शिमला. हिमाचल प्रदेश के शिमला (Shimla) जिला में रोहड़ू की स्पैल वैली के दलगांव में आयोजित भूंडा महायज्ञ (Bhunda Maha Yagya 2025) कई मायनों में ऐतिहासिक रहा. देव आस्था के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठानों और अनोखी परंपराओं के निर्वहन के अलावा इसका सामाजिक और आर्थिक पहलू भी है.
स्पैल वैली के लोगों में देवी-देवताओं के प्रति अटूट आस्था देखने को मिली, साथ ही इस घाटी के लोगों ने मेहमाननवाजी की ऐसी मिसाल पेश की जो दुनिया में शायद ही कहीं-कहीं देखने को मिलती है. देवसंस्कृति और धार्मिक अनुष्ठान के साथ साथ एकता और भाईचारा देखने को मिला और क्षेत्र का विकास भी हुआ और हजारों लोगों को रोजगार भी मिला, क्योंकि इस महायज्ञ की तैयारियां महीनों पहले शुरू हो जाती हैं.
भूंडा महायज्ञ के दौरान स्पैली वैली की 3 पंचायतों के करीब 900 घरों में उत्सव का माहौल देखने को मिला. हर घर में शामियानें लगे हुए नजर आए, खाने-पीने से लेकर अन्य प्रबन्ध ऐसे शानदार थे जैसे मानों किसी बड़े शादी समारोह का इंतजाम किया गया हो. हर घर में लंगर और भंडारे लगे हुए नजर आए, घर में आने वाले रिश्तेदारों के साथ-साथ जो भी लोग बाहर से आए, उनके लिए खाना परोसा गया. मेहमाननवाजी के लिए हर परिवार ने दिल खोल कर खर्च किया. चाहे अमीर हो या गरीब हर परिवार ने लाखों रुपये खर्चे, क्योंकि इस क्षेत्र में ये आयोजन 39 साल बाद आयोजित किया गया. मान्यता है कि क्षेत्र के सुख, समृद्धि और शांति के लिए इस महायज्ञ का आयोजन होता है.
क्षेत्र की 3 पंचायतों दलगांव, कुठाड़ा और गंवाणा के करीब 900 घरों में उतस्व का माहौल था.
दलगांव के परवत सिंह बांशटू के परिवार ने इस दौरान 33 लाख रुपये खर्च किए. इस खर्च में घर की मरम्मत से लेकर 8 हजार लोगों के लिए राशन का खर्च भी शामिल है. परवत सिंह ने बांशटू ने News 18 को बताया कि ये सारा खर्च घर में आने वाले मेहमानों के लिए किया गया ताकि मेहमानों को खाने-पीने से लेकर रहने में किसी तरह की कोई परेशानी न हो. उन्होंने बताया कि मेहमानों के लिए 4 क्विंटल 34 किलो बकरे का मीट खरीदा था, जिसकी कीमत 2 लाख 33 हजार रुपये से ज्यादा है. इसमें से डेढ़ क्विंटल मीट रामपुर से खरीदा गया और बाकी का मीट लोकल मार्केट की मीट की दुकान से लिया गया और इसके लिए 3 महीने पहले ऑर्डर दिया गया था. इसके अलावा, परवत सिंह ने बांशटू ने बताया कि 31-32 हजार रुपये की सब्जियां चंडीगढ़ से खरीदीं, पौने 2 लाख का राशन खरीदा, 1.50 लाख की शराब खरीदी और आयोजन के लिए कैटरिंग पर 2 लाख का खर्च आया. 35-40 हजार की पीने के पानी की बोतलें भी खरीदीं.
दलगांव के परवत सिंह बांशटू.
