बिहार चुनाव में तो गजब ट्विस्ट है! पहले चरण की वोटिंग में जमीन पर क्या दिखा?

2 hours ago

पटना. बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान अब सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं, बल्कि जनभावना और राजनीतिक प्रवृत्ति के महीन संकेतों की कहानी बन चुका है. मगध, शाहाबाद, सारण, तिरहुत और मिथिलांचल क्षेत्र में 18 जिलों की 121 सीटों पर करीब 60 प्रतिशत से अधिक मतदान इस बात की गवाही देता है कि जनता राजनीति से ऊब नहीं, बल्कि दिशा तय करने को तैयार है. मुद्दा सिर्फ यह नहीं कि नीतीश कुमार सत्ता में लौटेंगे या नहीं-असली सवाल यह है कि क्या बिहार स्थिरता को तरजीह देगा या बदलाव की आकांक्षा को? पहले चरण की जमीन पर यही द्वंद्व साफ दिखा- एक तरफ बुजुर्ग नीतीश कुमार के अनुभव, थकान और रिटायर्मेंट की चर्चा तो दूसरही ओर युवा जोश, उम्मीद और आशा के साथ कुछ नये की तलाश की राजनीति!

जमीन पर तस्वीर उतनी सरल नहीं थी जितनी प्रचार मंचों से दिखाई दी. नीतीश कुमार के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी की अपेक्षित लहर नहीं दिखी, लेकिन जनता की आंखों में- नौकरियों के, महंगाई के और युवाओं के पलायन के सवाल तो जरूर थे. शराबबंदी के बावजूद शराब की आसानी से उपलब्धता पर आम लोगों, विशेषकर महिलाओं में आक्रोश भी दिखे. वहीं, तेजस्वी यादव के मंचों पर उमड़ती भीड़ ने इस चुनाव को भावनात्मक ऊर्जा दी, लेकिन भीड़ और वोट के बीच की दूरी अभी भी सवालों में है. राजनीति के पुराने समीकरण इस बार मौन मतदाता, खासकर महिलाओं और युवाओं के आगे ढीले पड़ते नजर आए. स्पष्ट है कि पहला चरण बताता है कि बिहार अब केवल जातीय या परंपरागत निष्ठा से नहीं, बल्कि अपेक्षाओं और अनुभवों के सवाल के बीच संतुलन बनाते हुए मतदान कर रहा है. आइए हम क्षेत्रवार जमीनी स्थिति पर एक दृष्टि डालते हैं.

नीतीश, तेजस्वी, प्रशांत किशोर और ओवैसी के बीच नई सियासी लड़ाई के नैरेटिव के बीच बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में 60 प्रतिशत से अधिक मतदान, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच बदलाव बनाम स्थिरता का संघर्ष.

शाहाबाद: विकास बनाम जातीय निष्ठा की जंग

भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर जैसे जिलों में जमीनी तस्वीर मिली जुली रही. यह क्षेत्र परंपरागत रूप से राजनीतिक चेतना वाला माना जाता है. यहां नीतीश कुमार के शासन की सड़क और बिजली की उपलब्धियां अब भी मतदाताओं के जेहन में हैं. लेकिन, बेरोजगारी और किसान असंतोष जैसे मुद्दों ने युवा मतदाताओं को झुकाव की स्थिति में रखा है. तेजस्वी यादव के रोज़गार कार्ड अभियान का असर इस बेल्ट में खासकर भोजपुर-बक्सर क्षेत्र में दिखा. हालांकि, महिला मतदाताओं का मौन समर्थन अब भी नीतीश के पक्ष में एक अदृश्य पर स्थिर आधार के रूप में दर्ज हुआ है.

सारण: सामाजिक समीकरणों की नई रेखाएं

सारण वह भू-भाग है जहां लालू यादव की परंपरागत पकड़ रही है, लेकिन इस बार एनडीए का संगठन और जनसुराज का प्रभाव समीकरणों को जटिल बना गया है. जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार कई सीटों पर एनडीए के वोट बैंक में सेंध डालते दिखे- विशेषकर छपरा, मढ़ौरा और तरैया जैसे इलाकों में. यहां तेजस्वी यादव की सभाओं में अभूतपूर्व भीड़ रही, पर उसका ट्रांसफर वोट में कितना हुआ यह देखने की बात होगी. राजपूत और यादव मतदाताओं के बीच सॉफ्ट पोलराइजेशन के संकेत जरूर दिखे, लेकिन निर्णायक भूमिका महिलाओं और पहली बार वोट करने वाले युवाओं ने निभाई.

