ठीक 36 साल पहले आज ही के दिन भारत के राजनीतिक इतिहास का एक ऐसा पन्ना लिखा गया था जो आज भी हर किताब में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. 2 दिसंबर 1989, दोपहर 12 बजकर 17 मिनट… राष्ट्रपति भवन का भव्य अशोका हॉल में 58 साल का एक शख्स प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहा था. वह शख्स थे विश्वनाथ प्रताप सिंह, जो भारत के सातवें प्रधानमंत्री बने.
वीपी सिंह को लेकर उस वक्त एक नारा बार-बार सुना जाता था. वह नारा था, ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है!’ उस फकीर ने महज 323 दिन राज किया, लेकिन उसने जो किया वह आज तक कोई प्रधानमंत्री नहीं कर पाया. देश के शीर्ष पद तक पहुंचने की उनकी कहानी एक कागज के टुकड़े से शुरू हुई थी. वह कागज तो आज तक किसी ने नहीं देखा, पर इसने 1989 के लोकसभा चुनाव में ऐसा तूफान खड़ा किया कि 415 सांसदों वाली राजीव गांधी की सबसे मजबूत सरकार साल भर में ही धूल चाट गई.
राजीव के सबसे खासमखास मंत्री कैसे बन गए विरोधी?
यह सब कुछ शुरू हुआ अप्रैल 1987 में… उस वक्त राजीव गांधी के पास सब कुछ था. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर पर सवार होकर कांग्रेस ने 415 सीटें जीती थीं. युवा प्रधानमंत्री, मिस्टर क्लीन की इमेज, कंप्यूटर क्रांति का नारा, देश में नई उम्मीद… लोग कहते थे कि राजीव गांधी की यह सरकार 20 से 25 साल चलेगी.
राजीव गांधी ने तब अपने सबसे ईमानदार और काबिल मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को रक्षा और वित्त मंत्रालय का जिम्मा सौंपा. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, इलाहाबाद के पास मांडा राजपरिवार के वारिस वीपी सिंह को पहले वित्त मंत्रालय, फिर जनवरी 1987 में रक्षा मंत्रालय सौंपा गया. राजीव गांधी को भरोसा था कि राजा मांडा भारतीय सेना को दुनिया की सबसे मजबूत सेना बनाएंगे.
कैसे निकला बोफोर्स का जिन्न?
फिर आया अप्रैल 1987 का वह दिन… स्वीडिश रेडियो ने खबर चलाई कि भारत की 410 बोफोर्स तोपों की डील में 64 करोड़ रुपये की दलाली बंटी है. वीपी सिंह ने जांच शुरू की. जांच में स्विस बैंक अकाउंट्स के नंबर, मध्यस्थों के नाम और सबसे खतरनाक नाम सामने आया, ओत्तावियो क्वात्रोची का… इटली का यह बिजनेसमैन राजीव गांधी और सोनिया गांधी का फैमिली फ्रेंड था.
राजीव गांधी को लगा खतरा बहुत करीब आ गया. उन्होंने तुरंत वीपी सिंह को रक्षा मंत्रालय से हटाकर वित्त मंत्रालय भेज दिया. लेकिन वीपी सिंह रुके नहीं. 16 अप्रैल 1987 को वे हाथ में बोफोर्स जांच की फाइल लेकर लोकसभा में खड़े हुए. उन्होंने कहा, ‘मैंने सच सामने लाने की कोशिश की, इसलिए मुझे हटा दिया गया. मैं कैबिनेट से इस्तीफा देता हूं.’
कौन-कौन आ गए वीपी सिंह के साथ?
