Last Updated:August 06, 2025, 15:30 IST
Bihar Chunav 2025: भाकपा माले विधायक महबूब आलम के बयान, जिसमें उन्होंने पप्पू यादव को महागठबंधन से बाहर बताया है. उनके इस बयान ने जहां बिहार में सियासी हलचल मचा दी है वहीं पप्पू यादव को भी हिला दिया है. पप्पू य...और पढ़ें

हाइलाइट्स
महबूब आलम के बयान से पप्पू यादव नाराज, कहा-राजनीति छोड़ने का मन कर रहा. तेजस्वी-पप्पू तनाव आरजेडी नेतृत्व को चुनौती, महागठबंधन में खटास की आशंका बढ़ी. कांग्रेस की रणनीति चाल-पप्पू यादव को इस्तेमाल कर राजद पर दबाव बनाने की कोशिश.पटना. भाकपा माले विधायक महबूब आलम के बयान ने बिहार की सियासत में नया तूफान खड़ा कर दिया है. उन्होंने स्पष्ट कहा कि पप्पू यादव महागठबंधन का हिस्सा नहीं हैं. इसके जवाब में पप्पू यादव ने भावुक बयान देते हुए कहा कि इतनी उपेक्षा के कारण उनका राजनीति छोड़ने का मन कर रहा है. बता दें कि पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने हाल ही में अपनी जन अधिकार पार्टी को कांग्रेस में विलय किया है. लेकिन, अब धर्मसंकट में दिखते हैं.ऐसे में एक और सवाल बिहार की राजनीति में खड़ा हो रहा है कि क्या पप्पू यादव कांग्रेस के गले पड़ गए हैं जिससे कांग्रेस भी पीछा छुड़ाना चाहती है? अगर ऐसा नहीं है तो कांग्रेस खुलकर पप्पू यादव के लिए आगे क्यों नहीं आती है. यह खास तब और हो जाता है जब पप्पू यादव सीधे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को अपना नेता बताते हैं, खुद को कांग्रेसी भी कहते हैं और उपेक्षा की बात भी करते हैं. आइये पहले जानते हैं कि महबूब आलम ने वास्तव क्या कहा है जिससे पप्पू यादव बेहद आहत दिखते हैं.
अपने बेबाक बोल के लिए जाने जाने वाले महागठबंधन के कद्दावर नेता माले विधायक ने पप्पू यादव को लेकर बड़ा बयान देते हुए कहा है कि पप्पू यादव को पहले यह स्पष्ट करना चाहिए वह कहां पर हैं? इतना ही नहीं महबूब आलम ने इससे आगे बढ़कर यहां तक कह दिया कि पप्पू यादव महागठबंधन में है ही नहीं, अब कांग्रेस के प्रति उनका प्रेम व्यक्तिगत है. ऐसे में कांग्रेस और पप्पू यादव को खुद स्पष्ट कर देना चाहिए कि उनकी भूमिका क्या है? दरअसल, माना जा रहा है कि महबूब आलम ने यह बयान इसलिए दिया है क्योंकि पप्पू यादव और तेजस्वी यादव के रिश्ता ठीक नहीं है और इसका असर महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर भी हो रहा है. कांग्रेस लगातार 70 सीटों की मांग को लेकर अड़ी हुई है, वहीं पप्पू यादव कहते रहे हैं कि कांग्रेस को कम से कम 100 सीटों पर लड़ना चाहिये. ऐसे में महबूब आलम के इस बयान ने महागठबंधन की राजनीति में हलचल मचा दी है.
तेजस्वी-पप्पू तनातनी और पुराना इतिहास
हालांकि, राजनीति के जानकार यह भी कहते हैं कि इसके पीछे तेजस्वी यादव और पप्पू यादव के बीच रिश्तों की तल्खी भी है जिसे महबूब आलम अपनी जुबान से सामने ला रहे हैं. दरअसल, बीते लोकसभा चुनाव में उन्होंने पप्पू यादव को पूर्णिया लोकसभा सीट से हराने के लिए तेजस्वी यादव ने ए़ड़ी चोटी लगा दिया था, लेकिन अपनी लोकप्रियता और जनाधार के बूते पप्पू यादव ने जीत प्राप्त कर तेजस्वी यादव को सियासी तौर पर आईना दिखा दिया था. दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव पूर्णिया से कांग्रेस टिकट चाहते थे, लेकिन राजद ने वहां बीमा भारती को उतारा। तेजस्वी ने पप्पू को हराने के लिए खुलकर प्रचार किया जिसके बावजूद पप्पू ने निर्दलीय जीत हासिल की. पप्पू यादव बार-बार खुद को यादव समुदाय के नेता के तौर पर पेश करते हैं, जो तेजस्वी के लिए चुनौती है. सियासी जानकारों का मानना है कि तेजस्वी पप्पू को राजद के वोट बैंक, खासकर यादव और मुस्लिम मतदाताओं के लिए खतरा मानते हैं.
