Swami Brahmaviharidas: अबू धाबी में बीएपीएस हिंदू मंदिर के प्रमुख स्वामी ब्रह्मविहारीदास ने संयुक्त राज्य अमेरिका के न्याय विभाग और न्यू जर्सी जिले के संयुक्त राज्य अमेरिका के अटॉर्नी कार्यालय द्वारा बीएपीएस और बीएपीएस स्वामीनारायण अक्षरधाम के निर्माण की जांच बंद करने के फैसले का स्वागत किया. न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए स्वामी ब्रह्मविहारीदास ने कहा कि कुछ निहित स्वार्थ वाले लोगों ने झूठे आरोप लगाए थे और कहा कि इस फैसले से न्याय में विश्वास बहाल हुआ है.
हम प्रेम, विश्वास, भक्ति से करते है मंदिर का निर्माण
स्वामी ब्रह्मविहारीदास ने कहा कि सत्यमेव जयते! हम प्रेम, विश्वास, भक्ति और स्वेच्छाचारिता की भावना से मंदिर का निर्माण करते हैं... कुछ लोग, जिनके पास निहित स्वार्थ है, मंदिर के निर्माण के समय और शिल्पकला के बारे में झूठे आरोप लगाते हैं. उन्होंने आगे कहा कि अमेरिकी सरकार ने मंदिर की चार साल तक जांच की और अंततः इसे बंद कर दिया. स्वामी ब्रह्मविहारीदास ने कहा कि यह जांच ये कहते हुए बंद हुई कि इसमें कोई आरोप कभी दर्ज नहीं किया गया और कोई भी आरोप कभी सच नहीं निकला. इससे न्याय में विश्वास बहाल होता है.
इससे पहले, संयुक्त राज्य अमेरिका में बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था ने इस निर्णय का स्वागत किया था. बीएपीएस संस्था द्वारा गुरुवार को जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि इस जांच को समाप्त करने का संयुक्त राज्य सरकार का निर्णय हमारे संगठन द्वारा शुरू से ही बनाए गए इस कथन के समर्थन में एक स्पष्ट और शक्तिशाली संदेश भेजता है. बीएपीएस स्वामीनारायण अक्षरधाम - शांति, सेवा और भक्ति का स्थान - सभी क्षेत्रों के हजारों भक्तों के प्रेम, समर्पण और स्वैच्छिक सेवा के माध्यम से बनाया गया था.
मजदूरों के शोषण का लगा था आरोप
बयान में कहा गया है कि इस जांच को समाप्त करने का संयुक्त राज्य सरकार का निर्णय हमारे संगठन द्वारा शुरू से बनाए गए इस कथन के समर्थन में एक स्पष्ट और शक्तिशाली संदेश भेजता है. बीएपीएस ने आधिकारिक बयान में बताया कि कैसे उसकी आध्यात्मिक शिक्षाएं लंबे समय से इस बात पर जोर देती रही हैं कि विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति को विश्वास बनाए रखना चाहिए और सहयोग, विनम्रता, और सत्य व समझ के प्रति प्रतिबद्धता के साथ प्रतिक्रिया देनी चाहिए. बता दें, अमेरिका में बीएपीएस हिंदू मंदिर का निर्माण करने वाली संस्था के खिलाफ न्यूजर्सी के मंदिर में काम करने वाले मजदूरों ने मुकदमा किया था. उनका आरोप था कि उनसे बंधुआ मजदूरों की तरह काम कराया गया था और उनको सही मेहनताना भी नहीं दिया गया था.