History of Panama Canal: पनामा नहर एक बार फिर चर्चा में है. अमेरिका के नव-निर्वातिच राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस पर एक ऐसा बयान दे दिया है जिसने पनामा की टेंशन बढ़ा दी है. आखिर इस नहर का इतिहास क्या है, इसका महत्व क्या है और क्यों ट्रंप इसे फिर से अमेरिकी कंट्रोल में लाने की बातें कर करे हैं. यहां जानते हैं कि पूरे घटनाक्रम की अहम 10 बातें: -
पनामा नहर 82 किलोमीटर (51 मील) लंबा जलमार्ग है जो अटलांटिक महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ता है. पनामा नहर का शॉर्टकट, अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के बीच जहाजों के यात्रा समय को बहुत कम कर देता है.
1881 में शुरू हुआ था काम
कोलंबिया, फ्रांस और बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका ने निर्माण के दौरान नहर के आसपास के क्षेत्र को नियंत्रित किया. फ्रांस ने 1881 में नहर पर काम शुरू किया, लेकिन इंजीनियरिंग समस्याओं और उच्च श्रमिक मृत्यु दर की वजह से निवेशकों के विश्वास की कमी के चलते 1889 में इस पर काम रोक दिया. अमेरिका ने 1904 में इस प्रोजेक्ट को अपने हाथ में लिया और 1914 में नहर खोल दी गई.
अमेरिका ने नहर और इसके आसपास के नहर क्षेत्र पर तब तक नियंत्रण बनाए रखा जब तक कि 1977 में टोरीजोस-कार्टर संधि के तहत इसे पनामा को सौंपने का प्रावधान नहीं हो गया. इस संधि पर तत्कालीन पनामा के राष्ट्रपति उमर टोरिजोस और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने हस्ताक्षर किए.
इकोनॉमी के लिए बल्ले-बल्ले
इसके बाद नहर पर अमेरिकी-पनामा संयुक्त नियंत्रण रहा. पनामा सरकार ने 1999 में नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया. अब इसका प्रबंधन और संचालन पनामा सरकार के स्वामित्व वाली पनामा नहर प्राधिकरण द्वारा किया जाता है.
1914 में जब नहर खुली थी, तब एक साल में करीब 1,000 जहाज गुजरते थे. 2008 में यह संख्या 14,702 जहाजों तक पहुंच गई. 2012 तक, 815,000 से ज़्यादा जहाज नहर से होकर गुजर चुके थे. इस नहर को पनामा इकॉनोमी का प्रमुख स्तंभ माना जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह एशिया से अमेरिका के आयात और तरलीकृत प्राकृतिक गैस जैसे उत्पादों के निर्यात के लिए भी महत्वपूर्ण है. चीन की बढ़ी ताकत बन जाने के बाद इस नगर महत्व बढ़ गया है क्योंकि यह नहर चीन से अमेरिका के पूर्वी तट को जोड़ती है.
अब वापस मांगा नियंत्रण
अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पनामा से पनामा नहर पर शुल्क कम करने और इसे अमेरिकी नियंत्रण में वापस करने की मांग की है. उन्होंने मध्य अमेरिकी देश पर अमेरिकी शिपिंग और नौसैनिक जहाजों से 'अत्यधिक कीमत' वसूलने का आरोप लगाया.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रविवार को एरिजोना में समर्थकों की भीड़ से उन्होंने कहा, "पनामा द्वारा लगाए जा रहे शुल्क हास्यास्पद और बेहद अनुचित हैं." उन्होंने कहा, "हमारे देश के साथ यह पूरी तरह से धोखा तुरंत बंद हो जाएगा." उनका इशारा अगले महीने पदभार ग्रहण करने पर था. इससे पहले शनिवार को उन्होंने अपने ट्रुथ सोशल प्लेटफॉर्म पर लिखा कि पनामा नहर अमेरिकी अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा में 'महत्वपूर्ण भूमिका' निभाती है.
रविवार को, पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने कहा कि नहर 'पनामा के हाथों में बनी रहेगी.' उन्होंने ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट में कहा कि पनामा नहर और उसके आस-पास के क्षेत्र का प्रत्येक वर्ग मीटर पनामा का है और ऐसा ही रहेगा. हमारे देश की संप्रभुता और स्वतंत्रता पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है."
पनामा के लोगों ने मांग को बताया हास्यास्पद
पनामा के विद्वानों ने अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पनामा नहर को वापस लेने की धमकी को 'हास्यास्पद' बताया है. पनामा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जोन्स कूपर ने कहा, 'यह हास्यास्पद है.' उन्होंने कहा, "पनामा नहर का असली मालिक है और संयुक्त राज्य अमेरिका के पास इसे वापस लेने का कोई कानूनी आधार नहीं है. अमेरिका ने अपने कब्जे के दौरान काफी लाभ कमाया जबकि पनामा को बदले में बहुत कम फायदा हुआ."
पनामा के राष्ट्रपति ने कहा, "नहर हमारे देश की अविभाज्य विरासत के रूप में पनामा के हाथों में रहेगी और सभी देशों के जहाजों के शांतिपूर्ण और निर्बाध पारगमन के लिए इसके उपयोग की गारंटी देगी."