Last Updated:August 27, 2025, 19:14 IST
RSS@100 Years LIVE: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, 'भारत ने हमेशा संयम बरता है और अपने नुकसान की परवाह नहीं की है. नुकसान होने पर भी, उसने मदद की पेशकश की है, यहां तक कि उन लोगों की भी जिन्होंने उसे नुकसान प...और पढ़ें

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ की नींव सात्त्विक प्रेम पर टिकी है. उन्होंने कहा कि किसी भी स्वयंसेवी संगठन का इतना विरोध नहीं हुआ, जितना संघ का हुआ. बावजूद इसके, संघ आज भी मजबूती से खड़ा है. संघ के 100 साल पूरे होने पर भागवत ने 1925 की विजयदशमी का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि डॉक्टर हेडगेवार ने उसी दिन संघ की स्थापना की थी. उनका विचार साफ था- हिंदू कहलाने वाले हर व्यक्ति को राष्ट्र के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए. यही संघ की शुरुआत का आधार था. उन्होंने कहा कि हिंदुत्व का असली सार सत्य और प्रेम है. ये दोनों दिखने में अलग हैं, लेकिन असल में एक ही हैं. दुनिया लेन-देन से नहीं, अपनेपन से चलती है. रिश्ते अनुबंध पर नहीं, आत्मीयता पर बनते हैं. संघ इन्हीं मूल्यों पर आधारित है.
भागवत ने यह भी कहा कि संघ में कोई लालच या प्रोत्साहन नहीं है. स्वयंसेवक सिर्फ इसलिए काम करते हैं क्योंकि उन्हें अपने कार्य में आनंद मिलता है. यह आनंद इसलिए है क्योंकि उनका कार्य राष्ट्र और विश्व कल्याण से जुड़ा है.
संघ में कुछ मिलेगा नहीं: भागवत
भागवत ने कहा कि संघ में कोई इंसेंटिव नहीं है. उन्होंने कहा, ‘संघ में आओगे तो कुछ मिलेगा नहीं, जो है वह भी चला जाएगा. स्वयंसेवक इसी भाव से काम करता है. उसका ध्येय है – आत्मनो मोक्षार्थ जगत हिताय च.‘
भागवत ने कहा कि संघ का लक्ष्य संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन है. इसके लिए सतत प्रयास करना होगा. संघ का दृष्टिकोण भी अलग है. वह प्रत्येक व्यक्ति को उसकी स्थिति के अनुसार देखता है – चाहे वह मैत्री, उपेक्षा, आनंद या करूणा के भाव से क्यों न हो. उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ कार्य का आधार किसी लाभ या पुरस्कार की अपेक्षा नहीं है. संघ की नींव ध्येय के प्रति समर्पण है. आदर्श और राष्ट्रहित ही स्वयंसेवक की प्रेरणा है. यही भाव संघ को विशेष बनाता है.
‘स्वदेशी मतलब आत्मनिर्भर भारत, पर दुनिया से कटना नहीं’
RSS प्रमुख ने कहा कि विकास जरूरी है और हर क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर होना चाहिए. लेकिन आत्मनिर्भरता का मतलब दुनिया से रिश्ते तोड़ना नहीं है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार चलता रहेगा, पर उसमें दबाव नहीं होना चाहिए. ‘स्वदेशी का अर्थ है कि जो हमारे देश में बनता है, उसे ही प्राथमिकता दें. अपने राज्य में कार बनती है तो बाहर से क्यों खरीदें? जो देश में उपलब्ध है, उसे आयात करने की क्या जरूरत है.’
भागवत ने स्पष्ट किया कि अंतरराष्ट्रीय संबंध ‘स्वेच्छा’ से हों, दबाव में नहीं. यही स्वदेशी का आधार है. उन्होंने कहा कि घर में भाषा, वेशभूषा, भोजन और पूजा भारतीय परंपरा के अनुसार होनी चाहिए. उन्होंने आगाह किया कि भड़काऊ घटनाओं पर कानून हाथ में लेना गुनाह है. ‘अगर अपमान हुआ है तो पुलिस और प्रशासन से शिकायत करें. टायर जलाना या हिंसा सही तरीका नहीं है.’
