Last Updated:July 05, 2025, 11:19 IST
दलाई लामा के उत्तराधिकार मामले में भारत पूरी तरह उनके साथ है. भारत चीन के दखलअंदाजी वाले रवैये के खिलाफ है. क्या इसका असर भारत-चीन के रिश्तों पर पड़ेगा.

भारत ने दलाई लामा के उत्तराधिकार पर चीन के दावे को खारिज कर दिया है.
हाइलाइट्स
भारत ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर चीन का दावा खारिज कियाभारत दलाई लामा और तिब्बती बौद्ध परंपराओं के साथ खड़ा हुआ हैभारत के इस रुख से चीन के साथ संबंधों में नई तल्खी की आशंकाDalai Lama Succession: भारत और चीन के रिश्ते बीते कुछ दशकों से जटिल रहे हैं. दोनों देशों के बीच सीमाई विवाद, रणनीतिक प्रतिस्पर्धा और भू-राजनीतिक हितों के टकराव के बीच तिब्बत और दलाई लामा हमेशा एक संवेदनशील मुद्दा बने रहे. अब दलाई लामा के उत्तराधिकार को लेकर चीन जिस तरह दखल दे रहा है, उससे भारत-चीन संबंधों में नई तल्खी आने की आशंका है. दलाई लामा के जीवन के 90 साल पूरे होने के साथ भारत-चीन के नाजुक संबंधों के बीच उत्तराधिकार का मुद्दा अहम हो गया है.
दलाई लामा के पुनर्जन्म को लेकर विवाद द्विपक्षीय तनाव में एक और परत जोड़ता है. ये 2020 के सीमा संघर्षों और चीन की पाकिस्तान के प्रति हालिया कूटनीतिक पहुंच के बाद से जारी है. उत्तराधिकार का सवाल बीजिंग के लिए लंबे समय से एक संवेदनशील विषय रहा है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म पर नियंत्रण स्थापित करना चाहता है. 1959 में तिब्बत से भागे दलाई लामा को शरण देने के भारत के फैसले के लिए वह नाराज है. उसने तिब्बती धार्मिक नेता को ‘विभाजनकारी’ करार दिया है. दलाई लामा अपनी संत जैसी छवि और शांति के संदेश के साथ और हॉलीवुड की मशहूर हस्तियों और वैश्विक सांस्कृतिक अभिजात वर्ग के सदस्यों सहित उनके अनुयायियों के कारण चीन के लिए कांटा बन गए हैं. जिससे तिब्बती बौद्धों के धार्मिक नेतृत्व की संस्था को कम्युनिस्ट तानाशाही के सहायक के रूप में कम करने की उसकी इच्छा को बढ़ावा मिला है.
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भारत ने किया चीन का दावा खारिज
भारत के लिए ये मसला सिर्फ तिब्बत का नहीं बल्कि अपनी सुरक्षा, रणनीतिक हित और धार्मिक-राजनीतिक संतुलन का भी है. हालांकि भारत ने गुरुवार को चीन के इस दावे को दृढ़ता से खारिज कर दिया कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनने में उसका निर्णायक अधिकार है. भारत ने जोर देकर कहा कि इस मुद्दे पर केवल तिब्बती आध्यात्मिक नेता और स्थापित बौद्ध परंपराओं की इच्छा के अनुसार ही निर्णय लिया जा सकता है. आइए समझते हैं कि इस विवाद की जड़ क्या है, चीन क्यों इतना आक्रामक हो रहा है. इससे भारत-चीन के रिश्तों पर क्या असर पड़ सकता है.
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दलाई लामा की पुनर्जन्म प्रणाली
तिब्बती बौद्ध परंपरा के मुताबिक दलाई लामा का पुनर्जन्म होता है. मौजूदा 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो हैं, जो 1935 में तिब्बत में जन्मे थे. उनके निधन के बाद उनके पुनर्जन्म की खोज धार्मिक तरीके से होती है. लेकिन चीन चाहता है कि अगला दलाई लामा बीजिंग की स्वीकृति से तिब्बत में चुना जाए. इसके लिए उसने 2007 में एक कानून (State Religious Affairs Bureau Order No. 5) पास किया. जिसके मुताबिक किसी भी पुनर्जन्म को सरकार की मंजूरी जरूरी होगी. दलाई लामा पहले ही साफ कर चुके हैं कि उनका उत्तराधिकारी तिब्बत में नहीं, भारत या किसी स्वतंत्र देश में चुना जाएगा. उन्होंने यहां तक कहा है कि वे अपने पुनर्जन्म को खत्म भी कर सकते हैं. यानी आने वाले समय में दो अलग-अलग दलाई लामा हो सकते हैं- एक बीजिंग समर्थित और एक तिब्बती निर्वासित सरकार व वैश्विक बौद्ध समुदाय समर्थित. यही बात चीन को असहज कर रही है.
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क्या परेशान कर रहा चीन को
चीन तिब्बत को अपनी संप्रभुता और अखंडता का हिस्सा मानता है. तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन और निर्वासित दलाई लामा की लोकप्रियता को वह अपने लिए राजनीतिक खतरा मानता है. चीन के लिए दलाई लामा का उत्तराधिकारी तय करना इसलिए जरूरी है. ताकि वह तिब्बत में राजनीतिक स्थिरता बनाए रख सके. तिब्बती संस्कृति और धर्म पर नियंत्रण रख सके. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्वासित तिब्बतियों की आवाज को कमजोर कर सके. साथ ही भारत के रणनीतिक दबाव को कम किया जा सके. चीन को डर है कि अगर भारत में निर्वासित तिब्बती समुदाय नया दलाई लामा चुनता है तो इससे लद्दाख, अरुणाचल और सिक्किम में चीन विरोधी भावना बढ़ सकती है. साथ ही यह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बीजिंग की छवि खराब कर सकता है.
