वक्फ संबंधी नए कानून को बेशक अभी राष्ट्रपति ने मुहर नहीं लगाई है लेकिन ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. बड़े पैमाने पर इसे लेकर याचिकाएं दायर की गई हैं. नए कानून में सबसे बड़ा सवाल अब वक्फ कमेटियों में तीन हिंदू सदस्यों को शामिल करने पर उठाया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट में इस पर पेंच फंसा हुआ है. लेकिन आपको ये बता दें दुनियाभर में कई ऐसी बड़ी और अहम धार्मिक जगहें हैं, जिसके ट्रस्ट् या गर्वनिंग बॉडी में कई धर्मों के लोग शामिल हैं. इसमें से कुछ भारत में भी हैं.
वैसे आमतौर पर धार्मिक स्थल और धार्मिक संस्थाएं उसी धर्म के लोगों और अनुयायियों द्वारा संचालित होती हैं, चाहे वेटीकन सिटी हो या मक्का या फिर भारत के तमाम बड़े मंदिरों से संबंधित ट्रस्ट और गर्वनिंग बॉडीज. लेकिन दुनियाभर में इसके अपवाद भी हैं.
दरगाह हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (दिल्ली)
दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित सूफी संत हज़रत निज़ामुद्दीन की दरगाह में रोज हजारों लोग जाते हैं. ये दुनियाभर में प्रसिद्ध है. इसकी बहुत मान्यता है. यहां के ट्रस्ट और सेवकों में मुस्लिमों के साथ-साथ हिन्दू भी शामिल हैं. यहां हर धर्म के लोग सेवा देने और दर्शन के लिए आते हैं. अक्सर प्रबंधन में भी कई धर्मों की पृष्ठभूमि के लोग हैं.
ये लोग दरगाह में आने वाले ज़ायरीनों की देखरेख करते हैं, चादर चढ़वाते हैं, दुआ करवाते हैं.इनमें कुछ परिवार मुस्लिम होते हुए भी हिन्दू जड़ों से आए होते हैं – जो जिनका काम पीढ़ियों से दरगाह सेवा करना रहा है. कई हिन्दू और अन्य धर्मों के लोग भी सेवा में लगे होते हैं, खासकर सफाई, संगीत (कव्वाली), रसोई (लंगर) आदि कामों में.
जब ट्रस्ट संबंधी निर्णय होते हैं, तो सरकारी अधिकारी या बोर्ड सदस्य (कभी-कभी मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों) की भी भूमिका हो सकती है. हज़रत निज़ामुद्दीन की दरगाह में जो कव्वाल गाते हैं, उनमें भी कई ऐसे परिवार हैं जो हिन्दू मूल के हैं. सूफी परंपरा में पूरी श्रद्धा से शामिल होते हैं.
दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह, जहां हर धर्म के लोग काम करते हैं और आते हैं. (News18 AI)
हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह (अजमेर शरीफ़, राजस्थान)
यह भारत की सबसे प्रसिद्ध दरगाहों में है. ये दरगाह कमेटी भारत सरकार के अधीन आती है. इसमें विभिन्न धर्मों के सदस्य हो सकते हैं. अजमेर दरगाह कमेटी में कई बार हिंदू सदस्य शामिल किए गए हैं. सभी धर्मों के लोग ट्रस्ट के सलाहकार, इंजीनियर, आर्किटेक्ट आदि के तौर पर काम करते हैं.
बाबा ताजुद्दीन दरगाह (नागपुर, महाराष्ट्र)
बाबा ताजुद्दीन को हिन्दू-मुस्लिम दोनों मानते हैं. उनकी दरगाह का ट्रस्ट (Tajbagh Trust) एक सेक्युलर संस्था है. यहां हिंदू ट्रस्टियों की मौजूदगी पब्लिक रिकॉर्ड में रही है, जैसे कि कुछ मराठी हिंदू व्यापारी और समाजसेवी.
शाह मखदूम बाबा दरगाह (माहीम, मुंबई)
यह दरगाह मुंबई के सबसे पुराने सूफी स्थलों में है.माहीम की इस दरगाह में मुस्लिम ट्रस्ट के अलावा, स्थानीय सामाजिक संगठन भी (जहां हिंदू भी शामिल होते हैं) होते हैं.
रफी शाह बाबा की दरगाह (गुजरात)
बाबा को संत कबीर की तरह हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है. ट्रस्ट में हिंदू सदस्य शामिल हैं. पूजा के समय भी दोनों धर्मों की परंपराओं को मान्यता दी जाती है.
