बंदूक नहीं उठाते, फिर भी खून बहाते हैं, कश्मीर में OGW का वो सीक्रेट नेटवर्क

15 hours ago

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद देशभर में सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता बनी हुई है. गृह मंत्री अमित शाह जम्मू-कश्मीर पहुंच चुके हैं. वे आर्मी चीफ, जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, एनआईए और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों के साथ हाईलेवल मीट‍िंग कर रहे हैं. इसमें आतंक‍ियों की जड़ पर प्रहार करने की नई रणनीत‍ि बनेगी. एजेंसियों की नजर OGW पर जाकर ट‍िक गई है, OGW, यानी ओवर ग्राउंड वर्कर. जम्मू-कश्मीर में आतंक‍ियों का वो सीक्रेट नेटवर्क, जिसने पहलगाम जैसे कांड कराए. लेकिन ये OGW होते कौन हैं? क्या करते हैं? और आतंकियों के लिए ये कितने अहम होते हैं? आइए जानते हैं.

OGW का मतलब है Over Ground Worker, यानी ऐसा व्यक्ति जो सीधे बंदूक लेकर आतंकवादी कार्रवाई नहीं करता, लेकिन उन आतंकियों के लिए सपोर्ट सिस्टम का काम करता है. ये वो लोग होते हैं जो समाज में आम नागरिक की तरह रहते हैं. किसी दुकान पर काम करते हैं, पढ़ाते हैं, पंचायत या लोकल निकाय में होते हैं, लेकिन पर्दे के पीछे से आतंकियों के लिए जानकारी जुटाने, हथियार पहुंचाने, ठिकाने देने, और नई भर्ती करने जैसे काम करते हैं.

OGW का नेटवर्क कैसे चलता है?
OGWs का नेटवर्क बेहद संगठित, पर छुपा हुआ होता है. यह तीन लेवल पर काम करता है.

लोकल सपोर्ट सिस्टम: गांव या मोहल्ले में जो लोग स्थानीय प्रशासन या सुरक्षा बलों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं और आतंकियों तक जानकारी पहुंचाते हैं.

लॉजिस्टिक और सेफ हाउस: OGWs आतंकी हमलों के बाद उन्हें छुपने के लिए घर, खाने-पीने का सामान, दवाइयां और रास्ते मुहैया कराते हैं.

साइबर OGWs: ये लोग इंटरनेट, सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप्स के ज़रिए प्रोपेगेंडा फैलाने, पत्थरबाजी भड़काने और युवाओं को कट्टरपंथ की ओर धकेलने का काम करते हैं.

OGW की भर्ती कैसे होती है?
-OGW बनने के लिए आतंकवादी संगठनों की ओर से किसी बड़ी ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती.
-अक्सर कट्टर विचारधारा से प्रभावित युवा, जो सोशल मीडिया पर कट्टर सामग्री देखते हैं, इस रास्ते पर आते हैं.
-कई बार धन का लालच, डर या ब्लैकमेल के ज़रिए भी OGW बनाए जाते हैं.
-कुछ मामलों में पारिवारिक संबंध, जैसे किसी रिश्तेदार का पहले आतंकी होना, भी OGW बनने की राह बनाते हैं.

OGW को पैसा कहां से मिलता है?
-OGW को मिलने वाला पैसा अक्सर हवाला नेटवर्क, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों (ISI), या घरेलू स्तर पर NGO, व्यापारियों और धर्मिक संगठनों के जरिए आता है.
-एक सामान्य OGW को एक ऑपरेशन के लिए ₹5,000 से ₹50,000 तक मिल सकते हैं.
-सोशल मीडिया पर प्रोपेगेंडा फैलाने वाले OGWs को क्रिप्टो करेंसी या डिजिटल पेमेंट से पैसे भेजे जाते हैं.
-सुरक्षा एजेंसियों ने कई बार अवैध चंदा वसूली, ड्रग्स तस्करी और क्रॉस बॉर्डर फंडिंग के जरिए पैसे भेजे जाने की पुष्टि की है.

OGW की पहचान करना मुश्किल क्यों है?
-ये हथियार नहीं उठाते, सीधे हमलों में शामिल नहीं होते, इसलिए उन्हें पकड़ना मुश्किल होता है.
-ये समाज में घुल-मिलकर रहते हैं,
-इनकी आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं होती,
-इनके खिलाफ सबूत जुटाना तकनीकी तौर पर चुनौतीपूर्ण होता है.
-हालांकि अब NIA और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने OGW की पहचान के लिए डिजिटल ट्रेसिंग, कॉल -रिकॉर्डिंग, ट्रांजैक्शन एनालिसिस जैसे टूल्स का इस्तेमाल बढ़ा दिया है.

OGW के खिलाफ क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
-पब्‍ल‍िक सेफ्टी एक्‍ट और UAPA जैसे सख्त कानूनों के तहत OGWs को गिरफ्तार किया जा रहा है.
-NIA ने हाल के महीनों में 150 से ज्‍यादा OGW को गिरफ्तार किया है.
-जम्मू-कश्मीर पुलिस ने OGWs की एक डिजिटल लिस्ट भी तैयार की है, जिनकी निगरानी 24×7 होती है.
-सरकारी नौकरियों से निष्कासन, पासपोर्ट रोकने और प्रॉपर्टी सील करने जैसे कदम भी उठाए जा रहे हैं.

अमरनाथ यात्रा के मद्देनजर OGW की भूमिका
OGW अमरनाथ यात्रा जैसे आयोजनों में रूट, सुरक्षा घेरे, तीर्थयात्रियों की मूवमेंट जैसी जानकारियां आतंकियों तक पहुंचा सकते हैं. यही कारण है कि गृह मंत्री अमित शाह की बैठक में OGW नेटवर्क पर फोकस सबसे अहम माना जा रहा है.

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