दागी नेताओं के ताउम्र चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का फैसला संसद का, SC में केंद्र

1 month ago

Last Updated:February 26, 2025, 17:03 IST

Supreme Court News: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दोषी करार दिए जा चुके राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग करती याचिका का विरोध किया है. केंद्र ने दलील पेश की कि यह संसद का अधिकार क्षे...और पढ़ें

दागी नेताओं के ताउम्र चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का फैसला संसद का, SC में केंद्र

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, 'दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाना पूरी तरह संसद का अधिकार क्षेत्र है'.

हाइलाइट्स

केंद्र ने दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध का विरोध किया.सरकार ने कहा, प्रतिबंध का फैसला संसद का अधिकार है.सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा.

केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में साफ कहा कि दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का फैसला सिर्फ संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. सरकार ने इस मांग को लेकर दायर याचिका का विरोध किया और कहा कि कानून में पहले से ही एक संतुलित सजा का प्रावधान है. केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा, ‘ताउम्र प्रतिबंध उचित होगा या नहीं, यह पूरी तरह से संसद का विषय है.’ सरकार ने तर्क दिया कि सजा की अवधि सीमित रखने से संतुलन बना रहता है और यह न्यायिक कठोरता को भी रोकता है.

दागी सांसदों-विधायकों पर लाइफटाइम बैन की डिमांड

यह याचिका अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की थी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि सांसदों और विधायकों पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए और उनके खिलाफ आपराधिक मामलों का निपटारा जल्द हो. इसके जवाब में केंद्र ने कहा कि “न्यायिक समीक्षा” की सीमाएं होती हैं और अदालत कानून की प्रभावशीलता के आधार पर संसद के फैसले को चुनौती नहीं दे सकती. केंद्र के हलफनामे में कहा गया, “अपराधों पर प्रतिबंध की अवधि संसद की नीति का हिस्सा है. इसे चुनौती देकर आजीवन प्रतिबंध थोपना सही नहीं होगा.”

केंद्र ने क्या तर्क दिए?

संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 में संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह चुनाव लड़ने की योग्यता और अयोग्यता तय करे. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम संसद द्वारा पारित कानून है, और इसमें संसद ने पहले से ही अपराधियों के लिए 6 साल के प्रतिबंध का प्रावधान रखा है. अन्य अयोग्यता के आधार भी स्थायी नहीं हैं – जैसे दिवालियापन, लाभ के पद पर होना आदि. तो सिर्फ दोषसिद्धि के आधार पर आजीवन बैन क्यों हो?

‘छह साल’ या ‘ताउम्र’ – कौन तय करेगा?

वर्तमान में, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार, सजा पूरी होने के बाद दोषी नेता 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते. याचिकाकर्ता इस अवधि को आजीवन करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार का कहना है कि “यह तय करना कि 6 साल पर्याप्त हैं या आजीवन बैन जरूरी है, यह संसद का विशेषाधिकार है”. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और चुनाव आयोग से इस मामले पर जवाब मांगा था. चुनाव आयोग अभी इस पर अपनी राय नहीं दे सका है.

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

February 26, 2025, 17:03 IST

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