मगध: उम्मीद और असंतोष का मिलाजुला रंग

मगध क्षेत्र (गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल) में चुनाव विकास और उम्मीद दोनों पर टिका रहा. नीतीश सरकार की हर घर नल-जल और सड़क कनेक्टिविटी योजनाओं का असर यहां महसूस हुआ, पर उसी के समानांतर नौकरी, पलायन और महंगाई के सवाल गूंजते रहे. यहां तेजस्वी यादव का ‘नए बिहार’ वाला नैरेटिव गूंजा, लेकिन भाजपा के जमीनी संगठन और महिलाओं में मुख्यमंत्री की स्वच्छ छवि ने मुकाबले को संतुलित रखा. जनसुराज पार्टी के पवन वर्मा और प्रशांत किशोर की सक्रियता ने गया और जहानाबाद क्षेत्र में तीसरे मोर्चे की उपस्थिति जरूर दर्ज कराई, पर वोटों के स्तर पर यह प्रभाव सीमित से मध्यम ही दिखा.

मिथिलांचल: भावनाओं और परंपरा का संगम

दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी और समस्तीपुर की सीटों पर इस चरण में राजनीति से ज्या सांस्कृतिक पहचान और विकास की तुलना प्रमुख मुद्दे रहे. यहां भाजपा के संगठन ने मजबूती से मोर्चा संभाला, वहीं आरजेडी ने भावनात्मक जुड़ाव और बेरोज़गारी को केंद्र में रखकर युवा मतदाताओं में पैठ बनाई. महिलाओं ने ‘शांति और स्थिरता’ के नाम पर फिर एक बार नीतीश के प्रति मौन समर्थन जताया. यह समर्थन मैदान में भले दिखाई नहीं देता, पर परिणामों में निर्णायक साबित होता रहा है.

तिरहुत: जातीय गोलबंदी में विकास का नया विमर्श

एनडीए का कोर वोट बैंक अब भी मजबूत रहा, खासकर जहां स्थानीय सांसद या विधायक का संगठन पर पकड़ कायम दिख रहा है. हालांकि, महागठबंधन के उम्मीदवारों को यहां तेजस्वी यादव की लोकप्रियता और बेरोजगारी के सवाल से लाभ मिलता दिखा. मुजफ्फरपुर के शहरी इलाकों में युवाओं का झुकाव बदलाव का संकेत कर रहा था, जबकि ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की खामोशी और योजनाओं की निरंतरता सत्ता की स्थिरता पर भरोसा दिखा रहा था. कुल मिलाकर, वैशाली, राघोपुर, महुआ जैसे क्षेत्रों में राजनीति ने यह संकेत दिया कि यहां जातीय पहचान अभी भी आधार है, लेकिन निर्णायक फैक्टर विकास की स्वीकार्यता और नेतृत्व पर भरोसा बन चुका है.

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और जनसुराज के बीच स्थिरता बनाम बदलाव की जंग में महिलाओं व युवाओं की निर्णायक भूमिका.

बदलाव की इच्छा बनाम स्थिरता की उम्मीद

पहले चरण की वोटिंग ने बिहार की राजनीति को यह संकेत दिया है कि राज्य अब केवल जातीय निष्ठा पर नहीं, प्रदर्शन और भविष्य की आकांक्षा पर मतदान कर रहा है. जहां नीतीश कुमार का ‘भरोसे और स्थिरता’ वाला चेहरा अब भी प्रासंगिक बना हुआ है, वहीं तेजस्वी यादव युवा ऊर्जा और उम्मीद का नया प्रतीक बनकर उभरे हैं. जनसुराज जैसी नई ताकतें पारंपरिक गठबंधनों में सूक्ष्म डेंट डाल रही हैं, जिससे कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हुआ है. महिला मतदाताओं की भारी उपस्थिति और उनकी शांत राजनीतिक प्राथमिकताएं इस चरण की सबसे अहम कहानी है.

किस ओर कदम बढ़ा रहा बिहार-स्थिरता या बदलाव?

पहले चरण की वोटिंग ने यह साफ कर दिया है कि बिहार की राजनीति अब पारंपरिक संघर्ष से निकलकर मनोवैज्ञानिक चुनाव में बदल गई है. यहां मतदाता न तो केवल बदलाव चाहता है, न केवल स्थिरता, बल्कि वह भरोसे में बदलाव चाहता है. नीतीश कुमार की साख अब भी एक सुरक्षित विकल्प मानी जा रही है, पर तेजस्वी यादव की राजनीति ने उम्मीद की नई भाषा दी है. जनसुराज जैसी नई-नई राजनीतिक ताकतें सीमित होते हुए भी यह संकेत दे रही हैं कि बिहार अब सिर्फ दो ध्रुवों का ही राज्य नहीं रहा. महिलाओं और युवाओं का बढ़ता हस्तक्षेप इस चुनाव की निर्णायक धुरी बन सकता है, क्योंकि यही वर्ग जो शोर तो नहीं करता पर सत्ता की दिशा तय करता है.यही वर्ग तय करेगा कि बिहार स्थिरता को वोट देगा या बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाएगा.

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