Bihar Chunav: कुशवाहा के बाद अब यह कौन सी जाति जिस लालू-तेजस्वी ने डाल दी नजर!

14 hours ago

पटना. बिहार विधानसभा चुनाव इसी वर्ष अक्टूबर और नवंबर के बीच संभावित हैं. इसको लेकर प्रदेश में चुनावी सरगर्मी बढ़ गई है. भारतीय जनता पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वहां दलों के साथ ही अन्य कई पार्टियां अपनी तैयारी में तैयारी में जुट गई हैं और रणनीति भी तैयार कर रही हैं. इस क्रम में एनडीए में जहां सबसे अधिक सक्रिय भाजपा और जदयू दिख रही है, वहीं महागठबंधन में कांग्रेस और आरजेडी अपने-अपने दांव को लेकर संगठन को सशक्त कर रही है और रणनीति को लेकर भी सतर्क है. विशेष तौर पर राजद पूरी तरह चुनावी मूड में आती दिख रही है और अपने अपनी रणनीति के अनुसार आगे बढ़ चली है. एक तरफ तेजस्वी यादव जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमलावर होकर उन्हें ‘टायर्ड और रिटायर्ड’यानी थका हारा बताते हुए खुद को युवा नेता के तौर पर स्थापित करने में लगे हैं. वहीं, लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा उपचुनाव में मन मुताबिक नतीजों के नहीं आने के बाद लालू प्रसाद यादव जिले-जिले जाकर राजद के संगठन में नया उत्साह पैदा करने की कवायद कर रहे हैं. इसी क्रम में जाति-धर्म के आधार पर अपने वोटरों को एकजुट होने का संदेश देने की कोशिश भी शुरू हो गई है. बीते 24 मार्च को जहां लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी ने दावते इफ्तार दी और तमाम मुस्लिम संगठनों को अपने यहां आमंत्रित कर मुस्लिम समुदाय को एकजुटता का मैसेज देने की कोशिश की, वहीं अब आगामी 8 अप्रैल को जाति आधारित रैली की भी वह शुरुआत करने जा रही है. इस क्रम में पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल में एक कार्यक्रम मुसहर भुईयां महारैली सा संवाद कार्यक्रम के तौर पर किया जाना है जो सियासी नजरिये से अहम कहा जा रहा है.

इसकी तैयारी को लेकर राष्ट्रीय जनता दल ने अपने कार्यालय में मंगलवार को मुसहर भुईयां समाज की बैठक करवाई जिसकी अध्यक्षता पूर्व विधायक उदय मांझी ने की. इसमें यह तय किया गया कि भुईयां मुसहर महारैली का उद्घाटन राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव करेंगे और मुख्य अतिथि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव रहेंगे. इसमें यह दावा किया गया है कि हजारों की संख्या में मुसहर समाज के लोग इस रैली में शामिल होंगे और एकता का परिचय देते हुए राजद के साथ जुड़ने का आह्वान करेंगे. इसके लिए प्रचार रथ, होर्डिंग, पोस्टर, बैनर के साथ विभिन्न स्थानों पर गेट बनाने का भी निर्णय लिया गया है. दरअसल, छोटी-छोटी जाति समूहों को अपने पाले में करने की कवायद की यह राजद की रणनीति है.

कुशवाहा दांव ने लालू-तेजस्वी का हौसला बढ़ा दिया!
बीते लोकसभा चुनाव में रजद ने कुशवाहा समाज में सेंध लगाकर अपने लिए इसकी उम्मीद जगाई है कि जो नीतीश कुमार के कोर वोट बैंक को भी राजद के पाले में लाया जा सकता है. राजद को यह विश्वास है कि अगर कुशवाहा जैसी जाति में वह फूट डालने में कामायाब हो सकता है तो जीतन राम मांझी की दावेदारी वाली मुसहर भुईयां समाज में भी बिखराव लाने में सफल हो सकता है. राजनीति के जानकार बताते हैं कि राष्ट्रीय जनता दल को यह यकीन है कि 14% से अधिक यादव जाति के और 18% करीब मुस्लिम वोटर इंटैक्ट रहे तो उनके लिए 32% का वोट बैंक तो पक्का है. अब इसमें छोटी-छोटी जातियों का समूह जुड़ता चला जाए तो यह वोट प्रतिशत भी बढ़ता चला जाएगा. इस क्रम में 4.27% वाली कुशवाहा जाति पर जहां राजद की नजर है, वहीं मुसहर जाति पर भी वह डोरे डालने में लगी है.

खुद को फिट एंड हिट करने की तैयारी कर रही आरजेडी
दरअसल, आरजेडी अपने आप को फिट एंड हिट करने की तैयारी कर रही है. मुसहर भुईंया समाज की आबादी 3.9% है और इस पर मोटे तौर पर जीतन राम मांझी की पार्टी का हक समझा जाता है. हाल में ही जब जीतन राम मांझी ने लालू प्रसाद यादव के यादव नहीं, गरेड़िया होने की बात कही थी तो इस पर राजद की ओर से तीखी प्रतिक्रिया हुई थी. जीतन राम मांझी को लेकर लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि ‘वह मुसहर हैं क्या?’ इसके बाद जीतन राम मांझी ने भी सोशल मीडिया में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि लालू जी हम मुसहर भुईयां हैं, हमारे पिता मुसहर भुईयां थे, हमारे दादा मुसहर भुईयां थे, हमारे परदादा मुसहर भुईयां थे, हमारा तो पूरा खानदान ही मुसहर भुईयां है. हम तो गर्व से कहते हैं कि हम मुसहर भुईयां हैं.

