दिल्ली विधानसभा के नीचे एक सीक्रेट फांसीघर है और एक सुरंग भी है, जो सीधे लाल किले तक जाती है. इस फांसीघर और सुरंग को लेकर अक्सर विवाद भी होते रहे हैं. इसका मसला दिल्ली विधानसभा से लेकर संसद तक में उठाया जाता रहा है. हाल में इससे संबंधित मामला फिर लोकसभा में उठा. अब ये मांग हो रही है कि दिल्ली विधानसभा के नीचे बने इस फांसीघर को म्युजियम में तब्दील कर दिया जाए. ये भी कहा जाता कि ये जगह भूतिहा है, यहां से तरह तरह की आवाजें और पैरानॉर्मल चीजें लोगों ने महसूस की हैं.
मौजूदा दिल्ली विधानसभा भवन को 1912 में अंग्रेजों ने तब बनाया था जब उन्होंने कोलकाता से देश की राजधानी दिल्ली स्थानांतरित कर दी. इसे पहले “काउंसिल हाउस” कहा जाता था. पहले इसमें केंद्रीय विधान परिषद (Imperial Legislative Council) की बैठकें होती थीं. भगत सिंह ने यहीं बम फोड़ा था.
यह भवन उस दौर का केंद्र था जब ब्रिटिश भारत में कड़े कानून बनाए जा रहे थे, दमन चक्र भी जारी था.
कहां है सीक्रेट फांसी घर
विधानसभा भवन के बेसमेंट (तहखाने) में एक विशेष कक्ष है जिसे “हैंगिंग सेल” या फांसी घर कहा जाता है. यह कमरा एक अंधेरी, संकरी और दमघोंटू सी जगह है, जिसमें फांसी देने के लिए लकड़ी का फ्रेम और जंजीरें पाई गईं थीं. माना जाता है कि यहां पर आजादी के आंदोलन से जुड़े क्रांतिकारियों को फांसी दी जाती थी, खासकर उन्हें जिन्हें गुप्त रूप से मारना ब्रिटिश शासन के लिए ज़रूरी था ताकि पब्लिक में कोई हंगामा न हो.
यह स्थान कभी आधिकारिक फांसीघर नहीं था, बल्कि गुप्त कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता था, इसीलिए इसे “सीक्रेट” फांसीघर कहा जाता है. हालांकि अंग्रेजों ने ऐसे सीक्रेट फांसीघर देश में कई जगहों पर बना रखे थे.
ब्रिटिश राज के किसी रिकॉर्ड में इस जगह का ज़िक्र नहीं मिलता. न ही नाम, न तारीख़. इतिहासकारों और विधानसभा भवन की जांच रिपोर्टों के अनुसार, यहां शायद 10 से 20 क्रांतिकारियों को फांसी दी गई होगी. खासकर 1915 से 1930 के बीच, जब आज़ादी की लड़ाई तेज हो रही थी. खासतौर पर वे क्रांतिकारी जो दिल्ली में पकड़े गए, जिनका सार्वजनिक मुकदमा नहीं हुआ. कुछ का मानना है कि यह फांसीघर इंटरोगेशन (जांच) और टॉर्चर सेल के रूप में भी इस्तेमाल होता था.
वर्ष 2003 की खुदाई में पता चला
चूंकि इन शहीदों का कोई अंतिम संस्कार या जन रिकॉर्ड नहीं, यही कारण है कि इस जगह को “शापित” या भटकती आत्माओं का स्थान” माना जाता है. दिल्ली सरकार ने 2003 में यहां खुदाई और सर्वेक्षण कराया था जिसमें यह कमरा मिला. तभी विधानसभा भवन के नीचे से एक गुप्त सुरंग की मौजूदगी की भी पुष्टि हुई.
ब्रिटिश काल में सुरंग से लाल किले से कैदी यहां लाए जाते थे
ब्रिटिश शासन के दौरान इसे कैदियों को लाल किले से विधानसभा के तहखाने तक लाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, ताकि उन्हें गुप्त रूप से लाकर यहां रखा जा सके या फांसी दी जा सके. सुरंग अब ध्वस्त हो चुकी है या बंद है, लेकिन इसके अवशेष अब भी मौजूद हैं.
इतिहासकारों के अनुसार यह सुरंग और फांसीघर ब्रिटिश साम्राज्य की काली छाया हैं, जिनका उद्देश्य जनता से छिपाकर क्रांतिकारियों को कुचलना था. यह जगह अंग्रेजों की उस मानसिकता को भी जाहिर करती है, जो क्रांतिकारियों को “आतंकवादी” मानती थी और उन्हें कानूनी प्रक्रिया के बगैर सजा देती थी.
2016 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने इस जगह को संग्रहालय बनाने का प्रस्ताव दिया ताकि लोग इसकी ऐतिहासिकता को समझ सकें. आज भी ये हिस्सा को आम लोगों के लिए नहीं खुला है. हां, कई बार विशेष प्रतिनिधियों और पत्रकारों को अंदर जाकर देखने दिया गया है.
