Last Updated:March 09, 2025, 13:34 IST
24 नवंबर 2024 को संभल में भड़क हिंसा के दौरान पुलिस पर पथराव करने के आरोप में फरहाना को गिरफ्तार किया गया था. न्यूज18 से बातचीत में उसने 87 दिन जेल में बिताने का अपना दर्दनाक अनुभव साझा किया. 120 किलो वजन वाली ...और पढ़ें

न्यूज18 से बातचीत में फरहाना ने 87 दिन जेल में बिताने का अपना दर्दनाक अनुभव साझा किया. (PTI फोटो)
हाइलाइट्स
संभल हिंसा के दौरान पथराव करने के आरोप में फरहाना को गिरफ्तार किया गया था.इसी आरोप में 120KG वजनी फरहाना को 87 दिनों तक जेल में बिताने पड़े.हालांकि SIT ने उसका हाल देखा तो साफ हो गया कि ये इल्जाम गलत थे.ओलिवर फ्रेडरिक
मुरादाबाद. 48 साल की फरहाना के लिए उनका 120 किलो वजन हमेशा से एक चुनौती रहा था. यह उनके लिए रोजमर्रा के कामों को मुश्किल बना देता था. लेकिन उन्हें कभी अंदाजा नहीं था कि यही वजन एक दिन उनकी बेगुनाही साबित करने का सबसे बड़ा सबूत बन जाएगा और उन्हें गलत तरीके से जेल जाने से बचा लेगा.
फरहाना को 24 नवंबर 2024 को उत्तर प्रदेश के संभल में हुए दंगे में पुलिस पर पत्थर फेंकने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था. उन्हें इस आरोप में 87 दिन जेल में बिताने पड़े. लेकिन बाद में जांच में यह साबित हुआ कि फरहाना इस हिंसा में शामिल नहीं थीं, क्योंकि उनका वजन इतना ज्यादा था कि वे उस छत पर चढ़ ही नहीं सकती थीं, जहां से पत्थरबाजी हुई थी.
पड़ोसी से झगड़ा बना गिरफ्तारी की वजह
फरहाना एक गृहिणी हैं और उनके चार बच्चे हैं. वे संभल के नखासा थाना क्षेत्र के हिंदुखेड़ा इलाके में अपने परिवार के साथ रहती हैं. लेकिन उनका अपनी पड़ोसी ज़िकरा से झगड़ा होता रहता था. यह झगड़ा छोटी-छोटी बातों से शुरू होकर दुश्मनी में बदल चुका था. जब दंगे हुए, तो ज़िकरा ने मौके का फायदा उठाकर फरहाना को फंसा दिया.
26 नवंबर 2024 को ज़िकरा की गिरफ्तारी हुई, तो उसने झूठ बोलकर फरहाना का नाम भी दंगाइयों में शामिल करवा दिया. उसने कहा कि फरहाना ने भी पुलिस पर पत्थर फेंके थे. बिना सही जांच-पड़ताल किए पुलिस ने उसी दिन फरहाना को गिरफ्तार कर लिया और उन पर दंगे, जानलेवा हमला, पुलिस पर हमला और सरकारी आदेश न मानने जैसी गंभीर धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इसके बाद उन्हें मुरादाबाद जेल भेज दिया गया, जहां उन्होंने लगभग तीन महीने बिताए.
‘मैं चीखती रही कि मैं बेगुनाह हूं, लेकिन कोई नहीं सुनता था’
फरहाना ने बताया, ‘मैं बार-बार कह रही थी कि मैंने कुछ नहीं किया, मैं उस दिन घर से बाहर भी नहीं निकली थी. लेकिन पुलिस ने मेरी एक नहीं सुनी. उन्होंने मुझे अपराधी की तरह घसीटकर ले लिया. मुझे लगा कि मेरी जिंदगी खत्म हो गई है.’
जेल के दिन याद करते हुए फरहाना ने कहा कि वे बहुत डरी हुई थीं. ‘मैंने कभी पुलिस स्टेशन भी नहीं देखा था और अचानक जेल में पहुंच गई. वहां असली अपराधियों के बीच रहना बहुत डरावना था. रातों को नींद नहीं आती थी. मैंने हर दिन भगवान से प्रार्थना की कि कोई मेरी सच्चाई को समझे और मुझे बचाए.’
