रावण की पत्नी मंदोदरी ने क्यों दिया राम को श्राप, इससे जिंदगीभर रहा क्या असर

6 hours ago

बाल्मीकि रामायण में तीन बार ये जिक्र आता है कि भगवान राम भी शाप से बच नहीं पाए. उन्हें रावण की पत्नी मंदोदरी, बाली और शंबूक ने शाप दिया था. जिसका असर सीधे सीधे उनकी जिंदगी पर नजर आया. शाप में जो कहा गया, उसका असर ताजिंदगी उन पर पड़ता रहा. क्या था ये शाप और क्यों उन्हें दिया गया था. मंदोदरी और बाली के बारे में तो हर कोई जानता होगा लेकिन ये शंबूक कौन था.

मंदोदरी रावण की पटरानी थी यानि उसकी कई बीवियों में सबसे प्रमुख और सबसे बड़ी. वह बहुत धार्मिक थी. भगवान की पूजा करती थी. हालांकि इसके लिए उसे रावण से बातें भी सुननी पड़ती थीं. जब रावण वन से राम की पत्नी सीता का धोखे से हरण करके श्रीलंका लेकर आया तो इसका सबसे ज्यादा विरोध करने वाली भी मंदोदरी ही थी.

उसने अपने पति से बार बार कहा कि उन्होंने ये काम गलत किया है. ये धर्मसम्मत नहीं है. वह रावण से सीता को वापस लौटाने की गुहार भी करती रही लेकिन रावण नहीं माना. मंदोदरी को अंदाज था कि उसके पति ने जो काम किया है, उसके बाद युद्ध का सामना करना होगा और ये युद्ध लंका के लिए बहुत विध्वंसक साबित होगा. पति के लिए भी अनर्थकारी होगा.

युद्ध में रावण मारा गया

युद्ध हुआ और उसमें रावण की मृत्यु राम के हाथों हुई. रावण को कोई मार नहीं सकता था, क्योंकि उसकी नाभि में अमृत था, जो उसको हर तरह से बचाता था. लेकिन नाभि में अगर कोई बाण मारता तो रावण का मारा जा सकता था. राम ने ऐसा ही किया. उन्होंने खास बाण रावण की नाभि में चलाकर उसकी जान ले ली.

युद्ध में राम ने खास बाण चलाकर रावण के नाभि को भेद दिया और उसकी मृत्यु हो गई. ( image generated by leonardo a)

तब मंदोदरी ने राम को श्राप दिया

जब राम ने रावण का वध किया, तो मंदोदरी ने शोक में आकर उन्हें शाप दिया कि “जिस प्रकार मैं आज पति के वियोग में दुखी हूं, उसी प्रकार तुम्हें भी पत्नी के वियोग में दुख भोगना पड़ेगा.” इस शाप का असर तब हुआ जब राम ने अयोध्या के लोगों की निंदा के कारण सीता का परित्याग कर दिया. उसके बाद सीता से उनका मिलन परिवार के तौर पर कभी नहीं हो सका.

शूद्ध तपस्वी शंबूक ने क्यों श्राप दिया

दूसरा श्राप उन्हें एक शूद्र शंबूक द्वारा दिया गया. दरअसल शंबूक तपस्या कर रहा था. इससे ब्राह्णण खिन्न हो गए. वो उसकी तपस्या रुकवाने और उसकी हत्या की साजिश रचने लगे.

उसी दौरान जब राम के राज्य में एक ब्राह्मण के पुत्र की अकाल मृत्यु हो गई, उसका कारण सभी ब्राह्मणों और ऋषियों ने मिलकर ये बताया कि एक शूद्र (शंबूक) तपस्या कर रहा है, जो वर्णाश्रम धर्म के विरुद्ध है, इसी वजह से ब्राह्मण पुत्र की मृत्यु हुई है.

राम से शंबूक की शिकायत की गई

ब्राह्मण और ऋषियों ने इसकी शिकायत राम से की. राम ने शंबूक का वध कर दिया. मरते समय शंबूक ने राम को शाप दिया कि “जिस प्रकार मेरा जीवन असमय में समाप्त हुआ, उसी प्रकार तुम्हें भी पत्नी और भाई से बिछड़कर दुख झेलना पड़ेगा.” इस शाप का प्रभाव भी सीता के त्याग और लक्ष्मण के वनवास के रूप में देखने को मिला. शंबूक के शाप ने भी राम के जीवन में विछोह और दुख को बढ़ाया, विशेषकर लक्ष्मण के त्याग के बाद उनका एकाकीपन.