साईं बाबा को मानने वालों में हिंदू और मुस्लिम दोनों हैं. यहां काम करने वालों में हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं. यहां के ट्रस्ट में भी मुस्लिम शामिल होते रहे हैं. (News18AI)
साईं बाबा मंदिर, शिर्डी (महाराष्ट्र)
साईं बाबा को हिन्दू और मुस्लिम दोनों मानते हैं शिर्डी ट्रस्ट में विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग शामिल होते हैं. हालांकि 2012 में शिरडी मंदिर के जो ट्रस्टी थे, उसमें ज्यादातर हिंदू थे. बाबा की शिक्षाएं “सबका मालिक एक” पर आधारित हैं.
साईं बाबा के समय से ही हिन्दू और मुस्लिम दोनों उनके अनुयायी रहे हैं. श्री साईंबाबा संस्थान ट्रस्ट एक सेक्युलर ट्रस्ट है — जिसका अर्थ है कि इसकी सदस्यता धर्म आधारित नहीं होती. समय-समय पर नियुक्त ट्रस्टियों में मुस्लिम भी शामिल रहे हैं. कई मुस्लिम कव्वाल और संगीतकार बाबा की दरगाही महफिलों में भाग लेते हैं. हर साल ईद पर भी बाबा के दरबार में विशेष दुआ होती है. मौलवी साहब द्वारा दुआ पढ़ी जाती है.
श्री साईंबाबा संस्थान ट्रस्ट, शिरडी में काम कर रहे कर्मचारियों की कुल संख्या लगभग 3,000 है, जो दर्शन व्यवस्था, सुरक्षा, प्रसादालय (लंगर), सफाई, चिकित्सा सेवा, प्रशासनिक कामों में लगे हैं. इसमें हिंदू भी हैं और मुस्लिम भी.
गोल्डन टेम्पल (हरमंदिर साहिब), अमृतसर
भले ही यह सिख धर्म का सबसे पवित्र स्थल है, लेकिन यहां के लंगर और सेवा कामों में हर धर्म और जाति के लोग शामिल होते हैं. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) मुख्य तौर पर सिख होती है, पर कई बार सहायता समिति और स्वयंसेवक दल में हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और अन्य धर्मों के लोग देखे गए हैं.
लोटस टेम्पल, दिल्ली
यह मंदिर बाहाई धर्म का है, जो सभी धर्मों की एकता को मानता है.यहां की प्रशासनिक प्रणाली में कोई पादरी या विशेष धर्माधिकारी नहीं होते, बल्कि ट्रस्ट और संचालन समिति में विभिन्न धर्मों के लोग हो सकते हैं. यहां हर धर्म के लोग आ सकते हैं, प्रार्थना कर सकते हैं और सेवा कर सकते हैं.
मदर हाउस (मिशनरीज ऑफ चैरिटी), कोलकाता
मदर टेरेसा द्वारा स्थापित यह संस्था मुख्य तौर पर ईसाई मिशनरी संस्था है, लेकिन इसके संचालन और सेवा कार्यों में हिन्दू, मुस्लिम, सिख सहित अन्य धर्मों के लोग भी योगदान देते हैं.
शिकागो का युनिटी टैंपल, जिसमें हर धर्म के लोग गर्वनिंग बॉडी में हैं. इसके दरवाजे हर धर्म के लोगों के लिए खुले हुए हैं. (News18 AI)
यूनिटी टैंपल, शिकागो (अमेरिका)
यह यूनिटेरियन यूनिवर्सलिस्ट एसोसिएशन का हिस्सा है, जो हर धर्म और मान्यताओं को समान रूप से स्वीकार करता है. यहां की गवर्निंग बॉडी में विभिन्न धर्मों के लोग होते हैं, और यह मंदिर सभी के लिए खुला है.
इसे प्रसिद्ध वास्तुकार फ्रैंक लॉयड राइट ने 1905-1908 के बीच डिजाइन किया था. यह इमारत आधुनिक वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण मानी जाती है. 2019 में इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया.
यूनिटेरियन यूनिवर्सलिज्म किसी एक धर्म या देवता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवतावाद, नैतिकता, सामाजिक न्याय और व्यक्तिगत आध्यात्मिक खोज को प्रोत्साहित करता है. इसके सदस्यों में ईसाई, यहूदी, बौद्ध, नास्तिक, अज्ञेयवादी और अन्य धर्मों या दर्शनों को मानने वाले लोग शामिल हो सकते हैं.
गवर्निंग बॉडी (जैसे बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज) के सदस्य समुदाय के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं और यह विविध पृष्ठभूमि वाले लोगों से बना होता है.