फिलीपींस में एक हैरान कर देने वाली घटना सामने आई है. राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर ने गुरुवार को अपने मंत्रिमंडल के सभी मंत्रियों से इस्तीफा मांगकर अपनी सरकार में बड़े बदलाव का ऐलान किया. इसे उन्होंने 'बोल्ड रीसेट' यानी साहसिक नई शुरुआत बताया है. आखिर मार्कोस को यह नौबत क्यों आई. इस मामले को लेकर एसोसिएटेड प्रेस में एक रिपोर्ट छपी है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह फैसला हाल ही में हुए मध्यावधि चुनावों के बाद हुआ है. जिसमें विपक्षी उम्मीदवारों ने सीनेट की अहम सीटों पर जीत हासिल कर ली थी. मध्यावधि चुनाव में 12 सीनेट सीटों में से पांच पर सारा दुतर्ते या उनके पिता रोड्रिगो के सहयोगी जीते हैं. यानी विपक्ष की बढ़ती पकड़ और सरकार के प्रति नाराजगी की वजह से राष्ट्रपति ने यह बड़ा कदम उठाया है.
मार्कोस ने इस्तीफ के मामले पर कहा 'यह सामान्य कामकाज नहीं है. जनता ने अपनी बात रखी है. वे राजनीति या बहाने नहीं, नतीजे चाहते हैं. हम उनकी सुनेंगे और कदम उठाएंगे.' सरकार के बयान के मुताबिक, मार्कोस ने सभी मंत्रियों से सौजन्य इस्तीफा मांगा ताकि वे अपनी सरकार की प्राथमिकताओं को नए सिरे से तय कर सकें और हर विभाग के कामकाज की समीक्षा कर सकें. जिसके बाद कम से कम 21 मंत्रियों, जिनमें कार्यकारी सचिव लुकास बर्सामिन ने तुरंत इस्तीफा दे दिया या देने की सहमति जताई है.
मार्कोस ने कहा, "यह व्यक्तियों की बात नहीं, बल्कि कामकाज, एकजुटता और त्वरित कार्रवाई की जरूरत है. जिन्होंने अच्छा काम किया, उन्हें सराहा जाएगा. लेकिन अब सुस्ती की कोई जगह नहीं है." सरकार ने भरोसा दिलाया कि इस बदलाव के दौरान सरकारी सेवाएं बिना रुकावट चलती रहेंगी.
राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर 1986 में अपदस्थ किए गए दिवंगत फिलीपीन तानाशाह के 67 वर्षीय बेटे हैं. 2022 में एक आश्चर्यजनक राजनीतिक वापसी करते हुए देश में राष्ट्रपति पद जीता था. उस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय एकता के लिए एक दृढ़ आह्वान किया था. उनकी जीत ने देश में एकता की उम्मीद जगाई थी. लेकिन उनकी उप-राष्ट्रपति सारा दुतर्ते के साथ अनबन ने सियासी तनाव को और बढ़ा दिया था.. सारा और उनके पिता पूर्व राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतर्ते और मार्कोस के खिलाफ मुखर रहे हैं.
वैसे तो मार्कोस ने दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता के खिलाफ मजबूत रुख अपनाया है. अमेरिका जैसे सहयोगी देशों के समर्थन से वे इस मुद्दे पर सबसे मुखर नेता बन गए हैं. लेकिन देश के अंदर महंगाई, चावल की कीमतों को कम करने का अधूरा वादा, अपहरण और अन्य अपराधों की खबरों ने उनकी मुश्किलें बढ़ाई हैं.