तेजस्वी का ‘तड़का’… जीतन राम मांझी और लालू यादव का ट्विटर वार
दरअसल, यह विवाद तब बढ़ा था जब जीतन राम मांझी को और लालू यादव के बीच जाति विवाद को लेकर सोशल मीडिया में बहसबाजी हुई थी.इसके पीछे की कहानी तेजस्वी यादव से जुड़ती है जब नवादा में दलितों की बस्ती जलाए जाने के लिए जीतन राम मांझी ने यादवों को जिम्मेदार ठहराया था. इस पर तेजस्वी यादव ने प्रतिक्रिया देते हुए जीतन राम मांझी को ‘शर्मा’ (ब्राह्मण) कहा था. तेजस्वी यादव ने अपने वक्तव्य में कहा था- उनका नाम जीतन राम मांझी जी है, लेकिन लोग उन्हें प्यार से जीतन राम शर्मा बुलाते हैं. इस पर जीतन राम मांझी ने कहा था कि हम गर्व से कहते हैं कि हम मुसहर भुईयां हैं, लालू जी में हिम्मत है तो वह कह कर दिखाएं कि हम गरेड़ी हैं. ये बातें तो व्यक्ति हुई थीं, लेकिन इसकी जड़ में चुनावी राजनीति और वोटों का समीकरण ही मुख्य है.

जातियों का गणित देखिये और सियासी समीकरण समझिये
बता दें कि बिहार सरकार की जातिगत सामाजिक आर्थिक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में मुसहरों की आबादी 40.35 लाख है, जो बिहार की कुल आबादी का 3.09 प्रतिशत है. संख्या के हिसाब से देखें, तो ऊंची जाति के ब्राह्मण, राजपूत और शेख (मुस्लिम), पिछड़ा वर्ग के यादव और कुशवाहा, एवं अनुसूचित जाति दुसाध (धारी, धरही भी शामिल) और चमार (इसमें मोची, रविदास और चर्मकार शामिल) के बाद मुसहरों की आबादी सबसे ज्यादा है. बता दें कि बिहार में अनुसूचित जाति की श्रेणी में कुल 22 जातियों को शामिल किया गया है और इनकी एकमुश्त आबादी 2.56 करोड़ है, जो प्रदेश की कुल आबादी का 19.65 प्रतिशत है. 22 अनुसूचित जातियों में आबादी के लिहाज से रविदास और पासवान के बाद मुसहर तीसरे पायदान पर आते हैं. अनुसूचित जातियों में मुसहर तीसरी बड़ी आबादी है.

कांग्रेस के एक्शन से मजबूत या फिर मजबूर होगी आरजेडी!
दूसरी ओर एक और राजनीति चल रही है जो कांग्रेस की है. हाल में ही कांग्रेस आरजेडी के साये से इतर अपने संगठन को मजबूत करने और अपने समीकरण की जड़ों को मजबूत करने में लग गई है. जहां दलितों, सवर्णों और मुसलमानों को साधने की राजनीति की शुरुआत की है, यह राजद के लिए भी चुनौती भी हो सकती है और सहूलियत भी. कन्हैया कुमार सवर्ण चेहरा बनाकर जहां कांग्रेस ने बिहार यात्रा पर भेज दिया है. वह वामपंथ की राजनीति से जुड़े रहे हैं तो दलित और पिछड़े बिरादरी में भी उनकी स्वीकार्यता हो सकती है. मुस्लिमों में वह पहले से लोकप्रिय हैं. वहीं, कांग्रेस ने विधायक राजेश राम को दलित अध्यक्ष बनाकर करीब 5 प्रतिशत रविदास बिरादरी पर फोकस किया है तो दशरथ मांझी के बेटे को जहां अपनी पार्टी में ले लिया है. वहीं,दलित नेता जगलाल चौधरी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देने खुद राहुल गांधी पहुंचे थे और उनके बेटे को सम्मानित भी किया है.

आरजेडी का यह दांव काम कर गया तो आसान होगी राह
राजनीति के जानकार कहते हैं, अगर कांग्रेस और राजद के गठजोड़ में ये सारे वोट बैंक जुड़ते हैं तो महागठबंधन की सत्ता की राह आसान होती लगती है. लेकिन अगर कांग्रेस अपने लिये कुछ अलग करती है और राजद के साये से बाहर निकलती है तो राजद अपनी चुनावी रणनीति के तहत छोटी-छोटी जातीय समूहों को साधने और उन्हें अपने पाले में करने की कवायद में लग गई है. कांग्रेस आई तो वाह-वाह और अगर अलग राह हुई तो राजद भी अपनी पिच पर मजबूत खड़ी दिखे. इतना ही नहीं अगर एनडीए के वोटबैंक में इस रणनीति से सेंधमारी कर पाए तो सत्ता की राह और आसान हो जाएगी.

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