दुश्मन पर तीन तरफ से होगा वार, ट्राई सर्विस AFSOD का हो सकता है

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Last Updated:August 28, 2025, 17:26 IST

AFSOD DOCTRINE: आज के दौर की जंग में नेटवर्क और सर्वेलांस का मज़बूत होना जरूरी है और ये तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब अलग अलग सर्विस एक साथ किसी ऑपरेशन को अंजाम देने में जुटी हो. स्पेशल फोर्स का इंटीग्रेश...और पढ़ें

दुश्मन पर तीन तरफ से होगा वार, ट्राई सर्विस AFSOD का हो सकता हैऑपरेशन का दायरा बढ़ेगा

AFSOD DOCTRINE: भारतीय सेना की सबसे एलीट फोर्स के नाम से जाना जाता है स्पेशल फोर्स को. आर्मी में पैरा स्पेशल फोर्स, नेवी के मरीन कमांडो और एयरफोर्स के गरुड़ कमांडो अपनी ट्रेनिंग और ऑपरेशन करने की खासियत के लिए सबसे खास हैं. इन्हीं तीनों को इंटीग्रेट करके एक आर्मड फोर्स स्पेशल ऑपरेशन डिविजन यानी AFSOD का गठन किया गया था. अब इसके विस्तार की तैयारी हो रही है. सेना के रण संवाद कार्यक्रम के दौरान स्पेशल फोर्स ऑपरेशन का ज्वाइंट डॉक्ट्रीन जारी किया गया था. इस डॉक्ट्रीन में AFSOD के विस्तार को लेकर भी इशारा दिया गया है. डॉक्ट्रीन में लिखा है कि “भविष्य में ऑपरेशनल जरूरतों के तहत AFSOD के ऑर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर और भूमिका का विस्तार किया जा सकता है.”

ऑफेंसिव ऑपरेशन का बढ़ेगा दायरा
1965 के युद्ध के बाद कमांडो बटालियनों के गठन से शुरुआत हुई. थलसेना के पैराशूट रेजिमेंट की पाँच बटालियनों को स्पेशल फोर्स यूनिट में विकसित किया गया. उसके बाद तीन अतिरिक्त बटालियनों का गठन किया गया है. इसके साथ-साथ नौसेना ने समुद्री सुरक्षा अभियानों के लिए मरीन कमांडो (MARCOS) का गठन किया और भारतीय वायु सेना ने वायु-केंद्रित और आतंकवाद-रोधी भूमिकाओं के लिए गरुड़ विशेष बलों को शामिल किया. IDS हेडक्वाटर के तहत आर्मड फोर्स स्पेशल ऑपरेशन डिविजन का गठन किया गया. 2018 में गठित और 2019 से पूरी तरह से यह डिविजन ऑपरेशनल है. जिसमें सेना के पैरा SF, नौसेना के MARCOS और वायु सेना के गरुड़ कमांडो के लगभग 3000 स्पेशल फोर्स के कमांडो शामिल हैं. चूंकि तीनों स्पेशल फोर्स अपने-अपने डोमेन में ऑफेंसिव ऑपरेशन करने में माहिर हैं, यही वजह थी कि इस डिविजन को स्थापित किया गया था. इस डिविजन ने कई ऑपरेशन को भी अंजाम दिया लेकिन उसके बारे में आधिकारिक तौर पर जानकारी साझा नहीं की गई.

ट्राई सर्विसेज स्पेशल फोर्स का इंटीग्रेशन
ऐसा नहीं है कि 2018 के बाद से ही तीनों सेना के स्पेशल फोर्स एक साथ काम कर रही हैं. इनकी तैनाती जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से है. मसलन नेवी के MARCOS ट्रेंड तो समंदर में ऑपरेशन के लिए हैं लेकिन उनकी तैनाती लंबे समय से नॉर्थ कश्मीर के वूलर लेक में भी है. थल सेना के अधीन यह यूनिट CI/CT ऑपरेशन में हिस्सा लेती आई है. इसके अलावा साल 2020 में पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव के बाद मरीन कमांडो को पैंगॉंग लेक पर भी तैनात किया गया था. सूत्रों के मुताबिक अब भी उनकी तैनाती वहां बनी हुई है. एयरफोर्स के हर एयरबेस पर गरुड़ कमांडो की तैनाती होती है. गरुड़ कमांडो की काबिलियत को और निखारने के लिए साल 2018 से पहले से ही कश्मीर में ऑपरेशन के लिए तैनात किया जाना शुरू कर दिया गया था. गरुड़ कमांडो की टीम ने नॉर्थ कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स के साथ मिलकर कई बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया है. हर छह महीने में एक नई टीम को कश्मीर में ऑपरेशन में भेजा जाता है. भारतीय वायुसेना के गरुड़ कमांडो ज्योति प्रकाश निराला ने कश्मीर के बांदीपोरा में एक ऑपरेशन के दौरान दो आतंकियों को मार गिराया जिसमें से एक लश्कर का कमांडर लखवी का भतीजा भी शामिल था. साथ ही अपने घायल साथियों को भी बचाया था. इस बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत शांति काल का सर्वोच्च सम्मान अशोक चक्र दिया गया था. आर्मी के पैरा स्पेशल फोर्स को भी जम्मू-कश्मीर के इलाके में स्पेशल ऑपरेशन के लिए तैनात किया गया है. म्यांमार सर्जिकल स्ट्राइक और उरी हमले का बदला लेने के लिए आर्मी स्पेशल फोर्स के कमांडो ही पीओके गए थे. घने जंगलों में आतंकियों को ढेर करने के ऑपरेशन में भी इनको तैनात किया जाता है. देश की इकलौती ट्राई सर्विस कमान में होने वाले स्पेशल फोर्स के अभ्यास में भी खास रणनीति तैयार करके तीनों स्पेशल फोर्स को ट्रेंड किया जाता है. अंडमान और निकोबार कमांड में तमाम तरह के एम्फीबियस ऑपरेशन लगातार किए जाते हैं. साथ ही इंट्रॉपरेबिलिटी को बढ़ाने के लिए भी अभ्यास आयोजित किए जाते हैं. इन अभ्यास के दौरान मल्टीरोल अभ्यास किए जाते हैं जैसे कि एम्फीबियस लैंडिंग, एयर ऑपरेशन, हेलीबोर्न ऑपरेशन और रैपिड इंसर्शन जैसे तमाम ऑपरेशन शामिल होते हैं. स्पेशल फोर्स पैरा कमांडो के साथ-साथ एयरफोर्स के गरुड़ स्पेशल दस्ते और नौसेना के MARCOS यानी मरीन कमांडोज ने एक साथ मिलकर अलग-अलग टास्क को पूरा किया है.

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First Published :

August 28, 2025, 17:26 IST

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