Last Updated:November 06, 2025, 19:15 IST
सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली दंगों के आरोपियों की जमानत पर सुनवाई चल रही है. (फाइल फोटो)नई दिल्ली: फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े यूएपीए मामले में आरोपी शादाब अहमद ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि विरोध प्रदर्शन आयोजित करना और उनमें भाग लेना कोई अपराध नहीं है. अहमद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने भी जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन वी अंजारिया की पीठ के समक्ष अभियोजन पक्ष के इस दावे का खंडन किया कि अहमद ने देरी की है. अहमद के वकील ने कहा, “वह 27 वर्ष का है और 2016 से एनडीएस एंटरप्राइजेज जगतपुरी में सुपरवाइजर के रूप में कार्यरत है. आरोपों पर बहस चल रही है, लेकिन मेरे लिए बहस पूरी हो चुकी है और मेरी ओर से कोई देरी नहीं हुई है.”
लूथरा ने कहा, “संरक्षित गवाहों ने गवाही दी कि उन्होंने उसे एक बिरयानी स्टॉल पर साजिश के बारे में बात करते हुए सुना था. एक गवाह ने गवाही दी थी कि अहमद ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किए थे और उनमें शामिल हुआ था. विरोध प्रदर्शनों का आयोजन और उनमें भाग लेना कोई अपराध नहीं है.” सुप्रीम कोर्ट ने अब मामले की सुनवाई 11 नवंबर के लिए स्थगित कर दी है, जब दिल्ली पुलिस अपनी दलीलें शुरू करेगी.
उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर और रहमान पर फरवरी 2020 के दंगों के कथित “मास्टरमाइंड” होने के आरोप में आतंकवाद विरोधी कानून और तत्कालीन आईपीसी के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसमें 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क उठी थी. 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े यूएपीए मामले में जमानत मांगते हुए, खालिद ने शीर्ष अदालत से कहा था कि उनके खिलाफ हिंसा से जुड़े कोई सबूत नहीं हैं और उनके खिलाफ साजिश के आरोपों से इनकार किया.
दिल्ली हाईकोर्ट ने खालिद और इमाम सहित नौ लोगों को जमानत देने से इनकार कर दिया और कहा कि नागरिकों द्वारा प्रदर्शनों या विरोध प्रदर्शनों की आड़ में “षड्यंत्रकारी” हिंसा की अनुमति नहीं दी जा सकती. खालिद और इमाम के अलावा, जिन लोगों की जमानत खारिज की गई उनमें फातिमा, हैदर, मोहम्मद सलीम खान, शिफा-उर-रहमान, अतहर खान, अब्दुल खालिद सैफी और शादाब अहमद शामिल हैं. एक अन्य आरोपी तस्लीम अहमद की जमानत याचिका 2 सितंबर को हाईकोर्ट की एक अलग पीठ ने खारिज कर दी थी.
हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान नागरिकों को विरोध प्रदर्शन या आंदोलन करने का अधिकार देता है, बशर्ते वे व्यवस्थित, शांतिपूर्ण और बिना हथियारों के हों, और ऐसी कार्रवाई कानून के दायरे में होनी चाहिए. हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने और सार्वजनिक सभाओं में भाषण देने का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संरक्षित है, और इसे स्पष्ट रूप से सीमित नहीं किया जा सकता है, इसने कहा कि यह अधिकार “पूर्ण नहीं” और “उचित प्रतिबंधों के अधीन”.
ज़मानत अस्वीकृति आदेश में कहा गया है, “अगर विरोध प्रदर्शन के अप्रतिबंधित अधिकार के प्रयोग की अनुमति दी गई, तो यह संवैधानिक ढांचे को नुकसान पहुंचाएगा और देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति को प्रभावित करेगा.” जिन अभियुक्तों ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इनकार किया है, वे 2020 से जेल में हैं और निचली अदालत द्वारा उनकी ज़मानत याचिकाए खारिज किए जाने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया था.
राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...और पढ़ें
राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
November 06, 2025, 19:15 IST

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