दिल्ली में राष्ट्रपित महात्मा गांधी की समाधि स्थल राज घाट सबसे बड़ी है.
दिल्ली में कई प्रमुख नेताओं के समाधि स्थलों पर मैं गया हूं. मैंने पाया है कि वहां कई एकड़ ज़मीन पर मुख्य रूप से घास के मैदान, फूल पत्तियां और पेड़-पौधे होते हैं. समाधि तो बीच में थोड़ी सी जगह पर होती है. कहीं कहीं एक बिल्डिंग भी होती है, जिसमें उसका प्रशासनिक कार्यालय, संग्रहालय और सभाकक्ष इत्यादि होते हैं.
देखा जाए तो इस उद्देश्य के लिए पांच एकड़ जमीन काफी है. वह भी इस बात को ध्यान में रखते हुए कि ये राष्ट्रीय स्तर के नेता होते हैं, जिनकी पुण्यतिथि और जन्मतिथि पर अच्छी खासी भीड़ वहां इकट्ठा हो सकती है, अन्यथा एक एकड़ जमीन भी पर्याप्त होती.
एक एकड़ जमीन वैसे भी पर्याप्त हो सकती है, यदि अलग-अलग नेताओं की समाधि और संग्रहालय अलग-अलग हों, जबकि बाकी फैसिलिटीज कॉमन हो, जैसे फूल पत्तियां, बाग बगीचे, सभा-सेमिनार कक्ष और घूमने की जगह इत्यादि.
यह इसलिए भी जरूरी है कि मैंने पाया है कि देश के दो-चार बहुत बड़े नेताओं को छोड़कर ज्यादातर नेताओं की समाधियां साल भर वीरान रहती हैं. मुख्य रूप से केवल उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि पर ही उनके समर्थक वहां जाते हैं. जबकि उन समाधि परिसरों की देखभाल और रख-रखाव के लिए बड़ी संख्या में स्टाफ और अन्य संसाधनों को वहां झोंक दिया जाता है, जिस पर हर साल लाखों नहीं, करोड़ों रुपये खर्च होते हैं.
इसलिए भारत सरकार से मेरी अपील है कि लोकतंत्र को कृपया राजशाही की तरह न चलाएं. जिस देश में करोड़ों लोग आज भी भूमिहीन हैं और जिस दिल्ली में ही आम लोगों को एक-एक दो-दो कमरों के घर के लिए अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई के लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं, वहां एक-एक नेता के लिए दस, बीस, चालीस, पचास एकड़ जमीन केवल समाधि के नाम पर कर देना देश के साझा संसाधनों का भारी अपव्यय है.
पांच एकड़ ज़मीन की सीलिंग तय हो
नेता महान होते हैं अपने कार्यों और विचारों से, न कि इस बात से कि उनकी समाधि कितनी एकड़ ज़मीन पर बनी हुई है. इसलिए, नेता चाहे कोई भी हो, कितना भी बड़ा क्यों न हो, किसी भी पार्टी का क्यों न हो, उसके लिए समाधि के नाम पर अधिकतम पांच एकड़ ज़मीन की सीलिंग तय की जाए और पहले जो समाधियां बनी हैं, वहां भी इसी हिसाब से ज़मीन का बंटवारा अन्य महापुरुषों की समाधियों के लिए कर दिया जाए.
मुझे एक बात और अजीब लगती है कि क्या राष्ट्रनिर्माण में योगदान केवल नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री ही करते हैं? क्या वैज्ञानिक, शिक्षाविद, नौकरशाह, अधिवक्ता, न्यायाधीश, लेखक, पत्रकार, विचारक, इतिहासकार इत्यादि नहीं करते? हमारी राजनीतिक पार्टियां और सरकारें आखिर उनकी भी समाधियां बनवाने में उतनी ही दिलचस्पी क्यों नहीं दिखातीं, जितनी दिलचस्पी वे अपने समुदाय (नेता) के लोगों की समाधियां बनवाने में दिखाते हैं. यह भी देश के साझा संसाधनों पर केवल एक समुदाय द्वारा अपना आधिपत्य समझने की कुप्रवृत्ति है, जिसे दूर किया जाना चाहिए.
राष्ट्र के निर्माण में अलग-अलग क्षेत्रों के हज़ारों-लाखों लोग दिन-रात पूरी तत्परता से जुटे हुए हैं. उनके योगदानों को भी सराहा जाना चाहिए और उनका भी सम्मान रखा जाना चाहिए. धन्यवाद.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
अभिरंजन कुमारपत्रकार और लेखक
अभिरंजन कुमार जाने माने लेखक,पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं.तीन किताबें, हजारों लेख प्रकाशित. मीडिया में लगभग 27 साल का अनुभव. संप्रति न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं.
First published: December 29, 2024 8:30 AM IST