हमसे लगती होती है, हम इंसान हैं... जस्टिस ओका ने किस फैसले को लेकर कही ये बात

10 hours ago

Last Updated:May 20, 2025, 07:08 IST

Justice Oka Admits Mistake: जस्टिस अभय एस ओका ने माना कि 2016 में बॉम्बे हाईकोर्ट में उन्होंने घरेलू हिंसा अधिनियम की गलत व्याख्या की थी. सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी धारा 482 का सावधानी से उपयोग करने को कहा.

हमसे लगती होती है, हम इंसान हैं... जस्टिस ओका ने किस फैसले को लेकर कही ये बात

जस्टिस ओका ने कहा है कि जज भी इंसान होते हैं. उनसे भी गलती होती है.

हाइलाइट्स

जस्टिस ओका ने 2016 में घरेलू हिंसा अधिनियम की गलत व्याख्या मानी.सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी धारा 482 का सावधानी से उपयोग करने को कहा.जजों के लिए सीखना एक सतत प्रक्रिया है, जस्टिस ओका ने कहा.

Justice Oka Admits Mistake:  सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अभय एस ओका ने एक बड़ी बात कही है. उन्होंने कहा कि जज भी इंसान हैं और फैसले देते समय उनसे गलतियां हो सकती हैं. उन्होंने खुलकर स्वीकार किया कि 2016 में जब वे बॉम्बे हाईकोर्ट के जज थे तब उन्होंने घरेलू हिंसा अधिनियम की व्याख्या में एक गलत फैसला दिया था. जस्टिस ओका ने कहा कि जजों के लिए सीखने का सिलसिला कभी खत्म नहीं होता और उन्हें अपनी गलतियों को सुधारने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.

घरेलू हिंसा अधिनियम और हाईकोर्ट का अधिकार

घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कोई पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट के पास मुआवजा या दूसरी राहत के लिए आवेदन कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हाईकोर्ट को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत ऐसे आवेदनों को रद्द करने का अधिकार है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि हाईकोर्ट को यह अधिकार बहुत सोच-समझकर और सावधानी से इस्तेमाल करना चाहिए. हस्तक्षेप तभी करना चाहिए जब मामला पूरी तरह से गैरकानूनी हो या कानून की प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल हो रहा हो.

जस्टिस ओका की गलती

जस्टिस ओका ने बताया कि 2016 में बॉम्बे हाईकोर्ट में उन्होंने एक फैसले में कहा था कि सीआरपीसी की धारा 482 का इस्तेमाल घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत आवेदन को रद्द करने के लिए नहीं किया जा सकता. लेकिन बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच ने इस नजरिए को गलत ठहराया. जस्टिस ओका ने कहा कि हमें अपनी गलतियों को स्वीकार करना और उन्हें ठीक करना हमारा कर्तव्य है. जजों के लिए भी सीखना एक सतत प्रक्रिया है.

इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए बनाया गया है. अगर हाईकोर्ट बिना सोचे-समझे ऐसे आवेदनों को रद्द करते रहेंगे तो इस कानून का मकसद ही खत्म हो जाएगा. कोर्ट ने हाईकोर्ट से अपील की कि वे ऐसे मामलों में संयम बरतें और हस्तक्षेप से बचें, ताकि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो सके.

गलत फैसलों पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

कई हाईकोर्ट ने पहले यह फैसला दिया था कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत आवेदन को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 का इस्तेमाल नहीं हो सकता, क्योंकि यह एक सिविल मामला है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सोच गलत है. इस कानून में सिविल और आपराधिक दोनों पहलू हैं, इसलिए जरूरत पड़ने पर हाईकोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है.

जस्टिस ओका का यह कदम न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देता है. उन्होंने अपनी गलती को स्वीकार कर एक मिसाल कायम की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को सावधानी बरतनी चाहिए ताकि कानून का उद्देश्य पूरा हो और महिलाओं को न्याय मिले. यह फैसला घरेलू हिंसा के खिलाफ लड़ाई में बड़ा कदम है.

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संतोष कुमार

न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...और पढ़ें

न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...

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