परवत सिंह ने कहा कि इसमें 3 लाख रुपये घर के रंग-रोगन पर भी खर्च किए गए. उन्होंने कहा कि ऐसा अनुमान था कि गांव में इस भूंडा महायज्ञ में 60 से 65 हजार लोगों के शामिल होंगे और हर रोज हमारे घर पर 2 हजार मेहमान आ सकते हैं, इसी के चलते, 8 हजार लोगों के लिए खाने-पीने का इतंजाम किया गया था. इसमें वेज-नॉन वेज दोनों तरह की फूड आइटम शामिल हैं. इस पूरे आयोजन के लिए वर्कर का भी प्रबंध करना पड़ा.
महायज्ञ की वजह से क्षेत्र का विकास
बांशटू ने बताया कि ये सब अपनी श्रद्धा और क्षमता के साथ किया गया और ये हमारे रीति-रिवाज भी हैं और मेहमाननवाजी के लिए तो ये क्षेत्र वैसे भी जाना जाता है. ऐसा नहीं है कि गांव में अकेले उन्होंने इतना खर्च किया, पूरी घाटी में लोगों ने अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार खर्च किया लेकिन इतना जरूर है कि ये खर्च लाखों में हुआ. 4 दिन का ये ऐतिहासिक आयोजन होता है. 80 के दशक में डीएवी कॉलेज जालंधर से ग्रेजुएशन करने वाले परवत सिंह बांशटू ने बताया कि इस महायज्ञ से क्षेत्र का विकास भी हुआ है. यहां पर प्रशासन करीब 3 महीनों से सक्रिया था, सड़कें चौड़ी की गईं, हालांकि उन्हें पक्का नहीं किया गया, रोहड़ू से दलगांव तक पक्की सड़क है और उसे चौड़ा किया गया.
रोहड़ू की स्पैल वैली में भुंडा महायज्ञ आयोजित किया गया था.
इस इलाके में पीने के पानी को लेकर भी कई तरह की समस्याएं थी. इस आयोजन के चलते जल शक्ति विभाग ने क्षेत्र में 4.50 लाख लीटर क्षमता के पानी के पानी के टैंक बनाए. कुछ स्थानों पर पार्किंग भी बनाई गई. बांशटू ने कहा कि कई इलाकों में तो इतनी सुविधाएं मिली जो उन्हें 10 साल में भी शायद ही मिल पाती.
900 घरों में उत्सव का माहौल
बुठारा गांव के स्थानीय निवासी मनीष ठाकुर ने बताया कि इस क्षेत्र की 3 पंचायतों दलगांव, कुठाड़ा और गंवाणा के करीब 900 घरों में उतस्व का माहौल रहा. इस इलाके में देवता महाराज के प्रति गहरी आस्था है और आस्था का कोई मोल नहीं होता. उन्होंने कहा कि ये अनुष्ठान शांति, समृद्धि और भाईचारे के लिए आयोजित होता है, उसी के चलते तरह देव आस्था और श्रद्धा के चलते सभी घरों में उत्सव मनाया जाता है. रिश्तेदारों के साथ साथ दोस्तों को भी बुलाया जाता है, इसका कोई हिसाब नहीं रखा जाता कि कितने लोगों ने एक दिन में खाना खाने घर पर आए. मनीष के भाई ईश्वर ठाकुर ने कहा कि दिन-रात रसोई चली रहती है, जो भी आए उसे खाना खिलाया जाता है, इस आयोजन में शामिल होने के लिए लोग व्यक्तिगत तौर पर निमंत्रण पत्र तक छपवाते हैं.
रोहड़ू की स्पैल वैली में भुंडा महायज्ञ आयोजित किया गया था.
