Last Updated:November 28, 2025, 23:56 IST
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दहेज प्रथा विवाह की पवित्रता नष्ट करती है और महिलाओं के उत्पीड़न को बढ़ावा देती है. दहेज हत्या समाज-विरोधी और जघन्य अपराध है. चार महीने बाद पत्नी को जहर देने वाले आरोपी की जमानत रद्द की गई. अदालत ने कहा कि यह मानव गरिमा और संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 का उल्लंघन है.
कोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार किया. नई दिल्ली. शादी के चार दिन बाद पति की हरकत को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक मामले में कहा कि विवाह एक पवित्र और महान संस्था है जो आपसी विश्वास और सम्मान पर आधारित है, लेकिन दहेज की बुराई के कारण यह पवित्र बंधन दुर्भाग्य से एक व्यावसायिक लेन-देन बनकर रह गया है. कोर्ट ने पति की जमानत की अर्जी को भी खारिज कर दिया. न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि दहेज हत्या केवल एक व्यक्ति के विरुद्ध नहीं बल्कि समग्र समाज के विरुद्ध अपराध है.
लालच को शांत करने का एक साधन
बेंच ने कहा, ‘‘यह न्यायालय इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकता कि विवाह, अपने वास्तविक स्वरूप में, आपसी विश्वास, साहचर्य और सम्मान पर आधारित एक पवित्र और महान संस्था है. हालांकि, हाल के दिनों में, यह पवित्र बंधन दुर्भाग्य से एक मात्र व्यावसायिक लेन-देन बनकर रह गया है. दहेज की बुराई को (भले ही) अक्सर उपहार या स्वैच्छिक भेंट के रूप में छिपाने की कोशिश की जाती है, लेकिन वास्तव में यह सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदर्शित करने और भौतिक लालच को शांत करने का एक साधन बन गई है.’’
पति को नहीं दी जमानत
बेंच ने यह टिप्पणी उस व्यक्ति की जमानत रद्द करते हुए की, जिस पर शादी के सिर्फ चार महीने बाद ही दहेज के लिए अपनी पत्नी को जहर देने का आरोप है. शीर्ष अदालत ने उस व्यक्ति को जमानत पर रिहा करने के उच्च न्यायालय के आदेश को ‘‘प्रतिकूल और अव्यावहारिक’’ पाया, क्योंकि इसमें अपराध की गंभीरता, मृत्यु से पहले दिए गए पुष्ट बयानों और दहेज हत्या की वैधानिक धारणा को नजरअंदाज किया गया था. इसमें कहा गया है कि ‘दहेज की सामाजिक बुराई’ न केवल विवाह की शुचिता को नष्ट करती है, बल्कि महिलाओं के व्यवस्थित उत्पीड़न और पराधीनता को भी बढ़ावा देती है.
यह अपराध मानवीय गरिमा की जड़ पर प्रहार करता है
बेंच ने कहा, ‘‘दहेज हत्या की घटना इस सामाजिक कुप्रथा की सबसे घृणित अभिव्यक्तियों में से एक है, जहां एक युवती का जीवन उसके ससुराल में ही समाप्त कर दिया जाता है और वह भी उसकी किसी गलती के कारण नहीं, बल्कि केवल दूसरों के अतृप्त लालच को संतुष्ट करने के लिए.’’ अदालत ने कहा कि इस तरह के जघन्य अपराध मानवीय गरिमा की जड़ पर प्रहार करते हैं और अनुच्छेद 14 और 21 के तहत समानता और सम्मानजनक जीवन की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन करते हैं.
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पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
First Published :
November 28, 2025, 23:56 IST

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