Last Updated:August 18, 2025, 19:43 IST
Stray Dog News: गाज़ियाबाद में आवारा कुत्ते से टकराने के कारण सब-इंस्पेक्टर ऋचा सचान की मौत हो गई. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आवारा कुत्ते पहले ही चर्चा में हैं. ऐसे में हादसे के बाद मुआवजा और कानूनी प्रावधा...और पढ़ें

गाजियाबाद में रविवार की रात हुई दुर्घटना ने एक बार फिर से आवारा कुत्तों के खतरे को सुर्खियों में ला दिया है. 25 वर्षीय सब-इंस्पेक्टर ऋचा सचान की मौत महज इसलिए हो गई क्योंकि उनकी बाइक एक आवारा कुत्ते से टकरा गई थी. हादसा इतना भीषण था कि पीछे से आ रही कार ने भी उन्हें कुचल दिया. हेलमेट पहनने के बावजूद उन्हें गंभीर सिर की चोटें आईं और अस्पताल पहुंचने से पहले ही उनकी जान चली गई. ऋचा सचान उत्तर प्रदेश पुलिस की युवा अधिकारी थीं. सरकारी सेवा में होने के कारण उनके परिवार को राज्य सरकार की तरफ से मुआवजा और अन्य सुविधाएं मिल जाएंगी. लेकिन सवाल यह है कि अगर यही हादसा किसी आम नागरिक के साथ होता, तो क्या उसके परिवार को भी आर्थिक मदद मिलती?
आम लोगों के लिए क्या है प्रावधान?
कुत्तों के काटने या उनसे हुए हादसे की वजह से आम नागरिक की मौत पर कानूनी तौर पर कोई राष्ट्रीय स्तर का मुआवजा प्रावधान मौजूद नहीं है. हां, अदालतों में याचिका दायर करके पीड़ित पक्ष नगर निगम या कुत्ते के मालिक को जिम्मेदार ठहरा सकता है. कई मामलों में हाईकोर्ट ने नगर निगमों को 2 से 5 लाख रुपये तक का मुआवजा देने का आदेश भी दिया है. लेकिन यह प्रक्रिया लंबी, मुश्किल और मुकदमेबाजी पर निर्भर है. आम गरीब परिवारों के लिए यह न्याय पाना बेहद कठिन हो जाता है. अगर किसी पालतू कुत्ते ने काटा या हादसा कराया हो तो उसका मालिक कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. मगर यह भी तभी संभव है जब पीड़ित परिवार कोर्ट का दरवाजा खटखटाए.
सड़क हादसे और मुआवजा व्यवस्था
इसके विपरीत, सड़क हादसों में मोटर व्हीकल एक्ट के तहत थर्ड पार्टी इंश्योरेंस से मुआवजा सुनिश्चित है. यदि कोई वाहन किसी पैदल यात्री, बाइक सवार या अन्य वाहन चालक की जान लेता है तो बीमा कंपनी पीड़ित परिवार को मुआवजा देती है. यही वजह है कि सड़क हादसों में मुआवजा दिलाने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर एक स्पष्ट कानूनी ढांचा मौजूद है लेकिन कुत्ते के काटने पर कोई डायरेक्ट कानूनी ढांचा नहीं है.
कुत्तों के मामले में कानूनी खाई
आवारा कुत्तों के बढ़ते आतंक के बावजूद देश में इस विषय पर एकरूपता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट और कई हाईकोर्ट ने बार-बार नगर निगमों को कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण और टीकाकरण पर कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं. मगर जमीन पर हालात बदलते नहीं दिखते. पीड़ित परिवारों को केवल सांत्वना और कभी-कभी अदालत के आदेश से राहत मिलती है. विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे वाहनों पर थर्ड पार्टी इंश्योरेंस अनिवार्य है, वैसे ही पालतू जानवर पालने वालों पर भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए. दूसरी ओर नगर निगमों और स्थानीय निकायों के लिए भी एक कंपनसेशन फंड बनाया जाना चाहिए, जिससे आवारा कुत्तों के कारण मौत या गंभीर चोट के मामलों में त्वरित मुआवजा दिया जा सके.
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...
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First Published :
August 18, 2025, 19:43 IST