Explainer: भारत से 5,859 किमी दूर मचा हाहाकार, एक साल में घट गई 9 लाख से ज्यादा आबादी, क्या खाली हो जाएगा ये मुल्क?

1 week ago

वर्ष 2024 में जापान की कुल जनसंख्या दर में भारी गिरावट दर्ज की गई है. इस साल जापान की जनसंख्या में 908,000 से अधिक लोगों की कमी आई और अब ये घटकर लगभग 120.65 मिलियन (या 12 करोड़) हो गई. DW ने एक रिपोर्ट में कहा है कि साल 1968 के बाद यह जापान की सबसे बड़ी जनसंख्या गिरावट थी. रिपोर्ट में बताया गया कि यह लगातार 16वां वर्ष था जिसमें जापानी जनसंख्या लगाता घटती हुई दिखाई दी. 

इसके पीछे की वजह है जापान में घटती जन्म दर, या प्रति 1,000 लोगों पर एक निश्चित अवधि में जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या. रिपोर्ट में बताया गया कि जापान में साल 2024 में 686,061 नवजात शिशुओं का रिकॉर्ड दर्ज किया गया. ये साल 1899 में रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से सबसे कम संख्या रही. जिसका परिणाम सामने है कि जापान की जनसंख्या में लागातार गिरावट हो रही है.

जापानी PM ने आंकड़ों को 'मौन आपातकाल' बताया
जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने इन आंकड़ों को 'मौन आपातकाल' करार दिया, लेकिन जापान अकेला नहीं है जो घटती जन्म दरों और जनसंख्या को देख रहा है.खासकर अपने पड़ोस में भी कुछ यही हाल है. चीन में भी 2022 से हर साल जनसंख्या में कमी देखी गई है. हालांकि चीन ने प्रजनन दरों को बेहतर करने के लिए अपने देश में संतान पैदा करने पर सब्सिडी की घोषणा की है. दक्षिण कोरिया में भी वैश्विक स्तर पर सबसे कम जन्म दरों में से एक है, भले ही भारत से लेकर फ्रांस तक अन्य देशों में भी ये आंकड़े कम हुए हैं. आखिर इसके पीछे की वजह क्या? क्या इन पर काबू किया जा सकता है? आइए देखें पूर्वी एशिया में स्थिति कैसी है?

क्या जापान एक अपवाद है?
घटती जन्मदरों को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या जापान में ही ऐसा है? इस सवाल का जवाब है नहीं. इस अर्थ में कि अधिकांश देश भी जन्म दरों और कुल प्रजनन दर (TFR, यानी एक महिला अपने जीवनकाल में संभावित रूप से कितने बच्चों को जन्म देगी) में हम लगातार कमी देख रहे हैं. जनसांख्यिकी परिवर्तन सिद्धांत के मुताबिक जो देश जैसे-जैसे कृषि आधारित समाज को छोड़कर औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं की ओर बढ़ते हैं वैसे-वैसे उन सभी देशों को इन संकटों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि मेडिकल, एजूकेशन और टेक्निकल रूप से प्रगति के मुताबिक ये नवजात शिशुओं को जीवित रखने की संभावनाओं को लगातार बेहतर करती हैं. ऐसे में महिलाओं के बच्चों की संख्या के बारे में निर्णय लेने की शक्ति को बढ़ाती है.

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क्या कहते हैं ऑस्ट्रेलियाई जनसांख्यिकी विशेषज्ञ पीटर मैकडॉनल्ड?
ऑस्ट्रेलियाई जनसांख्यिकी विशेषज्ञ पीटर मैकडॉनल्ड ने तर्क दिया है कि पिछले कुछ दशकों में दो सामाजिक और राजनीतिक बदलावों ने भी अच्छे जीवन के लिए बच्चों को जन्म देने के महत्व को कम किया है. पहला था सामाजिक उदारवाद, जिसमें आधुनिक समाजों के व्यक्तियों ने सामाजिक मानदंडों की पुनर्जांच की और व्यक्तिगत आकांक्षाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित किया. हालांकि, यह बदलाव केवल पश्चिमी या औद्योगिक समाजों में ही नहीं देखा जा रहा है. 

