Last Updated:August 09, 2025, 07:39 IST
Supaul News: सुपौल के कोसी क्षेत्र में शिक्षा संघर्ष की एक बानगी बन चुकी है, जहां हर साल बाढ़ बच्चों के भविष्य को बहा ले जाती है. प्राथमिक विद्यालय सुजानपुर इसका जीवंत उदाहरण है जो 1977 से भटक रहा है. बिना स्थ...और पढ़ें

सुपौल. कोसी की गोद में भटकता शिक्षा का सपना -एक विद्यालय, तीन शिक्षिकाएं और हजारों उम्मीदों की पीड़ा. कोसी की गोद में भटकता शिक्षा का सपना… हर साल कटते ख्वाब, हर वर्ष बदहाल हाल में चलता एक स्कूल! कोसी क्षेत्र में शिक्षा अब सिर्फ़ किताबों और कक्षाओं की बात नहीं रही… यह एक संघर्ष है, एक जद्दोजहद है जिसमे हर साल बाढ़ के साथ बच्चों का भविष्य भी बह जाता है. मोजहा के पास स्थित प्राथमिक विद्यालय सुजानपुर इसकी ज्वलंत बानगी है जहां शिक्षा का तंत्र ‘स्थायी’ नहीं, बल्कि ‘भटकता हुआ’ बन गया है. यह विद्यालय 1977 में बना था, लेकिन आज तक ये भटकता ही रहा. बिल्डिंग नहीं मिल सकी तो लिहाजा इस साल भी ये झोपङी में ही नौनिहालों के शिक्षा को सवारने में जुटा है. यहां तीन शिक्षिकाएं -सिंधु देवी, पूनम कुमारी और एक अन्य सहयोगिनी अपनी सेवा नहीं, बल्कि अपने जज्बे से शिक्षा की अलख को बुझने नहीं दे रहीं.
तीन शिक्षिकाओं के हौसले से चलता स्कूल
तीनों शिक्षिकाएं खुले आसमान के नीचे, अस्थायी टेंटों में, बांस और तिरपाल की छांव में-ये शिक्षिकाएं बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ उनके टूटते मनोबल को भी हर रोज संवारती हैं. सिंधु देवी अपनी आंखों में आंसू लिए कहती हैं, “हर साल लगता है कि शायद अब हालात सुधरेंगे, लेकिन कोसी फिर से सब कुछ बहा ले जाती है. बच्चों की कॉपियां, ब्लैकबोर्ड, बेंच… सब कुछ! फिर भी हम पढ़ाते हैं, क्योंकि हमें पता है कि अगर हम हार गए तो ये बच्चे भी हार जाएंगे. पूनम कुमारी का दर्द कुछ अलग नहीं. कहती हैं, “हमारे पास खुद के लिए बैठने की कुर्सी तक नहीं, लेकिन बच्चों के लिए हम हर दिन नई जगह खोजते हैं. किसी का बरामदा, कोई खुला मैदान. स्कूल अब एक भवन नहीं, एक भावना है जो रोज बसती है और रोज उजड़ती है.
कोसी की गोद में भटकता शिक्षा का सपना, प्राथमिक विद्यालय सुजानपुर कभी टेंट में तो कभी अस्थायी झोपड़ी में चलता है.
शिक्षा की अलख, हजारों उम्मीदों की पीड़ा
स्थानीय ग्रामीणों और अभिभावकों की पीड़ा भी कम नहीं. उनका कहना है कि सरकार अगर चाहे तो एक स्थायी, फ्लड-प्रूफ भवन बनाकर इस परेशानी का हल निकाल सकती है. लेकिन अब तक सिर्फ़ आश्वासन ही मिलते हैं, समाधान नहीं. स्थानीय लोग कहते हैं, “हम अपने बच्चों को स्कूल तो भेजते हैं, लेकिन कब कहां पढ़ाई होगी, ये खुद शिक्षक भी तय नहीं कर सकते”. एक अभिभावक का दर्द छलक उठता है.”कभी पेड़ के नीचे, कभी झोपङी की छांव में। क्या ऐसे पढ़ेंगे हमारे बच्चे? दरअसल, इस क्षेत्र में शिक्षा अब सरकारी योजना नहीं, बल्कि जमीन से जुड़ा संघर्ष है.
शिक्षा नहीं, संघर्ष है यहां पढ़ाई
कोसी के तटबंधों के भीतर बसे गांवों में हर साल विद्यालय किसी नई जगह पर ‘बसा’ दिया जाता है, लेकिन इस अस्थायी बसावट में सबसे ज़्यादा नुकसान बच्चों को होता है. न नियमित पढ़ाई, न परीक्षा की तैयारी और न ही कोई भविष्य की दिशा. अब समय है कोसी क्षेत्र को प्राथमिकता देने का प्रशासन और नीति-निर्माताओं को अब इस ‘चलती-फिरती’ शिक्षा व्यवस्था को स्थायित्व देना होगा. कोसी जैसे बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में फ्लड-प्रूफ स्कूल भवन, डिजिटल लर्निंग की सुविधा और मोबाइल शिक्षा वाहनों की योजना बनाई जाए, ताकि आपदा के समय भी शिक्षा की लौ बुझने न पाए. वरना, हर साल की बाढ़ सिर्फ़ मिट्टी नहीं बहाएगी-आने वाली पीढ़ियों का सपना भी बहता जाएगा.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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First Published :
August 09, 2025, 07:39 IST