Last Updated:March 03, 2025, 18:05 IST
Herbal color: नादिया के दिशारी निवासी इस बार होली पर हर्बल अबीर बनाकर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं. वे स्वदेशी तकनीक से प्राकृतिक रंग तैयार कर पर्यावरण संरक्षण और आजीविका दोनों को बढ़ावा दे रहे हैं.
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हर्बल अबीर
नादिया जिले के शांतिपुर में एक अनोखी पहल की जा रही है. यहां के दिशारी आश्रय स्थल में रहने वाले कुछ लोगों के नाम और पते अज्ञात हैं, कुछ से उनके परिवारों ने कभी संपर्क नहीं किया, तो कुछ समाज से कटकर यहां आ बसे हैं. उनके जीवन का अधिकांश समय खाली बीतता है, लेकिन इस बार वे अपने हाथों से कुछ अनोखा करने जा रहे हैं. वे होली को खास बनाने के लिए प्रदूषण मुक्त हर्बल अबीर तैयार कर रहे हैं.
रासायनिक रंगों से बचाव की जरूरत
बाजार में मिलने वाले रंगों में चूने और चाक पाउडर की मिलावट होती है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, ये रंग बच्चों की आंखों और त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए, शांतिपुर की कृष्ण स्वराज समिति की महिलाएं पिछले पांच वर्षों से हर्बल अबीर बना रही हैं. अब दिशारी के लोग भी इस पहल में शामिल हो गए हैं, जिससे वे न केवल रोजगार पाएंगे बल्कि एक बड़े सामाजिक बदलाव का हिस्सा बनेंगे.
स्वदेशी तकनीक से बनी पहल
पर्यावरणविद् शैलेन चांडी के नेतृत्व में कृष्ण स्वराज समिति ने यह पहल शुरू की है. उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जैविक खेती, खाद्य मसाले, सौंदर्य प्रसाधन और रसायन मुक्त खाद्य बाजार का संचालन किया है. अब इसी दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए, हर्बल अबीर बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे लोग अपनी आजीविका खुद कमा सकें.
प्राकृतिक फूलों से बनेगा रंगीन अबीर
इस बार पांच अलग-अलग रंगों का अबीर बनाया जा रहा है. लाल रंग जवा, करबी, पलाश और शिमुल के फूलों से निकाला जाएगा. पीला रंग गेंदा और सूरजमुखी से बनाया जाएगा. रानी रंग के लिए पुईमिचुरी और चुकंदर का उपयोग होगा. नीला रंग प्राकृतिक नीले फूलों से निकाला जाएगा, जबकि हरा रंग गेंदा के पत्तों और सेम के पत्तों से तैयार किया जाएगा. यह सब पूरी तरह जैविक होगा और पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित रहेगा.
नए जीवन की ओर बढ़ते कदम
शांतिपुर नगर पालिका द्वारा संचालित इस आवास परियोजना में 18 निवासी रहते हैं. इनके लिए कार्योन्मुख बनाने के प्रयास लंबे समय से किए जा रहे थे, लेकिन इस बार यह पहली बार है कि वे खुद से कुछ नया बना रहे हैं. इस अबीर को बनाने में प्रति किलोग्राम 15 से 17 टका का खर्च आएगा और इसे 30 टका प्रति किलोग्राम बेचा जाएगा. इससे उन्हें दोहरा लाभ मिलेगा—एक ओर आर्थिक सहायता और दूसरी ओर पर्यावरण संरक्षण.
First Published :
March 03, 2025, 18:05 IST