जापान में स्थिति क्या है?
जापान अक्सर ऐसे मामलों में दुनिया के बीच सुर्खियों में रहता है क्योंकि इसकी कुल प्रजनन दर (TFR) और जन्म दर विशेष रूप से कम हैं. उदाहरण के लिए अगर हम विश्वबैंक के इन आंकड़ों पर गौर करें तो, भारत की TFR 1.98 है, दक्षिण अफ्रीका की 2.22, ब्राजील और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों की 1.62, और फ्रांस की 1.66 है . जापान की TFR 1.2 है, दक्षिण कोरिया की 0.72, चीन की 1 और सिंगापुर की 0.97 है. विश्व औसत 2.2 था, जो 2.1 से थोड़ा अधिक है. जनसंख्या स्तर को बनाए रखने के लिए आवश्यक है उचित TFR. वहीं कम TFR के स्पष्ट लाभ हैं, जैसे कि महिलाओं का स्वस्थ जीवन जीना, अधिक शिक्षा और वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करना, और अपने शरीर के बारे में स्वायत्तता का उपयोग करना, साथ ही माता-पिता संभावित रूप से प्रत्येक बच्चे के लिए उच्च गुणवत्ता वाला जीवन प्रदान कर सकते हैं.

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जनसांख्यिकी विशेषज्ञों का दावा
जनसांख्यिकी विशेषज्ञों के मुताबिक पूर्वी एशियाई देशों में कुछ सामान्य पैटर्न देखे हैं. शहरीकरण और आधुनिकीकरण की वजह से जीवनशैली में आए बदलाव से लोगों के खर्चे लगातार बढ़ गए हैं जिससे बच्चों की परवरिश का खर्च बढ़ गया है. इन मामलों में अभी भी इन देशों में पारंपरिक  कारण जीवन-यापन की लागत अधिक हो गई है, जिससे बच्चों को पालना महंगा हो गया है. इन मामलों में अभी भी कठोर पारंपरिक जेंडर रोल चलन में हैं.

महिलाओं को नौकरी के बाद घरेलू कार्यों का दबाव
पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स के मुताबिक, 'जो महिलाएं विवाह करने का निर्णय लेती हैं, वे अक्सर खुद को नौकरी और घरेलू कार्यों के दोहरे बोझ को झेलते हुए पाती हैं. इसकी वजह से परिवार की स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है और कभी-कभी परिवार टूट भी जाते हैं.'एजुकेशन फीवर एंड द ईस्ट एशियन फर्टिलिटी पजल: ए केस स्टडी ऑफ लो फर्टिलिटी इन साउथ कोरिया में इन रिसर्चर्स ने स्वीकार किया कि ये घटनाएं इस क्षेत्र के लिए ठीक नहीं हैं. इसके अलावा रिसर्चर्स ने एक और तर्क दिया कि माता-पिता पर बच्चों की शिक्षा में बड़ी मात्रा में समय और धन निवेश करने का उच्च सामाजिक दबाव भी एक भूमिका निभाता है. उन्होंने आगे बताया, 'कोरियाई माता-पिता को अक्सर एक या दो से अधिक बच्चों को पालना कठिन और निराशाजनक लगता है,3 दशकों से युवा वयस्कों के लिए वांछित परिवार का आकार लगभग दो के आसपास रहा है.'

ये बड़े कारक भी हैं जिम्मेदार
पीटर मैकडॉनल्ड ने के मुताबिक, '1990 के दशक तक जापान में आर्थिक मंदी, युवाओं में बढ़ती आकांक्षाओं के साथ, ने विवाह और बच्चे पैदा करने की संभावनाओं को प्रभावित किया. पश्चिमी देशों के विपरीत इन देशों में ये दोनों अवधारणाएं आम तौर पर परस्पर जुड़ी हुई हैं.उन्होंने लिखा कि सरकारें 'युवा श्रमिकों की बिगड़ती रोजगार स्थितियों को संशोधित करने का प्रयास' नहीं कर पाई हैं. यह तब भी है जब पुरुष और महिलाएं उच्च पेशेवर दबाव के कारण लंबे समय तक काम करते हैं.

क्या है मैकडॉनल्ड का तर्क?
मैकडॉनल्ड ने तर्क दिया कि बच्चों के पालन-पोषण को एक सामाजिक परियोजना बनाना चाहिए, ताकि सरकारें और अन्य संस्थान इस विषय को देखने के अपने दृष्टिकोण को बदलें और अधिक सहायता प्रदान करें. 'हालांकि युवा लोग इस बात से अवगत हैं कि बच्चों के होने से उनकी भौतिक उपलब्धियां लगभग अनिवार्य रूप से कम हो जाएंगी अधिकांश लोग इस नुकसान को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं बशर्ते यह उनकी आकांक्षाओं को नष्ट न करें. जापान ने ऐतिहासिक रूप से सांस्कृतिक एकरूपता को संरक्षित करने के विचारों के आधार पर आप्रवासन की अनुमति देने में संकोच किया है. हाल के वर्षों में यह स्थिति कुछ हद तक बदली है, कुछ पेशेवरों के लिए आप्रवासन की अनुमति दी गई है. हालांकि अब जापान में एक नई सियासी पार्टी का उदय हुआ है जो अप्रावसन की आलोचना कर रही है,ये दर्शाता है कि इस विचार के खिलाफ कम से कम कुछ विरोध मौजूद है.

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