थे, आसपास कोई नहीं था, पर उन्हें नहीं पता कि वे कैसे बच गए.


इसका अर्थ यह नहीं कि आप समुद्र में कूदकर देखें कि कोई बचाता है या नहीं. इसका अर्थ है कि जीवन में डरने की आवश्यकता नहीं है, सहारा हमेशा मिलता है. जीवन में आने वाली हर पीड़ा आपके जीवन को और जीवंत और सार्थक बनाने के लिए है. वरना जीवन का उद्देश्य ही क्या है? आखिर लोग क्यों जन्म लेते हैं? मृत्यु निश्चित है, फिर यह सब क्यों? क्या हम केवल बिल चुकाने के लिए जन्मे हैं? अगर हमारा जन्म केवल टैक्स, बिजली और फोन के बिल चुकाने के लिए हुआ है, तब तो जीना व्यर्थ ही है.

हम दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं, शुक्रवार के आने की प्रतीक्षा करते हैं. पूरा सप्ताह काम में बीत जाता है – थके-हारे घर लौटते हैं, खाना खाते हैं, सो जाते हैं और फिर वही क्रम. सप्ताहांत भी अब बस एक दिनचर्या का हिस्सा बन गया है – वही गपशप, वही बैठना-पीना, वही फिल्में, वही बातें.

यदि आप सजग हों, तो देखेंगे कि इसमें कितनी मूर्खता है! चार-पांच लोग मिलकर जब गपशप करते हैं, तो आप तुरंत बातचीत का विषय बदल सकते हैं. भीड़ में यही होता है – दस लोग मौसम की बात कर रहे हों, और आप विषय बदलकर शेयर मार्केट कर दें, तो सब उसी पर बात करने लगेंगे, चाहे जानते हों या नहीं. फिर शेयर से बात स्वास्थ्य-भोजन पर ले जाएं, तो वे पिछला विषय अधूरा छोड़कर उस पर कूद पड़ेंगे. यह देखना बहुत ही रोचक है.

हम जीवन की बहुत-सी चीजें स्वाभाविक मान लेते हैं, और जिससे जड़ता आ जाती है. दैनिक क्रियाओं में फंसे रहने पर जीवन में एकरसता बढ़ जाती है. बहुत थोड़े ही लोग अपने इस घेरे से बाहर निकलकर कोई चुनौती लेते हैं, जो जीवन को नई दिशा देती है. वे या तो भारी नुकसान उठाते हैं या असाधारण उपलब्धि प्राप्त करते हैं.

जब आर्थिक मंदी जैसी कोई आपदा आती है, तो उसका प्रभाव पूरे समाज को हिला देता है. हमें एकाएक जीवन की अनिश्चितता को समझ में आने लगती है. जब हमारी सुविधाएं सीमित हो जाती हैं, तो हमें अपने आपको बनाए रखने के नए रास्ते ढूँढ़ने पड़ते हैं. सकंट की घड़ी हमें यह सिखाती है कि जीवन नश्वर है सभी सुख-सुविधाएं और कठिनाइयां, दोनों अस्थायी हैं.

आध्यात्मिकता का अभाव हमें निराशा की ओर, यहां तक कि आत्महत्या की ओर भी ले जा सकता है. जब हम दुःखी होते हैं, तो अपनी छोटी-सी दुनिया के बाहर कुछ नहीं देख पाते लेकिन जब आंख खोलते हैं, तो पाते हैं कि बहुत से लोग हमसे भी बदतर स्थिति में हैं. प्रार्थना, ध्यान, योग, प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया हमें अपनी सीमाओं से परे देखने और चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देती है.


अधिकतर लोगों को सुख के पल तो अस्थायी लगते हैं, पर उन्हें दुःख स्थायी लगता है. यहां आध्यात्मिक ज्ञान आपको वह असीम बल देता है, जिससे आप सहन कर सकें और रास्ता खोज सकें. हर संकट आपकी आँखें खोलता है, और आपको उस दिशा की झलक देता है जिसे आप बहुत समय से अनदेखा कर रहे थे, उस झलक से राहत, आनंद और कभी-कभी सृजनशीलता का भाव भी उभरता है.

संकट समाज में छिपे मानवीय मूल्यों को प्रकट करता है. आपने देखा होगा कि जब-जब कोई प्राकृतिक आपदा आई, जन सामान्य जाति पाति और अमीर-गरीब के बंधन को भूलकर एक-दूसरे की मदद करते हैं. अचानक मानवीय चेहरा सामने आता है, और हमें अनुभव होता है कि इस धरती पर बहुत सारा प्रेम और अपनापन वर्तमान है.

जब आप जीवन की इस अस्थायी प्रकृति और घटनाओं के बदलते स्वरूप को देखते हैं, तो आपको यह भी पता चलता है कि आपके भीतर कुछ ऐसा है, जो कभी नहीं बदलता. वह एक संदर्भ बिंदु है, जिउसकी तुलना में आप ही कह पाते हैं, “हाँ, यह बदल रहा है.” उस अपरिवर्तनशील तत्त्वसंदर्भ बिंदु में स्थिर होना ही लक्ष्यअस्तित्व है, यही जीवन का स्रोत है, यही ज्ञान है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

ब्लॉगर के बारे में

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की स्थापना की है, जो 180 देशों में सेवारत है। यह संस्था अपनी अनूठी श्वास तकनीकों और माइंड मैनेजमेंट के साधनों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए जानी जाती है।

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