Last Updated:April 16, 2025, 15:57 IST
Bihar Politics: बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने मुकेश सहनी के एनडीए में शामिल होने की संभावना जताई है, हालांकि सहनी ने इसे खारिज किया है. वहीं, इन दिनों बिहार की राजनीति में वीआईपी चीफ मुकेश सहनी की अहमियत बढ़ी हुई...और पढ़ें

बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, वीआईपी चीफ मुकेश सहनी और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव.
हाइलाइट्स
बीजेपी ने मुकेश सहनी के एनडीए में शामिल होने की संभावना जताई.मुकेश सहनी ने एनडीए में शामिल होने की अटकलों को खारिज किया.कास्ट इक्वेशन से मुकेश सहनी की राजनीतिक अहमियत बिहार में बढ़ी.पटना. राजनीति संभावनाओं का खेल है और कौन सा दल कब अपनी बेहतर राजनीतिक संभावनाओं को देख अपने गठबंधन का साथ छोड़ दूसरे गठबंधन का दामन थाम ले, इस पर दावे से कोई कुछ नहीं बोल सकता है . फिलहाल इस संभावना की चर्चा बिहार के सियासत में महागठबंधन के सहयोगी मुकेश सहनी को लेकर है. ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने मुकेश सहनी को लेकर बड़ा दावा कर दिया है अगर महागठबंधन में मुकेश सहनी का राजनीतिक कद नहीं बढ़ा तो वह एनडीए में शामिल हो सकते हैं. जानकारी तो यह भी सामने आई है कि इन दोनों नेताओं की मुलाकात भी हुई है. हालांकि मुकेश सहनी ने महागठबंधन छोड़ने की संभावनाओं को फिलहाल खारिज कर दिया है. बावजूद इसके विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के सर्वेसर्वा मुकेश सहनी को लेकर चर्चा हो रही है कि क्या मुकेश सहनी एनडीए के साथ आ सकते हैं? हालांकि, मुकेश सहनी स्वयं इन कयासबाजियों और अटकलों का खंडन कर रहे हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि के आधार पर उनको लेकर सियासत के सवाल तो उठते रहे हैं. एक सवाल यह भी कि आखिर मुकेश सहनी की अहमियत बिहार की सियासत में इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं?
दरअसल, मुकेश सहनी मल्लाह जाति से आते है जो बिहार में अति पिछड़ा समाज में आता है, लेकिन मुकेश सहनी लगातार निषाद समाज के उपजातियों को एकजुट करने में लगे हुए हैं, जिनकी आबादी एक अनुमान के मुताबिक बिहार में लगभग आठ से नौ प्रतिशत है. इनमें- गोढ़ी, बनपर, पीयर, चाई, मुरियारी, बिंद, मल्लाह , केवट , कैवर्त और घटवार सहित 13 उपजातियां हैं. जाहिर है लगभग आठ से नौ प्रतिशत की आबादी अति पिछड़ा समाज में कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है. अब यह भी तथ्य स्पष्ट है कि इस तबके के सबसे बड़े नेता के तौर पर मुकेश सहनी दावा करते हैं, जिसकी वजह से उनकी राजनीतिक हैसियत बनी हुई है.
सियासत में कब किसका मन डोल जाए!
वहीं, बिहार में अति पिछड़ा वोटर अभी तक एनडीए का मजबूत वोट बैंक माना जाता रहा है जो कभी लालू यादव का ‘जिन्न’ हुआ करता था, और मतपेटियों से मतगणना के दिन निकलता था. लेकिन, नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए ने इस वोट बैंक को लालू यादव से छीन लिया जिसकी वजह से एनडीए बिहार में मजबूत हालत में दिखती है. इस पर तेजस्वी यादव की भी नजर है और उन्होंने मुकेश सहनी को अपने पाले में किया है. हालांकि, मुकेश सहनी पर एनडीए की नजर पड़ी हुई है और सियासत में कब किसका मन डोल जाए और कौन विरोधी से दोस्त हो जाएं यह कोई नहीं कह सकता है.
जातिगत समीकरण के कारण मुकेश सहनी अहम
वहीं, राजनीति की जानकार कहते हैं कि मुकेश सहनी की जाति की आबादी का हिस्सा तीन प्रतिशत है, लेकिन उपजातियों को मिलाकर बिहार की आबादी में 8 से 9% का हिस्सा है. आबादी के लिहाज से देखें तो 13 करोड़ की आबादी में लगभग एक करोड चार लाख से लेकर 10 लाख तक की आबादी निषाद समुदाय की है. ऐसे में अगर ये इकट्ठा होते हैं और तो मुसलमानों की 17% और यादवों की 14 प्रतिशत आबादी की हिस्सेदारी के बाद सबसे बड़ा समूह होगा. ऐसे में मुकेश सहनी का महत्व बढ़ ही जाता है. लेकिन, सवाल यह है कि क्या मुकेश सहनी की पकड़ अपनी ही जाति उतनी है जितनी वह दावा करते हैं?
क्या मुकेश सहनी की जमीन पर भी पकड़ है?
बीते चुनाव के परिणामों को देखें तो उन पर उनकी ही जातियों का उतना विश्वास नहीं रहा है, जितना वह दावा करते रहे हैं. बावजूद इसके वह हाल के दिनों में पूरा बिहार घूमे हैं और लगातार अपने सहयोगियों समर्थकों को कसमें भी खिलाई हैं और वीआईपी का साथ देने का वादा लिया है. लेकिन, जमीन पर उनकी सियासी पकड़ तो चुनाव में ही देखने को मिलेगी. बीते चुनावों में उनका यह दावा उनके नजरिये से बहुत उत्साहजनक तो नहीं रहा है, लेकिन सियासत है, इसमें कब कैसी गोलबंदी हो जाए, कौन सी जाति समीकरण किधर फिट हो जाए यह भी नहीं कहा जा सकता.
First Published :
April 16, 2025, 15:57 IST