Last Updated:September 26, 2025, 15:24 IST
Narrative Against India : भारत के खिलाफ नैरेटिव सेट करने में सबसे बड़ी भूमिका भारतीय स्कॉलर ही निभा रहे हैं. अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे भारतीय शिक्षाविद अपनी नौकरियां खोने के डर से अक्सर देश विरोधी बातों को हवा देते हैं.

नई दिल्ली. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को भला कौन नहीं जानता. बड़ी-बड़ी डिग्रियां और दुनियाभर में नाम कमाने के बावजूद उनकी मंशा भारत को आगे बढ़ाने के बजाय अमेरिकी एजेंडे को आगे बढ़ाना रहता है. राजन ने करीब दो साल पहले राहुल गांधी से कहा था कि भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर मुश्किल से 5 फीसदी के आसपास रहेगी. लेकिन, हुआ इसका उल्टा और तमाम परेशानियों व ग्लोबल चुनौतियों के बावजूद अप्रैल-जून तिमाही में भारत की विकास दर 7.8 फीसदी रही. अब राजन चुप्पी साधे हुए हैं.
अमेरिका में रहने वाले भारतीय शिक्षाविदों जैसे रघुराम राजन, अरविंद सुब्रमणियन और कौशिक बसु जैसे नाम भारत की ग्रोथ और सोशल डेवलपमेंट की बातों को सिरे से नकार देते हैं. वह भी तब जबकि इन तीनों ही नामों ने भारतीय ब्यूरोक्रेसी में ऊंचे पदों को संभाला है. लेकिन, आज वे हमेशा भारतीय अर्थव्यवस्था के खिलाफ ही बोलते हैं और अमेरिका के तमाम दावों में हां से हां मिलाते हैं. आखिर ऐसा क्यों है और इसमें इनका क्या फायदा है. आइये इसे सिलसिलेवार ढंग से समझते हैं.
टैरिफ को सही ठहरा रहे राजन
पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत पर लगाए 50 फीसदी टैरिफ को भी सही ठहरा रहे हैं. इसके लिए उन्होंने सारे तथ्य अमेरिका के हित में पेश किए. एक टीवी चैनल पर उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि दुनिया के दूसरे देश अमेरिका का फायदा उठा रहे हैं. अमेरिका का चालू खाते का घाटा और व्यापार घाटा इस बात का सबूत है. अमेरिका को अधिकार है कि वह अपने हित में टैरिफ लगाए और इसका फायदा टैक्स छूट के रूप में अपने नागरिकों को दे.
राजन ने बताया ताकत का खेल
रघुराम राजन का कहना है कि टैरिफ अमेरिका के लिए बिना सेना का इस्तेमाल किए अपने हित में काम करने का एक तरीका है. उन्होंने भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने का भी बचाव किया और कहा कि अब हम ताकत के खेल में शामिल हो चुके हैं, जहां निष्पक्षता बहुत पीछे छूट चुकी है. ट्रंप ने पिछले दिनों दावा किया था कि यह अमेरिका का स्वर्ण युग है, जबकि साथ फैक्ट उनके इस दावे का खंडन करते हैं.
नौकरी खोने के डर से हैं चुप
चाहे रघुराम राजन हों या कौशिक बसु इन सभी बड़े नामों को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अपनी नौकरियां खोने का डर है. तभी तो हर गलत-शलत दावे पर भी ये लोग चुप्पी साधे रहते हैं. पिछले दिनों ट्रंप ने कहा कि गर्भवती महिलाओं को पैरासिटामोल नहीं खाना चाहिए, इससे बच्चे में ऑटिज्म का खतरा रहता है. दुनियाभर के वैज्ञानिक और चिकित्सा अधिकारी इसे खारिज करते हैं, लेकिन अमेरिका में जो भारतीय आवाजें हैं, वे चुप्पी साधे बैठी हैं. इतना ही नहीं ट्रंप ने एबीसी के आलोचक जिमी किमेल को ऑफ एयर करा दिया. कानूनी प्रवासियों की अवैध हिरासत, मानवीय सहायता संगठनों की फंडिंग रोकने सहित अन्य कई फैसलों का दुनियाभर में विरोध हुआ लेकिन भारत के कथित स्कॉलरों ने इसके खिलाफ कुछ भी नहीं बोला.
धीरे-धीरे फैला रहे विद्रोह की आग
बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल में हाल में जो आंदोलन हुए, उसके बाद इन स्कॉलर की ओर से कई बार चेतावनी दी जा चुकी है कि भारत में भी ऐसा हो सकता है. इसका मतलब है कि सरकार और देश को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है. इसी सप्ताह मणिपुर और लद्दाख में स्वतंत्र राज्य की मांग को लेकर विद्रोह और आगजनी हुई. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में क्या कुछ हो सकता है.
पश्चिमी मीडिया की निगेटिव रिपोर्टिंग
पश्चिमी मीडिया तो शुरू से ही भारत विरोधी बातों को हवा देता रहा है. आज भी न्यूज एजेंसी रॉयटर्स और अमेरिका की ब्लूमबर्ग लगातार ऐसी रिपोर्टिंग करती रही हैं, जो भारत के सामाजिक विभाजनों पर केंद्रित होती है न कि इसके स्टार्टअप इकोसिस्टम और बढ़ती आर्थिक गतिविधियों पर. ब्लूमबर्ग तो अमेरिका में रहने वाले भारतीय शिक्षाविदों के हवाले से निगेटिव नरेटिव सेट करने में लगा रहता है.
प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्वेस्टमेंट टिप्स, टैक्स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि...और पढ़ें
प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्वेस्टमेंट टिप्स, टैक्स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि...
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
September 26, 2025, 15:24 IST