Birthday Special: विरोध कर कार पर डांस किया, पूरे देश में चर्चित हुई थीं ममता!

1 day ago

ममता बनर्जी केवल पश्चिम बंगाल का ही नहीं बल्कि देश की राजनीति का भी प्रमुख चेहरा रही हैं. वे काफी जिद्दी और जुझारू नेता के तौर पर तो जानी जाती रहीं है. उनके राजनैतिक जीवन के इतिहास में उनके तेवर हमेशा आक्रामक दिखाई दिए. चाहे 15 साल की उम्र में राजनैतिक जीवन की शुरुआत हो, या जय प्रकाश नारायाण की कार के ऊपर चढ़ जाना हो, या फिर वामपंथी सरकार के खिलाफ जनआंदोलन चलाने की बात, ऐसे बहुत से किस्से हैं जहां ममता दीदी की तेवर आक्रामक और हट कर रहे. 5 जनवरी को उनका जन्मदिन (Mamta Banerjee Birthday) है.

पिता थे स्वतंत्रता सेनानी
ममता बनर्जी का जन्म 5 जनवरी 1955 को पश्चिम बंगाल (West Bengal) की राजधानी कोलकाता के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी एक स्वतंत्रता सेनानी थे. जब ममता 17 साल की थीं, तब उनके पिता का इलाज ना होने के कारण देहांत हो गया था.

बहुत शिक्षित हैं हमारी ममता दीदी
ममता 15 साल की उम्र में हायर सेकेंड्री की परीक्षा पास की और उसी साल उन्होंने राजनीति में भी प्रवेश किया था. उन्होंने जोगमाया देवी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और फिर कलकत्ता यूनिवर्सिटी से इस्लामिक इतिहास में एमए की डिग्री ली. इसके बाद उन्होंने श्री शिक्षायंतन कॉलेज से एजुकेशन और फिर जोगेश चंद्रा चौधरी लॉ कॉलेज से कानून की भी डिग्री हासिल की.

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युवा नेता के तौर पर ही ममता बनर्जी ने आक्रमक तेवर ही अपनाए थे. (फाइल फोटो)

विरोध करने का अंदाज बना पहचान
युवा ममता का आक्रामक अंदाज में विरोध करना जैसे उनकी पहचान बनता गया और इसी तेवर के अंदाज के दम पर युवती होने के बावजूद बंगाल का कांग्रेस पार्टी में उन्होंने एक के बाद एक मुकाम हासिल करना शुरू कर दिए. दिलचस्प बात ये है कि उनके अंदाज पार्टी के शीर्ष पर इंदिरा गांधी से राजीव गांधी को पसंद आए तो दूसरी तरफ उनका जनआधार भी बनता गया.

जेपी नारायण का विरोध
1975 में तो वे तब देश भर की सुर्खियों में छा गईं जब उन्होंने राष्ट्रीय नेता जेपी नारायण का विरोध करते हुए उनकी कार के बोनट पर चढ़ कर डांस किया. उस समय आपातकाल के कारण देश में इंदिरागांधी का विरोध चल रहा था, जिसमें जेपी आंदोलनकारियों के लिए प्रेरणा बने थे. लेकिन ममता ने खुल कर इंदिरा का साथ दिया था. इसके बाद वे पहले महिला कांग्रेस की आम सचिव के पद पर चार साल तक रही.

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ममता ने 1975 में इंदिरा गांधी का समर्थन करते हुए जेपी नारायण का विरोध किया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

सबसे युवा सांसद
इसके बाद वे एक बार फिर तब सुर्खियों में आईं जब उन्होंने 1984 को वामपंथी दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को हरा कर देश की सबसे युवा सासंद बनने का गौरव हासिल किया. उनकी इस जीत ने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी. लेकिन संसद में पहुंचने के बाद भी ममता दीदी के तेवरों में कमी नहीं आई. बंगाल में वामपंथियों से उनका विरोध संसद मे साफ दिखाई देने लगा.

खुद की अलग राह का चुनाव
1989 में  हार का सामना करने के बाद वे 1991 से लेकर लगातार 2009 तक सांसद बनती रहीं और संसद में अपनी मौजूदगी का अहसास दिलाती रहीं. वहीं बंगाल की वामपंथी सरकार के तीखे विरोधों पर भी वे लगातार सुर्खियों में रहीं. इस बीच 1997 में उन्होंने खुद को कांग्रेस से अलग किया और खुद की ही तृणमूल कांग्रेस पार्टी खड़ी कर डाली.

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2000 से 2009 तक का संघर्ष
अपनी पार्टी बना कर भी ममता दीदी के तेवर कम नहीं हुए. कांग्रेस ने कई मौकों पर बीजेपी के विरोध के नाम पर वामपंथियों का साथ लिया. इससे वे कांग्रेस से खफा रहीं , लेकिन उन्होंने खुद की पार्टी बना कर अपने तेवर कम नहीं किए. साल 2000 से जरूर उनकीपार्टी ने कुछ अच्छा वक्त नहीं देखा, संसद और राज्य की विधानसंभा में उनके सदस्य लगातार कम होते रहे, लेकिन वे जुझारू नेता की तरह अपने अंदाज में राजनीति करती रहीं.

2009 में उनकी पार्टी ने आम चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की लेकिन 2011 में वे पश्चिम बंगाल में वाम सरकार को गिरा कर खुद मुख्यमंत्री बनने में सफल रहीं और तब से अब तक हर बार जीत कर मुख्यमंत्री पद पर कायम हैं. उन्होंने हर मोर्चे पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का विरोध किया और भारतीय जनता पार्टी के तामाम कोशिशों के बाद भी बंगाल में उन्हें जीतने से रोका है. लेकिन ममता दीदी को उनके उग्र तेवरों के लिए ही जाना जाएगा.

Tags: Indian politics, Mamta Banarjee, West bengal

FIRST PUBLISHED :

January 5, 2025, 08:00 IST

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