Mahakumbh: महाकुंभ में अघोरी साधु भी आएंगे. वो और उनकी गतिविधियां हमेशा कौतुहल का केंद्र तो होती हैं लेकिन वो बहुत कुछ ऐसा करते हैं जो उनके लिए तो नार्मल है लेकिन सामान्य आदमी इसे देख भी नहीं सके. जानकर उसको घिन आ जाए.
News18 हिंदीLast Updated :January 8, 2025, 09:54 ISTFiled bySanjay Srivastava
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अघोरी बाबाओं की दुनिया इतनी रहस्यमय होती है हर कोई इसके बारे में जानकर अचरज में पड़ जाता है. हर अघोरी के पास नरमुंड जरूर होता है, इसको वो हमेशा पास रखते हैं. इसी को पात्र बनाकर वो इसमें खाते हैं. इसी में पानी पीते हैं. चूंकि अघोरी शराब का सेवन भी करते हैं तो उसमें ये नरमुंड ही उनका पात्र बनता है. आप ये जानकर हैरान अगर हो रहे हैं तो आगे जानिए अघोरियों के बारे में ऐसी कुछ बातें. (news18 gfx)
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1860 में खींची गई एक अघोरी की फोटो, एक हाथ में नरमुंड और दूसरे में शराब की बोतल. अघोरी हिंदू देवता शिव की पूजा करते हैं. यह पंथ मुख्य रूप से मृत्यु से जुड़े शिव के रूप भैरव की पूजा करता है.अघोरी मूर्ति पूजा नहीं करते बल्कि अधिक एकाग्रता का अभ्यास करने के लिए ध्यान और शराब पर निर्भर रहते हैं. आमतौर पर वो भारत के श्मशान स्थलों के बीच रहते हैं - जहां भगवान शिव और देवी काली मां का निवास माना जाता है. अघोरी नरमुंड यानी मानव खोपड़ियों को भोजन के पात्र के रूप इस्तेमाल करते हैं. (फाइल फोटो)
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पहले के समय में अघोरियों को कपालिक या "खोपड़ीधारी" के रूप में जाना जाता था. यह नाम उन्हें इसलिए दिया गया क्योंकि वे धार्मिक समारोहों के दौरान खोपड़ियां साथ लेकर घूमते थे. ऐसा माना जाता था कि खोपड़ी भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करती थी. ये उनके बीच माना जाता है कि इसे ले जाने से सौभाग्य आएगा. (news18 gfx)
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ऐसा कहा जाता है कि इन तपस्वियों के पास शक्तिशाली जादुई क्षमताएं भी थीं जो उन्हें प्रकृति को नियंत्रित करने और यहां तक कि भविष्य की भविष्यवाणी करने की भी अनुमति देती थीं.अघोरी अपने साथ खोपड़ी क्यों रखते हैं, इसकी भी एक कहानी है. (news18gfx)
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एक मिथक के अनुसार, शिव ने एक बार ब्रह्मा के पांचवें सिर सिर को काट दिया. उस सिर को लेकर उन्हें समाज के बाहरी इलाके में घूमने के लिए मजबूर किया. इसलिए शिव का अनुकरण करने की चाह में अघोरी अपने साथ मानव खोपड़ी रखते हैं. (courtesy the sun)
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ये भी माना जाता है यह भी सुझाव दिया गया है कि अघोरी इस विश्वास के कारण मानव खोपड़ी रखते हैं कि मृत्यु के बाद मृतक की जीवन शक्ति खोपड़ी के शीर्ष में चिपकी रहती है. इसके अलावा, अघोरियों का मानना है कि कुछ मंत्रों और प्रसाद (विशेष रूप से शराब) के उपयोग से, वे मृतक की आत्मा को बुलाने और उस पर नियंत्रण हासिल करने में सक्षम होते हैं.
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अक्सर शवों का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. फिर उन्हें पवित्र गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है, लेकिन कुछ शवों को बिना दाह संस्कार के ही निपटा दिया जाता है. कहा जाता है कि अघोरी इन अवशेषों को इकट्ठा करते हैं. अपने आध्यात्मिक ज्ञान के लिए उनका उपयोग करते हैं. वो मानव मांस खाने के साथ-साथ मानव खोपड़ी का इस्तेमाल करते हैं. दावा किया जाता है कि कुछ पंथ के सदस्य शवों के साथ यौन क्रिया करते हैं, ताकि उन्हें अलौकिक शक्तियां मिल सकें. ये ऐसी बात है जिसे अघोर साधुओं के बारे में हमेशा से कहा जाता रहा है लेकिन आम लोगों के लिए ये अचंभित कर देने वाली बात है.(courtesy the sun)
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ऐसा माना जाता है कि ये शक्तियां उन्हें काला जादू करने में सक्षम बनाती हैं, जिसका उपयोग उन्हें दूसरों पर करने से रोका जाता है. अघोरी भौतिक वस्तुओं से दूर रहते हैं, अक्सर निर्वस्त्र होकर घूमते हैं. अघोरी अपनी जड़ें 17वीं सदी के शुद्धतावादी बाबा कीनाराम से जोड़ते हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे 170 वर्ष की उम्र तक जीवित रहे. बनारस में अब भी जिनका मठ और मंदिर है.
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बताया जाता है कि शिव के पांच स्वरूपों में एक रूप 'अघोर' भी होता है. अघोरी बनने की सबसे पहली शर्त है मन से घृणा को खत्म करना. जिन चीज़ों से मनुष्य जाति घृणा करती है, उन्हें अघोरी अपनाते हैं. अघोरी शब्द का संस्कृत भाषा में मतलब होता है 'उजाले की ओर'. साथ ही इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त भी समझा जाता है. लेकिन अघोरियों को रहन-सहन और तरीके इसके बिलकुल विरुद्ध ही दिखते हैं. (news18)
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अघोरियों को कुत्तों से बहुत प्रेम होता है. अन्य सभी जानवरों जैसे गाय, बकरी या इंसान से दूरी बनाने वाले अघोरी अपनए साथ और आस-पास कुत्ता रखना पसंद करते हैं.