यह घटना “उत्तरकांड” में वर्णित है, जो वाल्मीकि रामायण का एक भाग है. इसके अनुसार, जब राम अयोध्या पर शासन कर रहे थे , तब एक ब्राह्मण दरबार में पहुंचा. उसने बताया कि राम के कुशासन के कारण उसके छोटे बेटे की मृत्यु हो गई. राम ने तुरंत सभी मंत्रियों की बैठक बुलाई. कारण पूछा. ऋषि नारद ने उन्हें बताया कि तप के नियम के उल्लंघन के कारण ऐसा हुआ है.

राम ने उसका वध कर दिया

नारद ने बताया कि एक शूद्र तपस्या कर रहा था, जो त्रेता के युग में निषिद्ध था. राम शूद्र की तलाश में गए. वह स्थान ढूंढ़ निकाला जहां शंबूक तपस्या कर रहा था. यह पुष्टि करने के बाद कि शम्बूक वास्तव में एक शूद्र है, राम ने उसका वध कर दिया.

राम ने धोखे से वानरों के राजा बाली की हत्या कर दी, जिस पर मरते मरते उसने राम को श्राप दे दिया. (image generated by leonardo ai)

बाली ने भी मरते मरते इसलिए दिया था श्राप

इसी तरह सुग्रीव के भाई बाली ने भी राम को श्राप दिया था. राम ने छुपकर बाली का वध किया. मरते समय बाली ने उन्हें शाप दिया कि “तुमने छल से मेरी हत्या की है, इसलिए तुम्हें भी अपने प्रियजनों से छल का दुख झेलना पड़ेगा.”
जब बाली मरणासन्न था, तो उसने राम से पूछा, “हे राम! तुम धर्म के ज्ञाता हो, फिर भी तुमने छुपकर मेरा वध क्यों किया? यह धर्म विरुद्ध है!” राम ने उत्तर दिया, “तुमने अपने छोटे भाई सुग्रीव का अधिकार छीन लिया था, इसलिए तुम्हारा वध न्यायसंगत है.”
बाली ने कहा— “यदि तुमने मुझे युद्ध में चुनौती देकर मारा होता, तो मैं प्रसन्न होता लेकिन तुमने छल किया इसलिए मैं तुम्हें शाप देता हूँ कि तुम्हें भी अपने जीवन में छल और वियोग का दुख झेलना पड़ेगा!”

क्या होता है श्राप, क्या ये भारतीय संस्कृति के अलावा दूसरे कल्चर में भी

श्राप का उल्लेख भारतीय संस्कृति में तो है ही. दूसरी संस्कृतियों में भी इसका जिक्र होता है. श्राप एक अलौकिक शक्ति या दैवीय प्रकोप माना जाता है, जिसके कारण व्यक्ति या समूह को दुःख, विपत्ति या विनाश का सामना करना पड़ता है. भारतीय संस्कृति में इसे “शाप” कहा जाता है, जो अक्सर ऋषियों, देवताओं या पीड़ितों के शब्दों से दिया जाता था.
ऋषि दुर्वासा अपने गुस्से और श्राप देने के लिए बहुत प्रसिद्ध थे. गांधारी के श्राप के कारण श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई. महाभारत में द्रौपदी ने कौरवों को विपत्तियों का श्राप दिया था.

ग्रीक माइथोलॉजी में मेडुसा को एथेना ने श्राप दिया था कि वह जिसे भी देखेगी, वह पत्थर बन जाएगा. इजिप्टियन मिथक में फैरो पर “ममी का श्राप” जैसी मान्यताएं प्रचलित थीं. यहूदी-ईसाई परंपरा में बाइबल में “कैन का श्राप” (हाबिल की हत्या के लिए) और “फिरौन का श्राप” (मूसा के समय) जैसे उदाहरण मिलते हैं. रोमन कल्चर में “डिफिक्सियोनेस” (Defixiones) नामक श्राप-पट्टियां मिली हैं, जिन पर लिखकर दुश्मनों को हानि पहुंचाने की कोशिश की जाती थी.

क्या श्राप का कोई वैज्ञानिक आधार है?

विज्ञान श्राप को अंधविश्वास मानता है, लेकिन कुछ मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव इसे समझने में मदद कर सकते हैं. नोसीबो इफेक्ट (Nocebo Effect) कहता है कि जब कोई व्यक्ति किसी श्राप के डर से मानसिक रूप से बीमार हो जाता है तो उसकी मृत्यु तक हो सकती है. कुछ लोग मानते हैं कि बुरे कर्मों का परिणाम ही श्राप जैसा होता है. श्राप मुख्य तौर पर मान्यताओं और मनोवैज्ञानिक प्रभावों से जुड़ा है. विज्ञान इसे प्रमाणित नहीं करता, लेकिन इसका सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व अधिक है.

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