बीते रविवार को हुआ खत्म
गौरतलब है कि शिमला जिला के रोहड़ू क्षेत्र की स्पैल वैली में 39 साल बाद आयोजित ऐतिहासिक भूंडा महायज्ञ उछड़-पाछड़ परंपरा के साथ रविवार को संपन्न हुआ. 4 दिन तक चले भूंडा महायज्ञ के अंतिम दिन सभी मेहमान देवता और परशुराम जी मेजबान देवता बकरालू महाराज के साथ देव मिलन के बाद अपने-अपने घरों को विदा हुए. भूंडा महायज्ञ में स्थानीय बोली के अनुसार देव परंपरा में उछड़-पाछड़ को विदाई के रूप में जाना जाता है, इस अवसर पर मेहमान देवता समरैई क्षेत्र के महेश्वर देवता, मंडलगढ क्षेत्र के बौंद्रा देवता, रंटाडी के मोहरिष (महर्षि) देवता और मेहमान परशुराम जिसमें छौहारा क्षेत्र के गुम्मा, अंध्रेवठी और स्पैल वैली के खशकंडी ने मेजबान देवता बकरालू महाराज का आपस में देव मिलन हुआ. महायज्ञ के अंतिम दिन दलगांव में बकरालू देवता महाराज के प्रांगण में मंडप लिखा. 2 जनवरी को पहला दिन संघेड़ा के नाम से आयोजित हुआ, दूसरा दिन शिखा फेर रस्म निभाई गई, तीसरे दिन सबसे अहम बेड़ा और अंतिम दिन उछड़-पाछड़ नाम से जाना जाता है.
शिमला जिला के रोहड़ू क्षेत्र की स्पैल वैली.
शिमला जिला के रोहड़ू की स्पैल वैली के दलगां में आयोजित भूंडा महायज्ञ सांस रोक देने वाले और दिल दहलाने वाले दृश्यों के साथ संपन्न हुआ. महायज्ञ की आखिरी आहुति स्वरूप करीब 60-70 मीटर लंबी पवित्र रस्सी पर फिसलते हुए सैकड़ों फीट गहरी खाई को 70 वर्षीय सूरत के पार करते ही भूंडा संपन्न हुआ. इससे पहले कई परंपराओं का निर्वहन हुआ और अनुष्ठानों को पूरा किया गया. भूंडा महायज्ञ में बेड़ा यानि सूरत राम ही मुख्य आकर्षण और मुख्य धुरी भी माना जाता है. इस महायज्ञ के अंतिम दिन 40 हजार से ज्यादा लोगों के शामिल होने का अनुमान लगाया गया.
शिमला जिला के रोहड़ू क्षेत्र की स्पैल वैली में 39 साल बाद आयोजित ऐतिहासिक भूंडा महायज्ञ.
बीते शनिवार को भूंडा महायज्ञ के तीसरे दिन पवित्र घास से बनाई गई 720 फीट लंबी रस्सी बेड़े यानि सूरत राम के चढ़ने से पहले ही टूट गई थी, जिससे कई लोग निराश हुए और महायज्ञ को लेकर कई तरह की चिंताएं जनता के मन में जागृत हुई. इसके बाद फिर से भुंडे से जुड़े अनुष्ठानों, मंत्रोचारण और परंपराओं से रस्सी बांधने की प्रकिया शुरू हुई. इसके बाद स्थानीय देवता साहिब बकरालू महाराज और भूडे में शामिल हुए अन्य देवताओं के आशीर्वाद से बेड़ा पार हुआ. बेड़ा पार होते ही चारों ओर देवता के जयकारे लगने लगे. इस दौरान बेड़ा की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे. रस्सी के ठीक नीचे खाई में बचाव के लिए जाली लगाई गई थी और सूरत राम को और सुरक्षित करने के लिए रस्सी से भी बांधा गया था ताकि वो नीचे गिर न सके. इससे पहले विभिन्न रस्में निभाई गईं, हजारों की संख्या में खूंद, जिन्हें वीर राजपुत कहा जाता है, वो अस्त्र शस्त्र लेकर नाचते गाते दिखे. आखिर दिन दौरान देवता महेश्वर की भूमिका सबसे अहम रही.
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FIRST PUBLISHED :
January 7, 2025, 10:46 IST