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भारत-चीन संबंधों पर असर
1959 में जब दलाई लामा भारत आए तब से ही भारत-चीन संबंध तनावपूर्ण हो गए. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मानवीय आधार पर दलाई लामा और हजारों तिब्बतियों को शरण दी थी. चीन ने इसे अपनी संप्रभुता के खिलाफ माना.1962 के भारत-चीन युद्ध में तिब्बत और दलाई लामा का मुद्दा एक छुपा हुआ कारण था. इसके बाद दोनों देशों में अविश्वास बना रहा. 1990 के दशक में गेधुन चोएक्यी न्यिमा के रहस्यमय ढंग से लापता होने के बाद चीन ने विवादास्पद तरीके से अपना पंचेन लामा स्थापित किया था. गेधुन चोएक्यी न्यिमा वह लड़का था जिसे दलाई लामा ने तिब्बती बौद्धों के लिए दूसरे सबसे सम्मानित व्यक्ति के रूप में चुना था. पंचेन लामा तिब्बतियों के बीच स्वीकृति पाने में विफल रहे. जिससे दलाई लामा के उत्तराधिकार में इसी तरह के हस्तक्षेप की आशंकाएं बढ़ गई हैं.
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अभी कैसे हैं चीन से संबंध
लद्दाख में 2020 की गलवान हिंसा के बाद से दोनों देशों के रिश्ते बुरी तरह बिगड़े हुए हैं. भारत ने हाल में अरुणाचल प्रदेश में इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया, जो चीन को खटकता है. दलाई लामा की भारत में बढ़ती गतिविधियां और तिब्बती निर्वासित सरकार की उपस्थिति चीन को रणनीतिक रूप से परेशान करती है. हाल ही में दलाई लामा के उत्तराधिकार पर चीन की बयानबाजी और भारत का पक्ष बनना, दोनों एक सिग्नल हैं कि कोई इस मुद्दे को हल्का में नहीं लेगा. अगर भारत निर्वासित तिब्बती समुदाय द्वारा चुने गए दलाई लामा को मान्यता देता है, तो यह बीजिंग के लिए सीधी राजनीतिक चुनौती होगा. इससे दोनों के बीच सीमा वार्ताएं प्रभावित होंगी. दोनों देशों के व्यापारिक और कूटनीतिक रिश्ते और तल्ख हो सकते हैं. इसके अलावा चीन पाकिस्तान को भारत विरोधी कदमों के लिए और उकसा सकता है. ये भी संभव है कि भारत भी ताइवान, हांगकांग और दक्षिण चीन सागर पर खुलकर बयान दे सकता है.
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समारोह में शिरकत करेंगे रिजिजू
संसदीय मामलों और अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू दलाई लामा के जन्मदिन समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे. किरेन रिजिजू ने कहा, “दलाई लामा का पद न केवल तिब्बतियों के लिए बल्कि दुनिया भर में उनके लाखों अनुयायियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. सदियों पुरानी बौद्ध परंपराओं के अनुसार उनके उत्तराधिकारी के बारे में निर्णय लेने का अधिकार केवल उनके पास है.” उन्होंने दलाई लामा की इस घोषणा पर चीन की आपत्ति को अनुचित हस्तक्षेप बताते हुए खारिज कर दिया कि उनके पास यह तय करने का विशेष अधिकार है कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा. यह प्रतिक्रिया तिब्बती बौद्धों की गेलुग शाखा के 90 वर्षीय आध्यात्मिक प्रमुख के बाद आई जिन्होंने जोर देकर कहा कि दलाई लामा की परंपरा उनकी मृत्यु के बाद भी जारी रहेगी और उनके उत्तराधिकारी का चयन उनके द्वारा स्थापित एक गैर-लाभकारी संस्था गदेन फोडरंग ट्रस्ट द्वारा किया जाएगा.
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बाहरी हस्तक्षेप नहीं सहेगा भारत
किरेन रिजिजू का बयान चीन के उस दावे का सीधा जवाब है, जिसमें चीन कहता रहा है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनने का अधिकार चीनी सरकार को है. भारत इस मामले में दलाई लामा और तिब्बती बौद्ध परंपराओं के साथ खड़ा है और उनके फैसले का समर्थन करता है. भारत ने चीन को यह साफ कर दिया है कि वह दलाई लामा के उत्तराधिकार के मामले में किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा. यह भारत की दृढ़ स्थिति को दर्शाता है कि यह एक धार्मिक और आध्यात्मिक मामला है, जिसमें राजनीतिक दखलंदाजी अनुचित है. भारत दलाई लामा और निर्वासित तिब्बती समुदाय को लगातार समर्थन देता रहेगा. दलाई लामा 1959 से भारत में रह रहे हैं और भारत उन्हें आध्यात्मिक नेता के रूप में मान्यता देता है. भले ही भारत तिब्बत की स्वतंत्रता की औपचारिक रूप से वकालत नहीं करता, लेकिन वह चीन के तिब्बत पर नियंत्रण के प्रति अपनी चिंताओं को अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्त कर सकता है. दलाई लामा के उत्तराधिकार का मुद्दा तिब्बत के भविष्य और तिब्बती बौद्ध धर्म की पहचान के लिए महत्वपूर्ण है.
Location :
New Delhi,Delhi