भागवत ने समाज में बढ़ रहे ‘सात सामाजिक पापों’ का भी उल्लेख किया, जिसमें बिना काम के धन कमाना और सिद्धांतों के बिना राजनीति करना शामिल है. उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत ही सशक्त भारत का आधार बनेगा.
‘दुनिया का माहौल तीसरे वर्ल्ड वॉर जैसा’
आरएसएस प्रमुख ने वैश्विक हालात पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भी शांति कायम नहीं हो पाई. संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं भी स्थायी समाधान नहीं दे सकीं. आज पूरी दुनिया कट्टरपन और असहिष्णुता से घिरी हुई है.
उन्होंने कहा कि तीसरा विश्वयुद्ध भले ही वैसे न हो जैसा पहले हुआ, लेकिन माहौल उतना ही खतरनाक है. कट्टर सोच वाले लोग न सिर्फ विरोधियों को दबा रहे हैं, बल्कि ‘कैंसिल कल्चर’ को भी बढ़ावा दे रहे हैं. इससे समाज और देशों के बीच दूरी बढ़ रही है. भागवत ने कहा कि दुनिया के बड़े नेता भी चिंतित हैं. कारण यह है कि कोई जोड़ने वाला तत्व सामने नहीं है. चर्चा बहुत होती है, उपाय भी सुझाए जाते हैं, लेकिन स्थायी शांति नजर नहीं आती.
‘सबका भला हमारी विचारधारा, धर्म से ही मिलेगी विश्व को शांति’
भागवत ने कहा कि अगर सभी लोग केवल उपभोग के पीछे भागेंगे तो स्पर्धा बढ़ेगी और आपसी झगड़े होंगे. ऐसे में दुनिया नष्ट होने की स्थिति में पहुंच सकती है. उन्होंने कहा कि हमारी विचारधारा में ‘सबका भला हो’ का भाव है. यही सोच समाज और विश्व को सही दिशा देती है. भागवत ने कहा कि धर्म सार्वभौमिक है. यह सृष्टि के आरम्भ से अस्तित्व में है. इसे मानो या न मानो, लेकिन यह धर्म ही है जो विश्व को शांति देता है. उन्होंने कहा कि भारत प्राचीन देश है. इसके नागरिकों को ऐसा जीवन जीना चाहिए कि दूसरे देश के लोग जीवन का ज्ञान हासिल करने भारत आएं. यही भारत का असली योगदान है.
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‘धर्म में कन्वर्जन नहीं होता’
उन्होंने धर्म की परिभाषा पर भी जोर दिया. भागवत ने कहा कि धर्म का अर्थ पूजा-पाठ नहीं है. धर्म वह मार्ग है, जो व्यक्ति को संतुलन और मोक्ष की ओर ले जाता है. उन्होंने कहा कि धर्म सर्वत्र जाना चाहिए, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि धर्म परिवर्तन कराया जाए. धर्म में conversion नहीं होता. धर्म संतुलन सिखाता है.
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारतीय दृष्टि ही विश्व को जोड़ सकती है. अगर दुनिया को स्थायी शांति चाहिए, तो धर्म संतुलन को अपनाना होगा. यही भारत का योगदान हो सकता है. भागवत ने दोहराया कि संघ का असली स्वरूप सात्त्विक प्रेम है. संघ का हर कार्य उसी पर आधारित है. यही हिंदुत्व का सार है और यही मार्ग दुनिया को शांति और स्थिरता दे सकता है.
Deepak Verma is a journalist currently employed as Deputy News Editor in News18 Hindi (Digital). Born and brought up in Lucknow, Deepak's journey began with print media and soon transitioned towards digital. He...और पढ़ें
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
August 27, 2025, 18:33 IST