Last Updated:May 18, 2025, 09:16 IST
India's First Nuclear Test: इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने साल 1974 में पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया था. परीक्षण से पहले जीप खराब होने की वजह से उसमें पांच मिनट की देरी हुई. इस परमाणु परीक्षण ने भार...और पढ़ें

पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया गया.
हाइलाइट्स
भारत ने 18 मई 1974 में पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण कियाजीप खराब होने से पहले परमाणु परीक्षण में पांच मिनट की देरी हुईइंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने परमाणु शक्ति संपन्न देशों में जगह बनाईIndia’s First Nuclear Test: आज से 51 साल पहले भारत ने पहला परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया था. ऑयरनलेडी के नाम से मशहूर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने ये करिश्मा कर दिखाया था. भारत के इस परमाणु परीक्षण को इंदिरा गांधी ने शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण करार दिया था. लेकिन इससे खौर खाये अमेरिका ने भारत को परमाणु सामग्री और ईधन की आपूर्ति रोक दी थी.
ये एटमी परीक्षण भारत के इतिहास में एक निर्याणक मोड़ लाने वाला था. जिन्होंने भारत की एटमी यात्रा की शुरुआत का संकेत दिया था. विश्व की परमाणु अप्रसार व्यवस्था के विरोध के बावजूद भारत अपने ’शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट’ के जरिए दुनिया के उन गिने चुने देशों की सूची में शामिल हो गया था, जिनके पास परमाणु क्षमता थी.
ये भी पढ़ें- ‘भार्गवास्त्र’ जिसका महाभारत में मिलता है जिक्र, जानिए भारत के नए एंटी-ड्रोन सिस्टम के बारे में
किस वजह से हुई परीक्षण में देरी
18 मई के दिन परमाणु परीक्षण के लिए सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. विस्फोट पर नजर रखने के लिए मचान को पांच किमी दूर लगाया गया था. इसी मचान से सभी बड़े सैन्य अधिकारी और वैज्ञानिक नजर रखे हुए थे. आखिरी जांच के लिए वैज्ञानिक वीरेंद्र सेठी को परीक्षण वाली जगह पर भेजना तय हुआ. जांच के बाद परीक्षण स्थल पर जीप स्टार्ट ही नहीं हो रही थी. विस्फोट का समय सुबह 8 बजे तय किया गया था. वक्त निकल रहा था और जीप स्टार्ट न होने पर वीरेंद्र सेठी दो किमी दूर कंट्रोल रूम तक पैदल चलकर पहुंचे थे. इस पूरे घटनाक्रम के चलते परीक्षण का समय पांच मिनट बढ़ा दिया गया.
ये भी पढ़ें- ‘राम’ के नाम पर बसा था जो शहर, मुस्लिम शासकों ने भी रखा उसका मान, जानें पूरी कहानी
7 साल की मेहनत लायी थी रंग
इस टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट पर लंबे समय से एक टीम काम कर रही थी. 75 वैज्ञानिक और इंजीनियरों की टीम ने 1967 से लेकर 1974 तक सात साल जमकर मेहनत की थी. इस प्रोजेक्ट की कमान भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर ( BARC) के निदेशक डॉ. राजा रमन्ना थे. रमन्ना की टीम में तब एपीजे अब्दुल कलाम भी थे, जिन्होंने 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण की टीम का नेतृत्व किया था.
पोखरण में परमाणु परीक्षण स्थल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी.
ये भी पढ़ें- Explainer: तुर्की और अजरबैजान से थे भारत के अच्छे रिश्ते, फिर ये कैसे बिगड़े… दोनों देशों में कितने भारतीय
इंदिरा ने दी थी हरी झंडी
साल 1972 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर का दौरा करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वहां के वैज्ञानिकों को परमाणु परीक्षण के लिए संयंत्र बनाने की इजाजत दी थी. लेकिन इंदिरा गांधी की ये इजाजत मौखिक थी. परीक्षण के दिन से पहले तक इस पूरे ऑपरेशन को गोपनीय रखा गया था. यहां तक कि अमेरिका को भी इसकी कोई जानकरी नहीं लग पायी. नाराज अमेरिका ने परमाणु सामग्री और इंधन के साथ कई तरह के और प्रतिबंध लगा दिए थे. संकट की इस घड़ी में सोवियत रूस ने भारत का साथ दिया था.
ये भी पढ़ें- रिटायरमेंट के बाद चीफ जस्टिस को मिलती है कितनी पेंशन और क्या-क्या सुविधाएं
दुविधा में था देश का नेतृत्व
यहां तक कि देश में सियासी नेतृत्व के बीच भी इस बात को लेकर मतभेद थे कि भारत को एटमी ताकत के मामले में किस रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए. सुरक्षा संबंधी चिंताओं में बढ़ोतरी के बावजूद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एटमी ताकत वाले हथियारों के विकास को लेकर दुविधा में थे. खास तौर से चीन के साथ युद्ध और 1964 में लोप नुर में चीन द्वारा परमाणु परीक्षण के बावजूद. नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री ने भी चीन के परीक्षण के बाद, भारत के एटमी परीक्षण करने के घरेलू दबाव का विरोध किया. इसके बजाय 1964 में जब वह ब्रिटेन के दौरे पर गए, तो शास्त्री ने एटमी ताकतों से सुरक्षा संबंधी गारंटी हासिल करने की कोशिश की.
ये भी पढ़ें- अपने किस फायदे के लिए कतर दे रहा डोनाल्ड ट्रंप को लग्जरी जेट, महंगे गिफ्ट को लेकर अमेरिका में कानूनी चिंताएं
इंदिरा ने अलग रास्ता चुना
हालांकि, 1966 में जब इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला तो उन्होंने इस मामले में अलग रास्ता अख्तियार किया. अपने पूर्ववर्तियों के उलट इंदिरा गांधी ने भेदभावपूर्ण परमाणु अप्रसार संधि को लेकर एक कड़ा और व्यावहारिक राजनीतिक रुख अपनाया. उन्होंने अगले कुछ वर्षों के दौरान भारत के परमाणु प्रतिष्ठानों को कार्यकारी एटमी विस्फोट की क्षमता विकसित करने की हरी झंडी दे दी. ताकि जरूरत पड़ने पर शांतिपूर्ण विस्फोट का विकल्प इस्तेमाल किया जा सके. 60 के दशक में भारत के परमाणु वैज्ञानिकों की पुरजोर कोशिशों के बादा देश आखिरकार एक बड़े लम्हे के लिए तैयार हो गया. 18 मई 1974 को कोड नेम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ के नाम से सुदूर राजस्थान में जमीन के भीतर पोखरण-1 परमाणु धमाका किया गया.
ये भी पढ़ें- Explainer: बलूचिस्तान ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी है, लेकिन वाकई इससे उन्हें आजादी मिल जाएगी
पूरे देश में दौड़ गई गर्व की लहर
वैसे तो आधिकारिक रूप से इसे ‘शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट’ (PNE) कहा गया था. पर वास्तविकता ये थी कि पोखरण-1 के जरिए भारत ने अपनी परमाणु हथियार बनाने की तकनीक का प्रदर्शन किया था, जिसके जरिए वो एटमी हथियारों वाले देशों के विशेष क्लब में दाखिल हो गया था. जमीन के भीतर सफल परमाणु विस्फोट से पूरे देश में गर्व की लहर दौड़ गई थी. लेकिन, पूरी दुनिया ने इसकी निंदा करते हुए उपमहाद्वीप में परमाणु हथियारों की होड़ शुरू होने की आशंका भी जताई थी.
Location :
New Delhi,Delhi