Last Updated:November 25, 2025, 19:04 IST
श्री माता वैष्णोदेवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस में 90 फीसदी मुस्लिम छात्रों का दाखिला कैसे हुआ? क्या यहां सिर्फ हिन्दू छात्रों को एडमिशन नहीं मिल सकता है? संविधान क्या कहता है? इसके पीछे पूरी कहानी क्या है और क्यों विवाद हो रहा है?
जम्मू कश्मीर के माता वैष्णों देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सिलेंस.कटरा स्थित श्री माता वैष्णोदेवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस में एमबीबीएस के छात्रों के लिए एडमिशन हुआ तो विवाद खड़ा हो गया. क्योंकि जिन 50 छात्रों का दाखिला हुआ, उनमें से 42 कश्मीरी मुस्लिम हैं. यह देखकर बीजेपी और हिन्दू संगठन गरम हो गए. कहने लगे कि यह मेडिकल कॉलेज तो श्री माता वैष्णो देवी ट्रस्ट के पैसों से चलता है. इसमें मुस्लिम छात्रों को एडमिशन नहीं देना चाहिए. यहां सिर्फ हिन्दू छात्र पढ़ सकते हैं. इस पर राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, जब आप इस मेडिकल संस्थान की स्थापना कर रहे थे, उसी समय आपको इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देना चाहिए था. ऐसा क्यों नहीं किया गया? विवाद चरम पर है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल कि श्री माता वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज सिर्फ हिन्दू क्यों नहीं पढ़ सकते? जैसी डिमांड हो रही. दूसरा, क्यों वहां ज्यादातर मुस्लिम छात्रों को ही एडमिशन दिया गया, हिन्दुओं को नहीं?
समझें कैसे हुआ यह पूरा मामला
इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा. श्री माता वैष्णोदेवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस में इसी साल एमबीबीएस के लिए 50 सीटें आवंटित हुई थीं. इस कॉलेज में एडमिशन के लिए काउंसलिंग भी जम्मू-कश्मीर के 13 मेडिकल कॉलेजों की तरह NEET रैंकिंग के जरिये हुई. इन 13 कॉलेजों में कुल 1,685 सीटें थीं, जिसके लिए 5,865 छात्रों को शॉर्टलिस्ट किया गया. सब यूनियन टेरिटरी के रहने वाले थे. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि यहां यूनियन टेरिटरी के डोमिसाइल छात्रों के लिए 85% सीटें आरक्षित हैं और बाकी 15% सीटें बाकी भारत के छात्रों के लिए खुली हैं. बाकी सीटों पर दाखिले के लिए 2000 दूसरे छात्रों को बुलाया गया. इस लिस्ट में 70% से अधिक छात्र मुस्लिम कम्युनिटी के थे. इसलिए जब वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज की लिस्ट निकली तो 90 फीसदी मुस्लिम समुदाय से आने वाले छात्रों को एडमिशन दे दिया गया. अफसरों का कहना है कि यह कोई नया पैटर्न नहीं, मुस्लिम छात्रों की संख्या ज्यादा होने की वजह से जम्मू क्षेत्र के भी ज्यादातर कॉलेजों की सीटें भी कश्मीरी छात्रों से भरी जाती हैं. उनका कहना है कि मेरिट के आधार पर मुस्लिम छात्रों ने इस कॉलेज में भी जगह बना ली, क्योंकि हिन्दू छात्रों की संख्या कम थी.ऑल इंडिया रैंकिंग से भर्ती की डिमांड
श्री माता वैष्णोदेवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस ने नेशनल मेडिकल काउंसिल (NMC) के सामने कोटा सिस्टम से दाखिले का प्रपोजल रखा था. उसका कहना था कि सभी 50 सीटें मेडिकल काउंसलिंग कमेटी (MCC) के जरिए अलॉट की जाएं, ताकि देश भर के कैंडिडेट मुकाबला कर सकें. कॉलेज ने कहा कि चूंकि यह पूरी तरह से श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड को दिए गए डोनेशन से फंडेड है और इसे केंद्र शासित प्रदेश के एडमिनिस्ट्रेशन से कोई फाइनेंशियल मदद नहीं मिलती है, इसलिए एडमिशन प्रोसेस में मंदिर और उसके भक्तों का ऑल-इंडिया कैरेक्टर दिखना चाहिए. लेकिन नेशनल मेडिकल काउंसिल ने यह प्रस्ताव रिजेक्ट कर दिया.उमर अब्दुल्ला ने क्या कहा?
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, दाखिले नीट और प्रवेश परीक्षाओं के आधार पर होते हैं, धर्म के आधार पर नहीं. अगर आप चाहते हैं कि मुसलमान इस संस्थान में न पढ़ें, तो आप इसे अल्पसंख्यक संस्थान घोषित कर दें. भविष्य में अगर आप मुसलमानों पर उंगली उठाएंगे और उन पर सांप्रदायिक या फिरकापरस्त होने का आरोप लगाएंगे, तो आपको उस समय यह घटना याद रखनी चाहिए. जब आप उनके (मुसलमानों के) बच्चों को बर्दाश्त नहीं करते, और कल को कुछ हो जाए, तो आप उसके लिए पूरे समुदाय को दोषी नहीं ठहरा सकते.
तो अल्पसंख्यक संस्थान का क्या मतलब?
संविधान के अनुसार कुछ समुदाय जैसे मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी अल्पसंख्यक माने जाते हैं. अल्पसंख्यक संस्थान वे शैक्षणिक संस्थान होते हैं जिन्हें इन समुदायों द्वारा स्थापित और संचालित किया जाता है, ताकि वे अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं को सुरक्षित रख सकें. ऐसे में सवाल कि क्या हिंदू और अन्य धर्मों के लोग वहां पढ़ सकते हैं? तो जवाब है हां. भारत में किसी भी मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान में अन्य धर्मों के छात्रों को प्रवेश देने से रोकने वाला कोई कानून नहीं है.
फिर ‘अल्पसंख्यक’ संस्थान की विशेषता क्या है?
1. वे अपने समुदाय के छात्रों के लिए कुछ प्रतिशत सीटें आरक्षित रख सकते हैं. उदाहरण के लिए, एक ईसाई कॉलेज अपनी 50% तक सीटें ईसाई छात्रों के लिए रख सकता है. इन संस्थानों को स्टाफ की भर्ती, पाठ्यक्रम या प्रशासनिक फैसलों में थोड़ा अधिक स्वतंत्रता मिलती है.
2. तो क्या गैर-अल्पसंख्यक छात्र कम संख्या में लिए जाते हैं? जरूरी नहीं. क्योंकि कई अल्पसंख्यक संस्थानों में गैर-अल्पसंख्यक छात्रों की संख्या बहुत अधिक होती है. कई संस्थान 90% तक गैर-अल्पसंख्यक छात्रों को भी प्रवेश देते हैं. यह पूरी तरह संस्थान की नीतियों पर निर्भर करता है.
Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें
Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...
और पढ़ें
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
Location :
Jammu and Kashmir
First Published :
November 25, 2025, 19:04 IST

1 hour ago
