राष्ट्रपति को समयसीमा देने पर पूर्व SC जज की आपत्ति, धंकर के बयान का समर्थन

1 day ago

Last Updated:April 18, 2025, 15:44 IST

Timeline for President: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को राज्यपालों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर समयसीमा तय करने का निर्देश दिया, जिससे उपराष्ट्रपति जगदीप धंकर नाराज हो गए. अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ...और पढ़ें

राष्ट्रपति को समयसीमा देने पर पूर्व SC जज की आपत्ति, धंकर के बयान का समर्थन

पूर्व SC जज अजय रस्तोगी ने राष्ट्रपति को विधेयकों पर समयसीमा देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया. (फोटो PTI)

हाइलाइट्स

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उपराष्ट्रपति धंकर नाराज.पूर्व जज अजय रस्तोगी ने धंकर का समर्थन किया.राष्ट्रपति को मजबूर करना सही नहीं: जस्टिस रस्तोगी.

रिपोर्ट- अनन्या भटनागर
राष्ट्रपति की समयसीमा पर विवाद:
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया जिससे सियासी गलियारों में नई हलचल पैदा हो गई. कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति को राज्यपालों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर फैसला लेने के लिए एक समयसीमा तय करनी होगी. इस बात पर उपराष्ट्रपति जगदीप धंकर नाराज हो गए. उन्होंने खुलकर अपनी असहमति जताई और कहा कि कोर्ट का यह कदम ठीक नहीं है. अब इस बहस में एक और नाम शामिल हो गया. वह नाम है सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अजय रस्तोगी का.

जस्टिस रस्तोगी ने उपराष्ट्रपति जगदीप धंकर की बातों का समर्थन करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रपति के लिए समयसीमा पर दिशानिर्देश देने से बचना चाहिए था. उन्होंने साफ कहा कि संविधान में ऐसी कोई समयसीमा तय नहीं है. इसलिए कोर्ट को ऐसा निर्देश नहीं देना चाहिए था. जस्टिस रस्तोगी ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति को किसी काम के लिए ‘मजबूर’ करना सही नहीं है और अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति नहीं देता कि वह राष्ट्रपति को कोई खास काम करने का आदेश दे.

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President of India is a very elevated position. President takes oath to preserve, protect and defend the constitution. This oath is taken only by the President and the Governors.

If you look at the Indian Constitution, the President is the first part of the Parliament. Second… pic.twitter.com/Tfr8c6dPot

— Vice-President of India (@VPIndia) April 17, 2025

क्या कहा था उपराष्ट्रपति धंकर ने?
उपराष्ट्रपती जगदीप धनकर ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला समझ से परे है. उन्होंने सवाल उठाया कि देश किस दिशा में जा रहा है, जहां राष्ट्रपति को भी समयबद्ध तरीके से काम करने के लिए कहा जा रहा है. और अगर ऐसा नहीं होता है तो वह विधेयक कानून बन जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि अब जज विधायिका और कार्यपालिका का काम भी करेंगे और एक ‘सुपर संसद’ की तरह व्यवहार करेंगे, जबकि उन पर देश का कोई कानून लागू नहीं होता. उन्होंने अनुच्छेद 142 को लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक ‘परमाणु मिसाइल’ तक कह डाला.

Not for a moment will I ever say that we must not give premium to innocence. Democracy is nurtured, its core values blossom, and human rights are taken at a high pedestal when we believe in innocence till the guilt is established. Therefore, I must not be misunderstood as casting… pic.twitter.com/IziN2OYf57

— Vice-President of India (@VPIndia) April 17, 2025

क्या है पूरा मामला?
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला नवंबर 2023 में तमिलनाडु सरकार की एक याचिका पर आया था. तमिलनाडु सरकार ने आरोप लगाया था कि राज्य के राज्यपाल कई विधेयकों को लंबे समय से रोक कर बैठे हैं. इनमें से कुछ तो 2020 से लंबित हैं. उपराष्ट्रपति धंकर की इन टिप्पणियों पर जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि न्यायपालिका और कार्यपालिका को एक-दूसरे के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बयानबाजी से बचना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि उपराष्ट्रपति ने जो कुछ भी कहा वह उनकी निजी राय है और वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे.

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

April 18, 2025, 15:44 IST

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