इसके साथ ही वह कांग्रेस से बाहर हो गए और उसी दिन बोफोर्स राजीव गांधी की सबसे बड़ी कमजोरी बन गया. इस्तीफे के बाद वीपी सिंह अकेले नहीं रहे. अरुण नेहरू, अर्जुन सिंह, माधवराव सिंधिया, एनडी तिवारी, वीसी शुक्ला जैसे बड़े कांग्रेसी नेता बगावत करके उनके साथ आ गए. चौधरी देवीलाल, चंद्रशेखर, हेमवती नंदन बहुगुणा, जॉर्ज फर्नांडिस जैसे पुराने समाजवादी भी साथ आ गए.
फिर 11 अक्टूबर 1988 को बैंगलोर में जनता दल का जन्म हुआ और वीपी सिंह उसके अध्यक्ष बने. फिर शुरू हुआ देश का सबसे बड़ा जनआंदोलन. हरियाणा से तमिलनाडु, बिहार से गुजरात तक हर रैली में एक ही दृश्य होता. वीपी सिंह मंच पर चढ़ते, जेब से छोटी सी सफेद पर्ची निकालते थे, हाथ ऊपर उठाते और चिल्लाते, ‘ये देखो! इस कागज में लिखे हैं स्विस बैंक के अकाउंट नंबर! बोफोर्स की दलाली लेने वालों के नाम हैं! सत्ता में आए तो 15 दिन में सारा पैसा वापस लाऊंगा!’ राजा मांडा की ये बात सुनकर लोग दीवाने हो जाते. बच्चे-बूढ़े, औरतें-मर्द सब नारा लगाते, ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का क्या हाल हुआ?
फिर 1989 का लोकसभा चुनाव आया. 22 से 26 नवंबर तक मतदान हुआ. 1 दिसंबर को जब नतीजे आए तो कांग्रेस की दुर्गती देख सब हैरान रह गए. कांग्रेस 415 से गिरकर सिर्फ 197 सीटों पर सिमट गई. जनता दल को 143, बीजेपी को 85 और वामपंथियों को 45 सीटें मिलीं.
वीपी सिंह का वह पर्ची काम कर गई. राजीव गांधी हार गए. वीपी सिंह नेशनल फ्रंट के नेता बनकर दिल्ली पहुंचे. प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही उन्होंने पहला ऐलान किया, ‘बोफोर्स की जांच फिर शुरू. सीबीआई को खुली छूट. 15 दिन में पैसा वापस.’
कहां गई वह डायरी?
लेकिन सत्ता में आने के बाद वह डायरी कहां गई? वह स्विस बैंक अकाउंट नंबर… वह 15 दिन का वादा… कभी सामने नहीं आए. नाम कभी सार्वजनिक नहीं हुए. बोफोर्स के भ्रष्टाचारी आज तक रहस्य बने हुए हैं. यही वीपी सिंह की सबसे बड़ी आलोचना बना. राजीव समर्थक आज भी कहते हैं कि वह डायरी सिर्फ चुनावी जुमला थी.
फिर भी वीपी सिंह की 323 दिन की सरकार ने जो किया वह अमर हो गया. उन्होंने 8 अगस्त 1990 को मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करते हुए ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान कर दिया. अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन को लेकर लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली. हालांकि उस रथ यात्रा को बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव रोक दिया गया और उधर बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
इस तरह 7 नवंबर 1990 को वीपी सिंह सरकार गिर गई. आखिरी भाषण में वीपी सिंह ने कहा, ‘मैं कुर्सी के लिए नहीं आया था. मैं सिद्धांत के लिए आया था. मैं जा रहा हूं, लेकिन सच के साथ जा रहा हूं.’ 36 साल बाद भी सवाल वही है, क्या वाकई उस डायरी में स्विस बैंक अकाउंट नंबर थे या यह सिर्फ चुनावी हथियार था? कोई नहीं जानता. लेकिन सच यही है कि उसी डायरी ने 415 सीटों वाली सरकार को 197 पर ला पटका, भ्रष्टाचार को पहली बार चुनावी मुद्दा बनाया और एक फकीर को प्रधानमंत्री बना दिया.

52 minutes ago