भूतिहा कहानियां और दावे भी इस जगह के
दिल्ली विधानसभा भवन के नीचे स्थित सीक्रेट फांसीघर और सुरंग से जुड़ी कुछ पैरानॉर्मल घटनाओं की कहानियां और दावे जरूर सामने आए हैं. इस जगह के इतिहास, वातावरण और रहस्य के चलते कुछ लोग इसे “हॉन्टेड” या “प्रेतवाधित” मानते हैं. कुछ अधिकारिक कर्मचारी, सुरक्षाकर्मी और रिपोर्टर जो बेसमेंट (तहखाने) या सुरंग के करीब गए हैं, उन्होंने बताया कि उन्होंने अचानक ठंडी हवा महसूस की, जैसे कोई पास से गुज़रा हो.
कई कर्मचारियों ने बताया कि उन्होंने वहां चेन खड़कने, फुसफुसाने या सिसकने जैसी आवाजें सुनीं, खासकर देर रात या जब तहखाना खाली होता है.
एक लगा जैसे कोई यहां कोई और भी हो
एक रिपोर्ट में एक सफाईकर्मी ने दावा किया था कि उसे किसी और की मौजूदगी का एहसास हुआ, लेकिन वहां कोई नहीं था. कुछ बार बेसमेंट में लाइट्स अपने आप बंद या डिम हो गईं, जबकि बिजली की कोई समस्या नहीं थी. ये घटनाएं अक्सर उस कमरे के पास हुईं जिसे हैंगिंग सेल कहा जाता है.
अजीब सी गंध आई
तहखाने में घुसते ही कुछ लोगों ने बताया कि उन्हें एक गंदी या सड़ी हुई गंध आई, हालांकि कोई स्रोत नहीं मिला. कइयों को लगा जैसे सांस लेना भारी हो गया हो, जैसे किसी जगह पर नकारात्मक ऊर्जा हो. हालांकि दिल्ली विधानसभा ने कभी इसे भूतिया जगह घोषित नहीं किया. वैसे अगर यहां किसी को मारा गया और अंतिम क्रियाएं नहीं हुईं, तो लोगों की मान्यता है कि आत्माएं भटकती रहती हैं.
लाल किले तक जाने वाली सुरंग किस हाल में
दिल्ली विधानसभा भवन के नीचे से निकलने वाली गुप्त सुरंग खुद एक हेरिटेज रहस्य है. ये लाल किला तक जाती थी. ये करीब 1.5 से 2 किलोमीटर तक लंबी थी. ये सुरंग सीधे सड़क के नीचे से नहीं, बल्कि भूमिगत मार्ग से घुमावदार ढंग से बनी थी ताकि इसे आसानी से खोजा न जा सके. ब्रिटिश शासन के दौरान यहां पर लाल किले से गुप्त तौर पर क्रांतिकारी, राजनीतिक बंदियों या संदिग्धों को लाया जाता था. ये गतिविधियां गोपनीय रूप से होती थीं, ताकि जनता में विरोध न भड़के.
ऐसी संभावना भी है कि यह सुरंग आपात स्थिति में गुप्त राजनीतिक गतिविधियों या दस्तावेजों को स्थानांतरित करने के काम आती हो. अभी ये सुरंग पूरी तरह से इस्तेमाल में नहीं है. इसकी हालत जर्जर है. सुरंग के अधिकांश हिस्से में मलबे और मिट्टी भर चुकी है. सुरंग की ईंटों और डिजाइन से पता चलता है कि यह 1912–1925 के बीच की बनी हो सकती है. सुरक्षा कारणों से इसे बंद कर दिया गया है — ताकि कोई असामाजिक तत्व इसका दुरुपयोग न करे.
गुप्त फांसीघर के कुछ भूतिहा किस्से
किस्सा 1 – डॉक्टर की उलझन
एक बार एक मेडिकल टीम विधानसभा के तहखाने का सर्वे करने गई थी. समय शायद वर्ष 2004 के आसपास. एक डॉक्टर ने रिपोर्ट किया कि जैसे ही वह “फांसी के कमरे” में घुसा, उसे तेज सिरदर्द और घुटन महसूस होने लगी. कमरे से बाहर आते ही वह ठीक हो गया. डॉक्टर ने यह कहा,
“ऐसा लग रहा था कि कोई मुझे वहां नहीं देखना चाहता.”
किस्सा 2 – सफाईकर्मी की चीख
एक देर रात सफाईकर्मी ने तहखाने से भागते हुए बताया कि उसने एक कोने में चेन खड़कने की आवाज़ सुनी और एक साया देखा. वह इतना डर गया कि उसने अगले दिन नौकरी छोड़ दी.
किस्सा 3 – पत्रकार की रिपोर्टिंग
एक वरिष्ठ पत्रकार को विधानसभा टूर के दौरान बेसमेंट में ले जाया गया. उसने लिखा कि वहां जाते ही उसे किसी के रोने और मदद मांगने की आवाज़ें महसूस हुईं – मगर वहां कोई नहीं था.
किस्सा 4 – विधानसभा अध्यक्ष ने क्या कहा
2016 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने खुद स्वीकार किया कि तहखाने का माहौल “अजीब रूप से भारी और ठंडा” है. उन्होंने कहा कि यह जगह शायद “प्रेतबधित” हो, और इसे शहीदों की याद में स्मारक बनाया जाना चाहिए.