RIC: तो क्या फिर से बनेगा रूस-भारत-चीन का ग्रुप? आखिर इसे क्यों शुरू करना चाहता है Russia

3 days ago

India-Russia China group: पाकिस्तान से हुए तनाव के बाद कई आलोचक एक्सपर्ट्स ने यह कह दिया कि रूस ने खुलकर इस बार भारत के लिए समर्थन की बात नहीं कही. इसके अलावा रूस-पाकिस्तान के बीच भी पाक रही खिचड़ी चर्चा का विषय बनी रही. इसी कड़ी में रूसी विदेश मंत्री ने एक और चर्चा को जन्म दे दिया कि रूस-भारत-चीन RIC त्रिपक्षीय संवाद फिर से शुरू होने चाहिए. यह तब हुआ जब रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने एक सुरक्षा सम्मेलन में यह संकेत दिया कि पुतिन इस मंच को लेकर काफी संजीदा हैं और फिर से सक्रिय करना चाहते हैं. ऐसे में यह समझना लाजिमी है कि इससे इन देशों का क्या फायदा है और क्या इसके शुरू होने के कितने चांस हैं.

 रूस इसे क्यों शुरू करना चाहता?
असल में यह मंच 1990 के दशक में रूस के पूर्व प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव की सोच से अस्तित्व में आया था. इस समूह का उद्देश्य पश्चिमी देशों के प्रभाव का मुकाबला करना और यूरेशिया क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन बनाना था. 2020 में भारत-चीन के बीच गलवान संघर्ष के बाद यह संवाद लगभग ठप हो गया था. अब सवाल है कि रूस इसे क्यों शुरू करना चाहता है. 

तीन बड़े कारण माने जा रहे
एक्सपर्ट्स का मानना है कि रूस के इस कदम के पीछे तीन बड़े कारण माने जा रहे हैं. पहला भारत और चीन के रिश्तों में आई थोड़ी नरमी. अक्टूबर 2024 में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद रिश्तों में थोड़ी गरमाहट आई है जिससे रूस को लगता है कि अब फिर से बातचीत की जमीन तैयार हो सकती है. दूसरा पश्चिमी दबाव का जवाब देने की रणनीति. रूस मानता है कि NATO और QUAD जैसे पश्चिम समर्थित मंच क्षेत्रीय असंतुलन पैदा कर रहे हैं. RIC इसके जवाब में एक मंच बन सकता है. तीसरा यूरेशिया में साझा सुरक्षा ढांचे को मजबूत करना जिससे बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा मिले.

चुनौतियों का सामना भी
हालांकि RIC को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. पहली भारत-चीन के बीच सीमा विवाद. भले ही हालिया समय में टकराव की घटनाएं कम हुई हों पर दोनों देशों के बीच अविश्वास बना हुआ है. यह RIC की गंभीर वार्ताओं में बाधा बन सकता है. दूसरी चुनौती है भारत की पश्चिमी देशों से लगातार बढ़ती नजदीकी. QUAD, I2U2 और G7 जैसे मंचों में भारत की सक्रिय भागीदारी RIC में उसकी भूमिका को सीमित कर सकती है.

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या RIC फिर से प्रभावी मंच बन पाएगा. इसका जवाब इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या भारत-रूस और चीन अपनी आपसी मतभेदों को किनारे रखकर साझा हितों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. यदि यह संभव हो सका तो RIC से उम्मीद की जा सकती है कि यह रणनीतिक संतुलन और सहयोग का एक अहम प्लेटफॉर्म बन सकता है. उधर रूस की इस कोशिश से साफ है कि वह एशिया में अपनी भूमिका को और मजबूत करना चाहता है और भारत-चीन को साथ लाकर एक नई धुरी तैयार करना चाहता है.

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