जेल में बिगड़ी तबीयत
फरहाना ने बताया कि उनका वजन ज्यादा होने के कारण जेल में रहना उनके लिए बहुत मुश्किल था. उन्होंने कहा, ‘वहां का खाना बहुत खराब था, हालात बहुत खराब थे. मेरा वजन ज्यादा है, जिससे मुझे जोड़ो में दर्द होता है और कई बार बीमार भी पड़ गई, लेकिन किसी ने परवाह नहीं की.’
SIT की जांच से खुली सच्चाई
इस मामले की जांच विशेष जांच दल (SIT) ने की, जिसकी अगुवाई एएसपी (उत्तर) श्रीश चंद्र ने की. जब पुलिस ने CCTV फुटेज और गवाहों के बयान चेक किए, तो उन्हें एक बड़ा अंतर नजर आया.
जो महिला पत्थर फेंकते हुए नजर आ रही थी, वह दुबली-पतली थी, जबकि फरहाना का वजन 120 किलो था. जांच में खुलासा हुआ कि असली अपराधी ज़िकरा की बहन मरियम थी, जिसने बुर्का पहनकर छत से पत्थर फेंके थे.
30 नवंबर 2024 को इंस्पेक्टर लोकेन्द्र कुमार त्यागी ने जांच अपने हाथ में ली और सारे सबूतों की पुष्टि की. 18 फरवरी 2025 को संभल के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की गई, जिसमें बताया गया कि फरहाना के खिलाफ कोई सबूत नहीं है. इसके बाद कोर्ट ने उन्हें 1 लाख रुपये के निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया.
कैसे भड़की थी हिंसा?
यह घटना 24 नवंबर 2024 को हुई थी, जब संभल के 16वीं सदी के शाही जामा मस्जिद की न्यायालय-आदेशित जांच की जा रही थी. इस जांच में यह पता लगाया जा रहा था कि क्या यह मस्जिद किसी हिंदू मंदिर के ऊपर बनाई गई थी.
जैसे ही सर्वे आगे बढ़ा, करीब 2,000 से 3,000 लोगों की भीड़ जमा हो गई और अचानक हिंसा भड़क उठी. पत्थरबाजी में 5 लोगों की मौत हो गई और कई पुलिसकर्मी घायल हो गए. इसके बाद प्रशासन ने बड़ी कार्रवाई करते हुए 27 लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें तीन महिलाएं भी थीं.
अब भी डर के साए में फरहाना
हालांकि फरहाना अब जेल से छूट चुकी हैं, लेकिन जो दर्द उन्होंने और उनके परिवार ने सहा, वह अभी भी उनके दिलों में जिंदा है. 87 दिन तक जेल में रहना उनके और उनके परिवार के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था.
उनके पति सुब्हान ने दिन-रात उनकी बेगुनाही साबित करने की कोशिश की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. उनका बेटा कहता है, ‘हम बार-बार कहते रहे कि हमारी मां निर्दोष हैं. वे तेज़ चल भी नहीं सकतीं, छत पर चढ़ना तो बहुत दूर की बात है. लेकिन किसी ने हमारी बात पर ध्यान नहीं दिया.’
उनकी बेटी ने बताया कि परिवार हर रात डर के साए में जी रहा था. ‘हमें नहीं पता था कि मां जेल में कैसी हैं, उनके साथ कैसा व्यवहार हो रहा है. पुलिस ने बिना जांच किए उन्हें गिरफ्तार कर लिया, यह बहुत गलत था.’
‘कौन देगा मेरी मां के 87 दिनों का हिसाब?’
जब फरहाना 87 दिन बाद जेल से बाहर आईं, तो परिवार ने राहत की सांस ली. लेकिन जो दर्द उन्होंने सहा, उसकी भरपाई कौन करेगा? उनके बेटे ने सवाल किया, ‘सच सामने आ गया, लेकिन क्या कोई मेरी मां को उन 87 दिनों की सजा के लिए न्याय दिलाएगा? कौन उनकी मानसिक और भावनात्मक तकलीफ का हिसाब देगा?’
अब फरहाना अपनी जिंदगी दोबारा शुरू करने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन गलत तरीके से जेल में डाले जाने का दर्द शायद कभी खत्म नहीं होगा.
Location :
Sambhal,Moradabad,Uttar Pradesh
First Published :
March 09, 2025, 13:34 IST