कांग्रेस की रणनीति: इस्तेमाल या बोझ?
वहीं, बिहार की राजनीति में पप्पू यादव भी तेजस्वी यादव के नेतृत्व को कई बार चुनौती देते हुए दिखते हैं. खुद को यादवों के नेता के तौर पर प्रस्तुत करते रहे हैं जिसको आरजेडी किसी भी परिस्थिति में स्वीकार करने को तैयार नहीं है. वहीं, कांग्रेस ने उन्हें अपने पाले में लाक अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की, लेकिन महागठबंधन में राजद की प्रमुखता के कारण कांग्रेस को सीट-बंटवारे में कमजोर भूमिका मिल रही है. कुछ जानकारों का मानना है कि कांग्रेस पप्पू की लोकप्रियता का फायदा उठाकर राजद से ज्यादा सीटें चाहती है. दूसरी ओर राजनीति के जानकार यह भी कहते हैं कि- कांग्रेस पप्पू यादव को अपने साथ होने का आभास कराते हुए आरजेडी पर दबाव की राजनीति कर रही है. ऐसे में पप्पू यादव को कांग्रेस इस्तेमाल कर रही है. कांग्रेस, पप्पू यादव का इस्तेमाल राजद पर दबाव बनाने के लिए कर रही है. यह इसलिए भी कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव ने अपनी सियासी ताकत दिखा दी थी.
पप्पू की बगावत और कांग्रेस की दुविधा
पप्पू यादव बार-बार कांग्रेस को बिहार में अकेले चुनाव लड़ने के लिए उकसाते दिखे हैं. उनकी यह रणनीति राजद के नेतृत्व को चुनौती देती है, लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस नेतृत्व अभी महागठबंधन तोड़ने के मूड में नहीं दिखते. 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की रणनीति साफ है-वह राजद के साथ गठबंधन बनाए रखना चाहती है, लेकिन बेहतर सीटों और सम्मानजनक भूमिका की मांग कर रही है. पप्पू यादव की बयानबाजी और तेजस्वी के साथ टेंशन इस रणनीति को उलझाऊ बना रहे हैं.
एनडीए का तंज और सियासी समीकरण
एनडीए इस स्थिति का फायदा उठाते हुए पप्पू यादव पर तंज कस रही है, उन्हें “डगरा पर का बैंगन” बता रही है. बीजेपी का कहना है कि पप्पू न तो कांग्रेस के साथ पूरी तरह फिट बैठते हैं और न ही महागठबंधन में स्वीकार्य हैं. दूसरी ओर पप्पू यादव की पूर्णिया और कोसी-सीमांचल में मजबूत पकड़ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. खासकर युवाओं और पिछड़े वर्गों में उनकी लोकप्रियता सियासी तौर पर प्रासंगिक बनाए रखती है. हालांकि, फिर सवाल यही है कि क्या वह तेजस्वी यादव को चुनौती देते हुए महागटबंधन में रह पाएंगे.पप्पू यादव कांग्रेस को अलग लड़ने के लिए भी कई बार प्रेरित करते दिखते हैं, शायद इसके लिए राहुल गांधी अभी तैयार नहीं दिखते हैं.
क्या है पप्पू यादव का भविष्य?
पप्पू यादव के सामने सियासी धर्मसंकट है, जो उन्होंने अपने ताजा बयान में भी जाहिर किया है. अगर वह महागठबंधन में रहते हैं तो तेजस्वी यादव के नेतृत्व को स्वीकार करना होगा जो उनके लिए मुश्किल है. दूसरी ओर कांग्रेस के लिए वह एक ताकत भी हैं और चुनौती भी. अगर कांग्रेस उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज करती है तो वह निर्दलीय या नई पार्टी के साथ बगावत कर सकते हैं जैसा कि उन्होंने 2015 में जन अधिकार पार्टी बनाकर किया था. ऐसे में 2025 के विधानसभा चुनाव में पप्पू यादव की भूमिका महागठबंधन की एकता और बिहार की सियासत को प्रभावित कर सकती है. ऐसे में सवाल यही है कि पप्पू यादव की राजनीति वास्तव में किस स्थिति में है. क्या वाकई में वह कांग्रेस के लिए बोझ हैं या फिर वह इस्तेमाल हो रहे हैं, या फिर यह सब सियासत के पेच भर हैं और आने वाले समय में फिर से सब एक हैं!
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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Patna,Patna,Bihar
First Published :
August 06, 2025, 15:30 IST